Mumbai local blast: 2006 मुंबई ब्लास्ट केस, हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को किया बरी
Mumbai local blast, 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में एक बड़ा मोड़ सामने आया है।
Mumbai local blast : 2006 धमाके केस में यू-टर्न, कोर्ट ने रद्द की फांसी, कहा सबूत नहीं
Mumbai local blast, 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में एक बड़ा मोड़ सामने आया है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने 18 जुलाई 2025 को इस केस में दोषी करार दिए गए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने यह फैसला सबूतों के अभाव और जांच में खामियों के आधार पर सुनाया, जिसके तहत पहले इन आरोपियों को फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
क्या था मामला?
11 जुलाई 2006 को मुंबई की सात लोकल ट्रेनों में 11 मिनट के अंदर लगातार धमाके हुए थे। इन धमाकों में कुल 189 लोगों की मौत हुई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। यह घटना भारत के इतिहास की सबसे बड़ी आतंकी घटनाओं में से एक मानी जाती है। इन धमाकों को लेकर कहा गया था कि इसमें पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और भारतीय स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के सदस्यों का हाथ था।
निचली अदालत का फैसला
2015 में महाराष्ट्र की एक विशेष MCOCA अदालत ने इस मामले में 12 में से 5 आरोपियों को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने माना था कि आरोपियों ने साजिश रचकर विस्फोटक तैयार किए और ट्रेनों में बम लगाकर धमाके किए।
हाई कोर्ट का फैसला क्यों अलग?
बॉम्बे हाई कोर्ट के दो जजों की पीठ ने पाया कि निचली अदालत के फैसले में कई महत्वपूर्ण कानूनी खामियां थीं। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर सका। जिन बयानों और सबूतों के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया था, वे या तो संदिग्ध थे या कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं थे। कई आरोपियों ने पुलिस के समक्ष दिए गए कबूलनामे को बाद में कोर्ट में खारिज कर दिया था। कोर्ट ने माना कि यह कबूलनामे बिना पर्याप्त स्वतंत्र पुष्टि के स्वीकार नहीं किए जा सकते। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियों द्वारा की गई जांच में गंभीर खामियां थीं, जिससे पूरे केस की वैधता पर सवाल खड़े हुए।
अब आगे क्या?
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद यह तय है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है। महाराष्ट्र सरकार के अधिवक्ता ने संकेत दिया है कि वे फैसले की समीक्षा करेंगे और सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार करेंगे।
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
जहां एक ओर आरोपी और उनके परिवार न्याय मिलने पर राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं धमाकों में मारे गए लोगों के परिजन दुखी और स्तब्ध हैं। उनका कहना है कि इतने सालों बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला। यह फैसला भारत की न्यायिक प्रक्रिया, जांच की गुणवत्ता और आतंकवाद से जुड़े मामलों में सबूतों की अहमियत को उजागर करता है। यह केस अब न्याय, कानून और राजनीति के बीच एक संवेदनशील बहस का विषय बन चुका है।
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