UP News: बीजेपी में बड़ा बदलाव, यूपी में नया अध्यक्ष जल्द, SIR की अनदेखी पर संघ का कड़ा रुख
UP News, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने वाले हैं, और इसी बीच राज्य भाजपा संगठन में बड़े बदलावों की सुगबुगाहट फिर तेज़ हो गई है।
UP News : संगठन में उथल-पुथल, यूपी में नया बीजेपी अध्यक्ष संभव, SIR पर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से संघ असंतुष्ट
UP News, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने वाले हैं, और इसी बीच राज्य भाजपा संगठन में बड़े बदलावों की सुगबुगाहट फिर तेज़ हो गई है। पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी माने जाते हैं, नई सरकार के गठन के साथ ही कैबिनेट मंत्री बनाए जा चुके हैं। उनके मंत्री बनने के बाद से ही पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष देने की चर्चा शुरू हो गई थी। हालांकि, केंद्रीय नेतृत्व अभी तक किसी तरह की जल्दबाज़ी में दिखाई नहीं दे रहा है।
पार्टी के परंपरागत नियमों से हटता हुआ कदम
भारतीय जनता पार्टी की पुरानी परंपरा रही है कि वह किसी भी नेता को एक साथ संगठन और सरकार में बड़ी जिम्मेदारी नहीं देती। खासतौर पर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो भाजपा हमेशा सपा और बसपा पर यह आरोप लगाती रही है कि वे संगठन और शासन दोनों पर ही एक ही परिवार या एक ही समूह का दबदबा बनाए रखते हैं।
लेकिन मौजूदा स्थिति इस परंपरा से हटती हुई नज़र आती है। स्वतंत्र देव सिंह न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष हैं बल्कि कैबिनेट में अहम विभाग भी संभाल रहे हैं। सवाल यह है कि क्या भाजपा इस समय नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को उतना जरूरी नहीं मानती? या फिर वह ऐसा चेहरा तलाश रही है जो 2024 के लोकसभा चुनावों में संगठन को और मजबूती दे सके?
2024 की तैयारी: ‘सही चेहरे’ की तलाश?
पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष के लिए कई नाम अभी भी चर्चा में हैं, लेकिन हाईकमान इस बात पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है कि कोई ऐसा नेता सामने लाया जाए जो जमीनी स्तर पर संगठन को सशक्त कर सके और केंद्र की रणनीति को प्रदेश स्तर पर तेज़ी से लागू कर सके।
योगी सरकार की छवि, संगठन की पकड़ और मोदी योगी फैक्टर को एक साथ भुनाने के लिए भाजपा ऐसा चेहरा चाहती है जो
- सामाजिक संतुलन बना सके
- पार्टी के कोर वोट-बैंक को और मजबूत कर सके
- 2024 में अधिकतम सीटें दिला सके
इसलिए, केंद्रीय नेतृत्व की धीमी गति को रणनीतिक तैयारी के रूप में देखा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश: लगातार चुनावी मोड में
उत्तर प्रदेश एक लंबे समय से चुनावी मोड में ही चलता नज़र आ रहा है। विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में राजनीतिक गतिविधियां लगातार तेज़ बनी हुई हैं।
पिछले कुछ महीनों में कई बड़े राजनीतिक कार्यक्रम और चुनावी प्रक्रियाएं पूरी हुई हैं—
- नई सरकार का गठन
- राज्यसभा चुनाव
- विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव
- आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव
- और अब राष्ट्रपति चुनाव करीब
इन लगातार चुनावों के कारण संगठन और सरकार दोनों ही लगातार एक्शन मोड में रहे हैं। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का तुरंत बदलाव शायद हाईकमान के एजेंडे में ऊपर नहीं रहा।
स्वतंत्र देव सिंह की भूमिका—क्यों है सबसे ज्यादा चर्चा?
स्वतंत्र देव सिंह ने संगठन को मजबूती देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विधानसभा चुनाव में भाजपा की दोबारा जीत में भी उनके प्रबंधन कौशल को अहम माना जाता है। उनका योगी आदित्यनाथ के प्रति भरोसा और मुख्यमंत्री का उन पर विश्वास दोनों ने उन्हें एक प्रमुख चेहरे के रूप में स्थापित किया है।mलेकिन अब जब वे मंत्री बन चुके हैं, तो सवाल लाजमी है कि क्या वे संगठन के मुखिया की भूमिका को उतनी ही प्रभावी तरीके से निभा पाएंगे जितनी पहले निभाते रहे?
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हाईकमान की रणनीति—स्थिरता या बदलाव?
केंद्रीय नेतृत्व का फोकस फिलहाल दो बातों पर स्पष्ट दिखाई देता है—
- सरकार के प्रदर्शन को 100 दिन और 6 महीनों के पैमाने पर मजबूत दिखाना
- संगठन में ऐसा बदलाव करना जो 2024 से जुड़ी रणनीति के पूरी तरह अनुरूप हो
ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर फिलहाल कोई जल्द निर्णय सामने नहीं आया है। हाईकमान यह भी देख रहा है कि नए चेहरे की घोषणा करने का समय ऐसा हो कि उसका प्रभाव अधिकतम दिखाई दे।
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क्या जल्द होगा बड़ा बदलाव?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा जल्द ही यह फैसला ले सकती है, क्योंकि—
- संगठनात्मक चुनाव निकट आ रहे हैं
- लोकसभा चुनाव पूर्व तैयारी तेज़ करनी होगी
- बूथ स्तर पर टीमों के पुनर्गठन की प्रक्रिया आगे बढ़ानी है
इसलिए, नया प्रदेश अध्यक्ष तय होना सिर्फ समय की बात मानी जा रही है। योगी सरकार के 100 दिन पूरे होने के साथ ही भाजपा के सामने संगठनात्मक बदलाव की चुनौती भी खड़ी है। स्वतंत्र देव सिंह की दोहरी भूमिका पर चर्चाएं तेज़ हैं, जबकि केंद्रीय नेतृत्व 2024 की बड़ी लड़ाई को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे नेता की तलाश में है जो जमीन से जुड़ा हो और चुनावी रणनीति के साथ तालमेल बैठा सके।
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