Pushkar Camel Fair: पुष्कर कैमल फेयर 2025, ऊंटों का मेला नहीं, राजस्थान की संस्कृति का उत्सव है
Pushkar Camel Fair, राजस्थान की धरती पर आयोजित होने वाले अनेक मेलों में पुष्कर कैमल फेयर (Pushkar Camel Fair) अपनी भव्यता, पारंपरिक रंगों और सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
Pushkar Camel Fair : ब्रह्मा नगरी पुष्कर में सजेगा दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेला
Pushkar Camel Fair, राजस्थान की धरती पर आयोजित होने वाले अनेक मेलों में पुष्कर कैमल फेयर (Pushkar Camel Fair) अपनी भव्यता, पारंपरिक रंगों और सांस्कृतिक विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह मेला हर साल राजस्थान के अजमेर जिले के पवित्र नगर पुष्कर में आयोजित होता है। यह न केवल ऊंटों और पशुओं का व्यापार मेला है, बल्कि धार्मिक आस्था, लोक संस्कृति और पर्यटन का अद्भुत संगम भी है।
पुष्कर मेला का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
पुष्कर भारत के सबसे प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहीं पुष्कर झील के तट पर यज्ञ किया था। इसी कारण से इसे “ब्रह्मा नगरी” कहा जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हजारों श्रद्धालु यहां पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इसी समय यहां पुष्कर मेला का आयोजन होता है, जो लगभग 7 से 10 दिनों तक चलता है।
ऊंट और पशु व्यापार की परंपरा
पुष्कर मेला का प्रमुख आकर्षण ऊंट मेला है। राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से हजारों ऊंट व्यापारी यहां अपने ऊंटों, घोड़ों, गायों, बैलों और अन्य पशुओं के साथ पहुंचते हैं। ऊंटों को रंग-बिरंगे कपड़ों, घंटियों और सजावटी आभूषणों से सजाया जाता है। मेले में ऊंटों की दौड़, सौंदर्य प्रतियोगिता और नृत्य प्रदर्शन जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिन्हें देखने हजारों देशी-विदेशी पर्यटक उमड़ते हैं। यह दृश्य किसी लोक पर्व से कम नहीं होता।
लोक संस्कृति और पारंपरिक प्रदर्शन
पुष्कर मेला राजस्थान की लोक संस्कृति की आत्मा को दर्शाता है। यहां की शामें लोक संगीत, कालबेलिया नृत्य, घूमर, पपेट शो (कठपुतली नृत्य), और लोक गीतों से सराबोर होती हैं। राजस्थान की पारंपरिक पोशाकें महिलाओं की रंगीन घाघरा-चोली और पुरुषों की पगड़ी इस मेले की रौनक को और बढ़ा देती हैं। स्थानीय कलाकारों के प्रदर्शन और हस्तशिल्प की झलक यहां हर कदम पर दिखाई देती है।
पुष्कर झील और धार्मिक अनुष्ठान
मेला केवल व्यापार और मनोरंजन का स्थल नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुष्कर झील के 52 घाटों पर श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान कर भगवान ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करते हैं। यह माना जाता है कि इस दिन झील में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर दीप जलाकर श्रद्धालु एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं, जो पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र
पुष्कर कैमल फेयर न केवल भारत के लोगों के लिए, बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी एक बड़ा आकर्षण है। अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया से हर साल हजारों सैलानी यहां आते हैं। वे यहां की संस्कृति, लोककला और ग्रामीण जीवनशैली को करीब से अनुभव करते हैं। कई विदेशी फोटोग्राफर और डॉक्यूमेंट्री मेकर इस मेले में भाग लेकर राजस्थान की झलक दुनिया तक पहुंचाते हैं।
हस्तशिल्प, भोजन और बाजार की रौनक
पुष्कर मेला में राजस्थानी हस्तशिल्प, चांदी के आभूषण, लाख की चूड़ियां, कढ़ाईदार कपड़े और ऊंट की खाल से बने उत्पाद खूब बिकते हैं। मेले के बाजारों में पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन जैसे दाल-बाटी-चूरमा, गट्टे की सब्जी, माखनिया लस्सी, और मालपुआ पर्यटकों के स्वाद को और खास बना देते हैं।
सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं और रोमांचक गतिविधियां
मेले में कई रोमांचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जैसे—
- मूंछ प्रतियोगिता
- दुल्हन सजा प्रतियोगिता
- रस्साकशी
- गेंद दौड़
- फोटोग्राफी प्रतियोगिता
ये कार्यक्रम लोगों के उत्साह और हंसी-खुशी का केंद्र बन जाते हैं।
पुष्कर की आध्यात्मिकता और शांति
भीड़-भाड़ के बीच पुष्कर अपनी आध्यात्मिक शांति के लिए भी जाना जाता है। यहां स्थित ब्रह्मा मंदिर, जो भारत में एकमात्र भगवान ब्रह्मा को समर्पित मंदिर है, श्रद्धालुओं का मुख्य तीर्थ स्थल है। झील के किनारे बैठकर सूर्यास्त देखना, ऊंट सफारी करना और रेगिस्तान की ठंडी हवा में लोक संगीत सुनना यह अनुभव जीवन भर याद रह जाता है।
पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
पुष्कर कैमल फेयर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार और आय का बड़ा स्रोत है। होटल, रेस्तरां, हस्तशिल्प बाजार, टैक्सी सेवाएं और ऊंट सफारी ऑपरेटरों को इस दौरान काफी लाभ होता है। राजस्थान सरकार भी इस मेले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट करती है, ताकि सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके।पुष्कर कैमल फेयर केवल एक मेला नहीं, बल्कि राजस्थान की आत्मा का उत्सव है जहां परंपरा, धर्म, कला, संगीत और संस्कृति एक साथ झूमते हैं। यह मेला भारत की उस विरासत को दर्शाता है जो समय के साथ और भी समृद्ध होती जा रही है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर की धरती पर उमड़ती यह भीड़ भारत की एकता, विविधता और उत्सवधर्मिता का प्रतीक बन चुकी है।
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