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PM Modi Japan Visit: जापान में पीएम मोदी का स्वागत, क्यों खास है Daruma Doll का तोहफ़ा?

PM Modi Japan Visit, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय दो दिवसीय दौरे पर जापान पहुंचे हुए हैं। यहाँ वे 15वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं,

PM Modi Japan Visit : पीएम मोदी का जापान दौरा, क्या है Daruma Doll की कहानी और मान्यता?

PM Modi Japan Visit, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय दो दिवसीय दौरे पर जापान पहुंचे हुए हैं। यहाँ वे 15वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, जिसमें दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग पर चर्चा हो रही है। जापान में पीएम मोदी का भव्य स्वागत किया गया और इसी दौरान उन्हें जापान की परंपराओं से जुड़ा एक अनोखा तोहफ़ा दारुमा डॉल (Daruma Doll) भेंट किया गया। यह उपहार न केवल जापान की संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसमें गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश भी छिपे हैं।

दारुमा डॉल: दिखने में कैसी होती है?

दारुमा डॉल जापान की सबसे मशहूर और पारंपरिक वस्तुओं में से एक है। यह गोल, खोखली और लाल रंग की गुड़िया होती है, जिसमें केवल चेहरा बना होता है। इसमें हाथ या पैर नहीं होते। इसकी खासियत यह है कि डॉल को चाहे जितना भी गिराएँ, यह बार-बार सीधी खड़ी हो जाती है। इस वजह से इसे जीवन में संघर्षों से लड़कर बार-बार उठ खड़े होने का प्रतीक माना जाता है।

दारुमा डॉल और मनोकामना पूरी होने की परंपरा

जापान में इस डॉल से जुड़ी एक अनोखी मान्यता है। यदि कोई व्यक्ति कोई लक्ष्य तय करता है या कोई मनोकामना रखता है, तो वह अपने पास एक दारुमा डॉल रखता है। परंपरा के अनुसार, लक्ष्य तय करने के बाद वह डॉल की एक आंख पर रंग भर देता है। इसके बाद जब उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है या मनोकामना पूरी होती है, तब वह दूसरी आंख पर भी रंग भर देता है। इस प्रक्रिया को सफलता और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतीक माना जाता है।

हर घर और मंदिर में दारुमा डॉल

जापान में दारुमा डॉल की लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि लगभग हर घर, दुकान और मंदिर में यह गुड़िया देखने को मिल जाती है। लोग इसे सौभाग्य, सफलता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानते हैं। जापानी संस्कृति में यह सिर्फ सजावट की वस्तु नहीं बल्कि उम्मीद और आत्मविश्वास का प्रतीक है। यही कारण है कि किसी नई शुरुआत, बिजनेस या जीवन के बड़े फैसलों में लोग इसे अपने साथ रखते हैं।

बोधिधर्म से जुड़ी उत्पत्ति

दारुमा डॉल की कहानी बौद्ध धर्म से गहराई से जुड़ी है। कहा जाता है कि यह गुड़िया बोधिधर्म (Bodhidharma) नामक एक भिक्षु का प्रतीक है, जिन्होंने पाँचवीं शताब्दी में जेन बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। मान्यता है कि बोधिधर्म ने कई वर्षों तक ध्यान (Meditation) किया और साधना में इतने लीन हो गए कि उनके हाथ और पैर काम करना बंद कर गए। दारुमा डॉल का बिना हाथ-पैर वाला स्वरूप उसी घटना की याद दिलाता है और इसे असीम धैर्य, समर्पण और साधना का प्रतीक माना जाता है।

लाल रंग का महत्व

हालाँकि दारुमा डॉल कई रंगों में उपलब्ध है और आजकल बाजार में नीले, हरे, पीले या यहां तक कि इंद्रधनुषी रंगों की भी डॉल्स मिलती हैं, लेकिन पारंपरिक रूप से इसका लाल रंग सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसका कारण यह है कि बोधिधर्म अक्सर लाल वस्त्र धारण करते थे और जापानी संस्कृति में लाल रंग को शक्ति, साहस और सौभाग्य से जोड़ा जाता है।

निर्माण प्रक्रिया: कला और धैर्य का संगम

दारुमा डॉल को बनाने की प्रक्रिया भी काफी दिलचस्प है। इसे आमतौर पर कागज, लकड़ी और गोंद से तैयार किया जाता है। इसे बनाने वाले कारीगर ध्यानपूर्वक डॉल का आकार देते हैं और इस तरह डिजाइन करते हैं कि यह गिरने के बाद हमेशा सीधी खड़ी हो जाए। यह विशेषता डॉल को और भी अनोखा बनाती है क्योंकि यह जीवन के संघर्षों से जुड़े गहरे संदेश को सरल तरीके से व्यक्त करती है।

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आधुनिक जीवन में महत्व

आज के आधुनिक समय में भी दारुमा डॉल का महत्व कम नहीं हुआ है। जापानी लोग अपने बड़े लक्ष्यों जैसे – परीक्षा पास करना, बिजनेस शुरू करना, घर खरीदना या कोई सपना पूरा करना – इन सभी मौकों पर दारुमा डॉल को अपने पास रखते हैं। यह उन्हें लगातार मेहनत करने और हार न मानने की याद दिलाती है।

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पीएम मोदी को दारुमा डॉल क्यों भेंट की गई?

जापान सरकार द्वारा पीएम मोदी को दारुमा डॉल भेंट करने का संदेश भी बहुत गहरा है। यह उपहार भारत-जापान रिश्तों को मजबूत बनाने और नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने की शुभकामनाओं का प्रतीक है। डॉल यह दर्शाती है कि दोनों देश हर चुनौती का सामना कर दोबारा खड़े होने और सफलता हासिल करने की क्षमता रखते हैं। दारुमा डॉल सिर्फ एक गुड़िया नहीं, बल्कि यह धैर्य, लक्ष्य, संघर्ष और सफलता का प्रतीक है। जापान में यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को प्रेरित करती रही है कि असफलता स्थायी नहीं होती और मेहनत तथा विश्वास से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। पीएम मोदी को मिली यह डॉल न केवल जापानी परंपरा की झलक है, बल्कि भारत-जापान की दोस्ती के नए अध्याय की भी निशानी है।

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