जातीय समीकरण से ऊपर उठता बिहार का चुनाव, क्या रोजगार के नाम पर महागठबंधन को ताज दे पाएगा
10 लाख नौकरियों ने बदला बिहार चुनाव का रुख
बिहार चुनाव में एक महीने पहले तक रोजगार नाम की चीज का कोई हो हल्ला नहीं था. लेकिन अचानक से महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव द्वारा रोजगार की बात करने के बाद बिहार चुनाव की हवा ही पूरी तरह से बदल गई. जिसके बाद एनडीए ने 19 लाख नौकरियां देने का ऐलान किया. जिसने बेरोजगार युवाओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. आज काम की बात में हम इसी मुद्दे पर चर्चा करेगे.
बिहार चुनाव में सीट बंटवारे तक सिर्फ जातीय समीकरण ही दिख रहा था. काम की बात में हमने आपको बताया था कि बिहार में जातीय समीकरण के आधार पर कैसे सीटें बांटी गई है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बिहार में वोट हमेशा जाति के आधार पर ही दिया जाता है. लेकिन अचानक तेजस्वी द्वारा 10 लाख सरकारी देने के वायदे ने पूरे चुनाव का ही रुख बदल दिया. जिसने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. लोगों को अब वायदे नहीं रोजगार चाहिए. कोरोना के बाद से लोगों के पास रोजगार नहीं हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने एक भाषण में बताया था कि लॉकडाउन के दौरान बिहार में करीब 22 लाख प्रवासी मजदूर अपने क्षेत्र वापस आएं थे. इनमें से ज्यादातर लोगों का रोजगार चला गया था.
तेजस्वी का इंटरव्यूय
तेजस्वी ने सिर्फ 10 लाख नौकरी देने का वायदा नहीं बल्कि इसकी व्याख्या भी की है वो कैसे अपने वायदे को पूरा करेंगे. कैसे वह हर बिहारी युवाओं के हाथ रोजगार देगें. जी हिंदुस्तान को दिए गए एक इंटरव्यू में तेजस्वी ने बताया कि साढ़े चार लाख नौकरी के पद खाली है. शिक्षा विभाग में शिक्षक नहीं है, पुलिस विभाग में, स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टर और नर्सेस नहीं है, इनके के साथ सपोर्टिंग स्टॉफ भी जरुरत पड़ती है. यह सब मिलकर साढ़े चार लाख नौकरियां है, बाकी साढे पांच लाख नौकरियां सभी तबके के लोगों के लिए है. इन सबको मिलाकर लगभग 10 लाख नौकरियां बिहार में हैं. जिसे बिहार सरकार जब चाहे एक हस्ताक्षर द्वारा ला सकती है. तेजस्वी का कहना है कि इन सब पर उन्होंने कई अर्थशास्त्रियों से बातचीत की है उसके बाद ही इस पर टिप्पणी की है. इतना ही नहीं तेजस्वी अपनी हर सभा में यह कहते हुए नजर आएं है कि सरकार, सरकारी बजट का 80 प्रतिशत खर्च ही नहीं कर पाती है.
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विपक्ष की प्रतिक्रिया
तेजस्वी की 10 लाख नौकरी पर प्रतिक्रिया देते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का कहना है कि 10 लाख नौकरियों को समायोजित करने के लिए लगभग 58,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी जोकि वार्षिक बजट से ऊपर है. उन्होंने कहा कि 22,270.09 करोड़ रुपये के लिए 1.25 लाख डॉक्टरों, 2.5 लाख पैरा मेडिकल स्टाफ की आवश्यकता होगी. 95,000 पुलिस अधिकारियों की भर्ती के लिए 3,604 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी और इंजीनियरों की भर्ती पर 6,406 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. यह सब 58,415 करोड़ रुपये में जुड़ता है.
उन्होंने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा है कि यदि वेतन पर इतना खर्च किया जाएगा तो, वे छात्र की छात्रवृत्ति, वर्दी, साइकिल, मध्यान्ह भोजन, पेंशन और बिजली पर खर्च की आवश्यकता को कैसे पूरा करेंगे?
बीजेपी की 19 लाख नौकरियां
बिहार भाजपा अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि इन 19 लाख नौकरियों में से केवल 4 लाख सरकारी क्षेत्र में हैं. जिसमें से शिक्षा क्षेत्र में 1 लाख और स्वास्थ्य में 1 लाख है. जबकि आईटी सेक्टर 1 लाख नौकरियों में योगदान देगा और बाकी रोजगार कृषि क्षेत्र में है. चुनाव के दौरान एनडीए यह दावा कर रही है कि 15 साल के कार्यकाल में उन्होंने बिहार की जनता को 6 लाख नौकरियां दी हैं. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दावा किया है कि बिहार के प्रत्येक गाँव में ऑप्टिकल फाइबर के बिछाने से केंद्र के आईटी विभाग के तहत स्थानीय स्तर पर और सीएससी (कॉमन सर्विस सेंटर) स्थापित करने के लिए नौकरियां पैदा हुई हैं. इन सभी ने बिहार में पुरुषों और महिलाओं के लिए 2.5 लाख नौकरियां पैदा की. जनता दल-युनाइटेड ने तेजस्वी के दावे का विरोध करते हुए कहा कि केवल 1 लाख नौकरियां खाली हैं (4.5 लाख नौकरियां नहीं). इन 1 लाख नौकरियों में से 75,000 का विज्ञापन निकाला जा चुका है. नीतीश कुमार भी भाषणों के दौरान दावा करते हुए दिखाई देते हैं कि बिहार में राजद के 15 साल के शासन में केवल 95 लाख नौकरियां पैदा हुईं, जबकि नीतीश के 15 साल के शासन में 6 लाख नौकरियां दी है.
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सीएमआई की रिपोर्ट
कोरोना के बाद लगभग हर राज्य की अर्थव्यवस्था गिर गई है. लेकिन बिहार में आएं 22 लाख प्रवासी मजदूरों ने बेरोजगारी दर को और बढ़ा दिया है. रिपोर्ट की बात करें तो सीएमआई की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी से अप्रैल 2020 तक बिहार का हर दूसरा युवा बेरोजगार है. पीएलएफएस की रिपोर्ट के अनुसार 86.9% लोगों को पास रोज रोजगार नहीं होता है. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2019 तक नौकरी न होने के कारण आत्महत्या में 438% की वृद्धि हुई है.
हाल ही की बात करें तो सिर्फ सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवा ही बेरोजगारी नहीं है. ब्लकि प्राइवेट जॉब करने वालों का भी हाल बुरा हैं. सीआईएमई की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में बेरोजगारी 46% तक पहुंच गई है. जो बाकी सभी राज्यों से सबसे ज्यादा बुरी स्थिति में है. इस वक्त बिहार में बेरोजगारी दर सामान्य से 6.7% तक बढ़ गई थी.
साल 2004-05 की बेरोजगारी दर मात्र 0.8 थी. लेकिन बेरोजगारी दर में वृद्धि साल दर साल बढ़ती गई. साल 2011-12 में 1.6, 2017-18 में 1.2, और 2018-19 में 1.8 हो गई
इस बारे में हमने बीएचआर न्यूज बिहार के संपादक अनुपम कुमार से बात की तो उन्होंने बताया विधानसभा चुनाव में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. बिजली, शिक्षा, भ्रष्टाचार जैसे मामले पीछे छूट गये हैं. राजद नेता तेजस्वी यादव ने सबसे पहले इस मामले को उठाया. श्री यादव ने अपने हर चुनावी सभा में कहा कि राज्य के युवाओं के पास रोजगार की कमी है. वर्तमान राज्य और केन्द्र सरकार इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. रोजगार हर काल और परिस्थिति में बना रहा है, लेकिन यह चुनावी मुद्दा बन जाये यह पहली बार हुआ है. बिहार के युवाओं ने भी माना है कि रोजगार सबसे पहली आवश्यकता है. जिससे अन्य दलों ने भी तरजीह दी और अपने चुनावी सभाओं में इसे कहना शुरू कर दिया. रोजगार के मुद्दे पर बिहार की राजनीतिक हवा बदल सकती है और एक बड़ा उलट-फेर होने की सम्भावना भी बनती दिख रही है.
आने वाली 10 नवंबर को अब देखना है रोजगार का मुद्दा किसे राजगद्दी पर बैठाता है. बिहार चुनाव में पहली बार जाति समीकरण के ऊपर उठकर रोजगार के मुद्दों का तवज्जो दिया गया है. युवा नेता का यह जोश और वायदा देखते हैं बिहार के युवाओं का भविष्य संवार सकता है कि नहीं?
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