PM Modi: सत्र शुरू होने से पहले पीएम मोदी ने विपक्ष को दी नसीहत, “काम करें, तमाशा नहीं”
PM Modi, शीतकालीन सत्र की शुरूआत से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को एक साफ और सशक्त संदेश दिया है: संसद को ड्रामा या नारेबाज़ी का मंच नहीं, बल्कि देश-हित की राजनीति और डिलीवरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
PM Modi : संसद सत्र को लेकर पीएम मोदी सख्त, “हंगामा छोड़ें, काम पर आएं”
PM Modi, शीतकालीन सत्र की शुरूआत से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष को एक साफ और सशक्त संदेश दिया है: संसद को ड्रामा या नारेबाज़ी का मंच नहीं, बल्कि देश-हित की राजनीति और डिलीवरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि इस सत्र में “ड्रामा नहीं, डिलीरी होनी चाहिए”। उनका कहना है कि संसद अब सिर्फ फार्मैलिटी नहीं, बल्कि आम जनता की उम्मीदों, विकास एजेंडा और राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर काम करने का अवसर है। यही वजह है कि सत्र के दौरान सदन में कामकाज, नीति-निर्माण और बिल पासिंग को प्राथमिकता देने की मांग की गई है।
विपक्ष पर इशारों में कटाक्ष — ‘हार की निराशा’ राजनीति न बने
प्रधानमंत्री मोदी ने सीमाओं में रहकर याद दिलाया कि हाल ही में हुए विधानसभाओं के चुनावों के परिणामों को लेकर कुछ दलों की प्रतिक्रिया “हार की निराशा” पर आधारित लगती है। उन्होंने कहा कि इस सत्र में वे चाहते हैं कि विपक्ष उसी निराशा को संसद में अनावश्यक हंगामे या प्रदर्शन में न बदले। उनका यह भी कहना था कि नए सांसद, खासकर प्रथम-चरण में चुने गए एमपी को अपना काम दिखाने और आवाज़ उठाने का मौक़ा मिलना चाहिए। अगर विपक्ष सच में देश और जनता के हित में काम करना चाहता है, तो उसे पुनर्शीलता (responsibility) और सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए।
सरकार का एजेंडा: कामकाजी सत्र, तेज़ी से बिल पासिंग
पीएम मोदी ने शीतकालीन सत्र को देश की प्रगति की दिशा में एक ऊर्जा देने वाला सत्र घोषित किया। उन्होंने कहा कि यह सत्र सिर्फ रूप-रेखा भर नहीं, बल्कि उस विकास एजेंडा को गति देने का माध्यम हो। वहीं, सरकार की ओर से बताया जा रहा है कि इस सत्र में कई अहम विधेयक पेश किए जाने हैं। ऐसे में संसद की कार्य-दक्षता और समय प्रबंधन की ज़रूरत और भी बढ़ जाती है जो केवल ‘डिलिवरी’ की सोच से संभव है, न कि ‘ड्रामा’ से।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: क्या विपक्ष तैयार है?
मोदी के इस बयान पर विपक्षी दलों ने तीखा पलटवार किया। Indian National Congress की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि संसद में मुद्दों पर बात करना, प्रश्न पूछना और लोकतांत्रिक दलों का दायित्व निभाना “ड्रामा” नहीं — लोकतंत्र की पहचान है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार खुद संसद में कई बार ड्रामा करती रही है; इसलिए विपक्ष का नेक इरादा सवाल उठाना ड्रा मा नहीं, जिम्मेदारी का हिस्सा है। कुछ दलों का आरोप है कि सत्र अवधि घटाकर, समय कम देकर, और议事 प्रक्रियाओं को सीमित कर सरकार उद्देश्य-निर्माण को ही प्राथमिकता दे रही है, बजाय कि लोकतांत्रिक बहस और विमर्श को।
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लोकतंत्र बनाम राजनीति: क्या संसद में सिर्फ डिलिवरी पर्याप्त है?
प्रधानमंत्री मोदी की जो अपील है कि संसद में काम हो, ड्रामा नहीं वो एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है। भारत की तेज़ आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए राजनीतिक स्थिरता, विधायी सुधार और टीम वर्क आवश्यक है। सत्ता-संघर्ष की बजाय परिणाम-उन्मुख राजनीति देश की प्रगति को गति देती है। लेकिन लोकतंत्र सिर्फ परिणाम नहीं, प्रकिया भी है उसमें बहस, सवाल, विरोध, और आलोचना की आज़ादी शामिल होती है। विपक्ष का काम जनता की आवाज़ उठाना भी है, ताकि नीतियाँ संतुलित और सबके हित में हों। अगर सिर्फ “डिलिवरी” पर ध्यान होगा और “वाद–विवाद” को दबाया जाएगा, तो लोकतंत्र की आत्मा कमजोर हो सकती है। इसलिए, सवाल यही बनता है क्या संसद और लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखते हुए कामकाजी सत्र संभव है? या फिर लोकतंत्र की प्रकिया का न्यूनकरण कर सिर्फ तेजी से काम कराने की राजनीति होगी?
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इस सत्र की चुनौतियाँ और उम्मीदें
इस शीतकालीन सत्र में सरकार ने जो व्यापक विधेयक पेश करने की योजना बनाई है, उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदन में विपक्ष सकारात्मक भूमिका निभाए या फिर शुरू से ही हंगामा शुरू कर दे। अगर विपक्ष मिलकर मुद्दों पर विमर्श करे, मतभेदों को लोकतंत्र के दायरे में रखते हुए प्रस्तावों को और बेहतर बनाने का प्रयास करे — तो यह सत्र वास्तव में “डिलिवरी” साबित हो सकता है। लेकिन अगर ड्रामा और नकारात्मक राजनीति जारी रही, तो सत्र अंततः नाकाम रहेगा — और जनता को फिर अतिसक्रिया (over-behaviour) का ही सामना करना होगा।
संसद का उद्देश्य — नीति, विकास और जनता की भलाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश स्पष्ट है: संसद केवल राजनीति का अखाड़ा नहीं, बल्कि नीति-निर्माण, विकास और जनहित की दिशा में समाधान खोजने का प्रमुख माध्यम है। “ड्रामा नहीं, डिलिवरी” का नारा एक अनुस्मारक है कि सांसदों की जिम्मेदारी सिर्फ प्रदर्शन करना नहीं, बल्कि अपने क्षेत्रों और देश के लिए ठोस काम करना है। लेकिन लोकतंत्र सिर्फ फैसलों तक सीमित नहीं — यह बहस, आलोचना और विचार-विमर्श से भी जुड़ा है। इसलिए, इस सत्र में अगर संसद सदस्यों ने जिम्मेदारी, संयम और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया, तो आने वाले समय में भारत इसी दिशा में आगे बढ़ सकता है।
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