आखिर क्यों बंगाली समुदाय में माता की विदाई से पहले खेला जाता सिदूंर खेला
आखिर क्यों बंगाली समुदाय में माता की विदाई से पहले खेला जाता सिदूंर खेला
आखिर क्यों बंगाली समुदाय में माता की विदाई से पहले खेला जाता सिदूंर खेला:- नौ दिनों की माता की महिमा विजयदशमी के साथ ही खत्म हो जाती है। पूरे देश में रावण का पुतला जलाकर इसकी खुशी मनाई जाती है।
वहीं दूसरी ओर दशमीं की साथ ही मां की विवाई भी हो जाती है। नौ दिनों की माता की महिमा के बीच षष्टी से दुर्गापूजा मनाई है।
अष्टमी की महाअष्टमी की पूजा और नवमी में महानवमीं में आराधना के बाद दसमी के बाद माता की विदाई हो जाती है।
माता की विदाई करती है आंखे नम
जहां पूरे देश के रावण का पुलता जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत को मनाया जाता है। वहीं बंगाल में माता की विवाद लोगों की आंखों का नम कर देती है।
लेकिन इस दुखी मौके पर भी बंगाली शादीशुदा महिलाएं माता के जाने की खुशी मानती है। शादीशुदा बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिदूंर लगाकर विजय दशमी की खुशी मानती है। माता के विसर्जन से पहले यह विधि निभाई जाती है। जिसमें प्रत्येक शादीशुदा बंगाली महिला एक दूसरे को सिदूंर लगाती है और अपनी खुशी जाहिर करती है। साथ ही मंगलगीत गाए जाते हैं।
इसके साथ ही शादीशुदा महिलाएं मां से प्रार्थना करती है कि वह उनके पति के संभाल कर रखें। साथ ही सिंदूर खेला खेलकर अपनी खुशी जाहिर करती है कि अभी तक मां ने उनके पति को संभालकर रखा है।
सभी महिलाएं माता से प्रार्थना करती है कि वह उनके पति को आने वाले सब संकट से बचा कर रखें तथा सदा सुहागन रहने का आर्शीवाद मांगती हैं।
नौ दिनों बाद ससुराल जाती है मां
नौ दिनों के नवरात्रों के बाद दसवें दिन विजयदशमी मनाई जाती है। जिस दिन बुराई की अच्छी की जीत हुई थी। बंगाली समुदाय में यह माना जाता है कि दस दिन के लिए मां अपने मायके आती है। जिसके बाद माता के ससुरात जाते समय उनकी मांग भरी जाती है। साथ ही मिठाई और पान भी खिलाया जाता है। बंगाली समुदाय में यह परंपरा सालों से चली आ रही है।