हिंदी बोलने पर गर्व महसूस करें
आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस है और हिंदी हमारी मातृभाषा है। जिसने हमें बोलना सिखाया, वही है हमारी मातृभाषा हिंदी। हमारे जन्म के बाद, हमारे मुंह से जो पहला शब्द निकलता है वह है मां न कि मम्मी और मॉम।
लेकिन आज हिंदी लुप्त हो जा रही है। बढ़ती पश्चिमी सभ्यता के बीच हिंदी कहीं अपना रास्ता ही खो बैठी है।
सुबह आंख खोलने के बाद और रात को सोने तक हम अंग्रेजी का ही राग आलापते है। न जानें क्या जादू कर दिया है इस अंग्रेजी ने?
बड़े शहर के किसी कोने में चले जाएं तो आप हिंदी बोलने वालों की संख्या तो अपनी उंगलियों में ही गिन लेंगे। क्यों शर्म आती है हमें हिंदी बोलने में?
क्या हिंदी बोलना कोई पाप है? अगर यह पाप नहीं है तो लोग हिंदी बोलने वालों को ऐसे क्यों देखते है कि हिंदी नहीं बोली आपकी इज्जत उतार दी है।
किसी बड़ी कंपनी में चले जाए लगता है अमेरिका में आ गए है। इंटरव्यू की तैयारी अच्छे से करके गए भी तो, हिंदी बोलने वाले तो इतनी अंग्रेजी को सुनकर ही सहम जाते है। उनकी स्थिति क्या करें क्या न करें वाली हो जाती है।
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आज भी किसी अच्छे रेस्टोरेंट में चले जाएं, किसी शॉपिग मॉल में चले जाएं सामने वाले इंसान को अंग्रेजी बोलने आए या नहीं आए लेकिन बोलने की पुरजोर कोशिश करते हैं। क्या हो जाएगा कि अगर हिंदी में बात कर लेंगे तो?
क्या हो गया है भारतीय को, क्यों उन्हें लगने लगा है कि अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलता। अपनी सोच को जरा आगे बढाए, आज हम हिंदी, संस्कृत को तवज्जोह नहीं देते वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों की देश में यह आजकल के बच्चों को संस्कृत पढ़ाई जा रही है। तो हम अपने बच्चों को हिंदी क्यों नहीं पढ़ा सकते। अंग्रेजी पढ़ाने के चक्कर में हम अपने बच्चे को न तो अंग्रेजी पढ़ा पाते हैं और न ही हिंदी पढ़ा पाते है। समय है सोच बदलने का, हिंदी को अहमियत देने का, अगर इसकी इज्जत नहीं करेंगे तो यह कहीं और अपने लिए प्यार सम्मान खोजने चली जाएंगी। इससे पहले की देर हो जाएं इसे सहज कर रखें इसकी इज्जत करें।
इसकी इज्जत करने वालों की कभी लज्जित नहीं होना पड़ा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने अमेरिका में जाकर हिंदी का हुंकार भरा था।
बॉलीवुड के जाने-माने एक्टर मनोज वाजपेयी जिन्होंने अंग्रेजी स्क्रीप्ट का बहिष्कार किया। उनकी हर मूवी लगभग हिट ही होती है।
टीवी जगत से राजनीति में कदम रखने वाली स्मृति ईरानी को ही देख लीजिए वह अपने ज्यादातर भाषण हिंदी में ही देती है। जेएनयू में देश विरोधी नारों के बाद स्मृति में लेफ्ट की सत्ता के बाद भी वहां हिंदी में तगड़ा भाषण दिया था।
सदीं के महा नायक अमिताभ बच्चन को ही देख ले जो ज्यादातर हिंदी और संस्कृत का प्रयोग करते हैं।
तो क्या इन लोगों को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है क्या? क्या ये अंग्रेजी नहीं बोल सकते हैं। अंग्रेजी इनका काम है लेकिन हिंदी तो इनकी मातृभाषा है।
आज देश में कई ऐसे लोग हैं जो आज भी हिंदी बोलने पर गर्व महसूस करते हैं। चलिए सोच बदलते है और “हिंदी को प्यार करें अंग्रेजी तो हमारी रोजी रोटी है।“