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Ram Prasad Bismil: क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, आज भी ज़िंदा है ‘सरफ़रोशी’ की लौ

Ram Prasad Bismil, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीरता, त्याग और बलिदान की जब भी चर्चा होती है, तो जिन महान क्रांतिकारियों का नाम सबसे पहले लिया जाता है,

Ram Prasad Bismil : बिस्मिल की विरासत, देशभक्ति और वीरता की अमर कहानी

Ram Prasad Bismil, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीरता, त्याग और बलिदान की जब भी चर्चा होती है, तो जिन महान क्रांतिकारियों का नाम सबसे पहले लिया जाता है, उनमें पंडित रामप्रसाद बिस्मिल प्रमुख हैं। वे केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि उत्कृष्ट कवि, दूरदर्शी राष्ट्रवादी और संगठित क्रांतिकारी आंदोलन के मजबूत स्तंभ थे। उनकी पुण्यतिथि भारत की आज़ादी की लड़ाई को याद करने और उनके बलिदान को नमन करने का दिन है।

प्रारंभिक जीवन और देशप्रेम का संकल्प

रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ। बचपन से ही वे तेज बुद्धि, अध्ययनशील और मजबूत विचारों वाले थे। किशोरावस्था में ही उन्होंने आर्य समाज के संपर्क में आकर स्वदेश और स्वाभिमान के सिद्धांतों को अपनाया। बिस्मिल को बचपन से ही ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियाँ खटकती थीं। लाला हरदयाल, मास्टर आमीनचंद और अन्य क्रांतिकारियों के विचारों ने उनके भीतर देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को जन्म दिया।

कविता और क्रांति—दोनों में अग्रणी

रामप्रसाद बिस्मिल न केवल हथियारों से लड़ने वाले क्रांतिकारी थे, बल्कि कलम के भी धनी थे। उनकी कविताएँ आज भी लोगों के भीतर देशभक्ति का ज्वालामुखी भर देती हैं। उनकी प्रसिद्ध कविता “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है।” ने युवाओं को अंग्रेजी शासन के खिलाफ उठ खड़े होने का साहस दिया। वे ‘बिस्मिल’, ‘राम’, ‘अज्ञात’ और ‘बारगी’ जैसे उपनामों से लिखते थे। उनकी रचनाएँ अंग्रेजों के लिए खतरा मानी जाती थीं, क्योंकि वे युवाओं को क्रांति की राह पर प्रेरित करती थीं।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) का गठन

बिस्मिल ने सशस्त्र क्रांति के माध्यम से आजादी का लक्ष्य प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय किया। इसी दिशा में वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के प्रमुख स्तंभ बने। वे संगठन के लिए धन जुटाना, युवाओं को प्रेरित करना, रणनीतियाँ बनाना और क्रांतिकारियों को संगठित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते थे। उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व और स्पष्ट लक्ष्य ने उन्हें युवाओं के बीच एक आदर्श क्रांतिकारी बना दिया था।

काकोरी कांड—ब्रिटिश शासन की नींव हिलाने वाला अभियान

9 अगस्त 1925 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक दिन था, जब बिस्मिल और उनके साथियों अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह और अन्य क्रांतिकारियों ने काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम दिया। अंग्रेजी सरकार की चलती ट्रेन को रोककर सरकारी खजाने को लूटना उस समय असंभव माना जाता था। लेकिन बिस्मिल के नेतृत्व, साहस और योजनाबद्ध कार्यवाही ने इसे संभव बनाया। इस घटना ने अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया। सरकार ने बिस्मिल और साथियों को पकड़ने के लिए बड़ा अभियान चलाया।

गिरफ्तारी और मुकदमा

काकोरी कांड के बाद बिस्मिल कई महीनों तक पुलिस से बचते रहे। वे जान बचाने की नहीं, बल्कि संगठन और आगे की योजनाओं की चिंता में व्यस्त थे। परंतु आखिरकार उन्हें शाहजहाँपुर से गिरफ्तार कर लिया गया। मुकदमा चला, जिसे आज भी इतिहास के सबसे सख्त और अन्यायपूर्ण मुकदमों में गिना जाता है। अंग्रेजों ने काकोरी कांड को देशद्रोह का अपराध बताते हुए बिस्मिल, अशफाक और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई।

जेल में बिताया गया समय—आत्मबल और तपस्या

जेल में रहते हुए भी बिस्मिल ने अपनी वाणी और लेखन से क्रांति की आग को जीवित रखा। उन्होंने जेल डायरी लिखी, जिसमें उनके विचार, दर्शन, देशप्रेम और स्वतंत्रता के प्रति समर्पण झलकता है। उन्होंने कहा था “मैं मौत से नहीं डरता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरी मौत देश की नई क्रांति का बीज बनेगी।”

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19 दिसंबर 1927—बलिदान का दिन

रामप्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई। फांसी से पहले उन्होंने गर्व से कहा “मैं भारत की जनता से केवल इतना कहना चाहता हूँ देश के लिए जियो, देश के लिए मरो।” उनकी शहादत के साथ भारत ने एक महान सपूत खो दिया, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी अमर हैं। उनके बलिदान के बाद देश भर के युवाओं में क्रांति का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ।

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अमर विरासत—आज भी प्रेरणा का स्रोत

रामप्रसाद बिस्मिल ने न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया, बल्कि उन्होंने युवाओं को देशप्रेम, अनुशासन और साहस का पाठ पढ़ाया।
उनकी रचनाएँ, विचार और बलिदान आज के भारत के लिए भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे। शहादत के बाद उन्हें ‘भारत माता का अमर सपूत’ और ‘क्रांति का देवदूत’ कहा गया। आज भी भारत के कई स्कूल, संस्थान, सड़कें, पुस्तकालय और स्मारक उनके नाम पर हैं। रामप्रसाद बिस्मिल की पुण्यतिथि हमें यह याद दिलाती है कि स्वतंत्रता किसी एक दिन में नहीं मिली; इसके लिए हजारों वीरों ने प्राण न्योछावर किए। बिस्मिल का जीवन सच्चे देशभक्त, साहसी योद्धा और महान कवि का आदर्श उदाहरण है।

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