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lala hansraj death anniversary: लाला हंसराज पुण्यतिथि, आधुनिक शिक्षा और समाज सुधार के अग्रदूत को नमन

lala hansraj death anniversary, भारत के शिक्षा और समाज सुधार के इतिहास में लाला हंसराज का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि समाज सुधारक, राष्ट्रप्रेमी और आर्य समाज के सच्चे अनुयायी भी थे।

lala hansraj death anniversary : लाला हंसराज, राष्ट्रप्रेम, सादगी और समर्पण की मिसाल

lala hansraj death anniversary, भारत के शिक्षा और समाज सुधार के इतिहास में लाला हंसराज का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वे न केवल एक महान शिक्षक थे, बल्कि समाज सुधारक, राष्ट्रप्रेमी और आर्य समाज के सच्चे अनुयायी भी थे। उनकी पुण्यतिथि पर हम उस व्यक्तित्व को याद करते हैं जिसने अपना पूरा जीवन शिक्षा के प्रसार और समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।

लाला हंसराज का प्रारंभिक जीवन

लाला हंसराज का जन्म 19 अप्रैल 1864 को पंजाब के होशियारपुर जिले के बाजवारा नामक गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम लाला हंसराज महता था। बचपन से ही वे अत्यंत प्रतिभाशाली, सरल और सत्यनिष्ठ थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से हुई और आगे की पढ़ाई उन्होंने लाहौर से पूरी की। पढ़ाई के दिनों से ही उनमें देशभक्ति और समाज सेवा की भावना गहराई से जुड़ी हुई थी।

आर्य समाज से जुड़ाव

लाला हंसराज पर स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। स्वामी दयानंद की “सत्यार्थ प्रकाश” पुस्तक ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उन्होंने आर्य समाज के सिद्धांतों को अपनाते हुए जीवनभर वेदों के प्रचार और सामाजिक सुधार के लिए कार्य किया। लाला हंसराज, स्वामी दयानंद के सच्चे शिष्य कहे जा सकते हैं जिन्होंने “सत्य, शिक्षा और सेवा” को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।

डीएवी आंदोलन की शुरुआत

1886 में स्वामी दयानंद सरस्वती की स्मृति में ‘दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज ट्रस्ट एंड मैनेजमेंट सोसाइटी’ की स्थापना की गई, जिसे संक्षेप में डीएवी (DAV) कहा जाता है। लाला हंसराज इस आंदोलन के प्रमुख संस्थापक और पहले प्रिंसिपल बने।
उन्होंने 14 वर्षों तक बिना वेतन के डीएवी कॉलेज लाहौर के प्रिंसिपल के रूप में कार्य किया। यह समर्पण इस बात का प्रतीक है कि शिक्षा उनके लिए केवल पेशा नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम थी। लाला हंसराज ने अंग्रेज़ी शिक्षा प्रणाली में भारतीय संस्कार और वेदिक आदर्शों को जोड़ने का कार्य किया।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

लाला हंसराज ने भारत में आधुनिक शिक्षा और वैदिक मूल्यों का संगम कराया। उन्होंने विद्यार्थियों में न केवल ज्ञान का संचार किया, बल्कि चरित्र, अनुशासन और देशप्रेम की भावना भी जागृत की। उनके प्रयासों से डीएवी संस्थान पूरे भारत में फैले और आज भी लाखों विद्यार्थी वहां से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। लाला हंसराज का उद्देश्य था कि भारतीय युवा पश्चिमी ज्ञान प्राप्त करें लेकिन अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़े रहें।

समाज सुधार और मानवीय सेवा

लाला हंसराज केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहे। वे समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वास और छुआछूत के घोर विरोधी थे। उन्होंने महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। जब भी देश पर कोई संकट आया, उन्होंने निःस्वार्थ भाव से राहत कार्यों में योगदान दिया। प्लेग और अकाल जैसे कठिन समय में भी उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों की सेवा की। उनका मानना था कि “सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है”।

देशभक्ति और नैतिकता के प्रतीक

लाला हंसराज का जीवन सादगी और अनुशासन का अद्भुत उदाहरण था। वे अत्यंत देशभक्त थे और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आरंभिक चरणों में उन्होंने युवाओं में स्वदेश प्रेम की भावना जगाई। वे मानते थे कि शिक्षित युवा ही देश की असली शक्ति हैं। उनका पूरा जीवन राष्ट्रहित के लिए समर्पित था।

उनकी शिक्षाएँ और विचार

लाला हंसराज का मानना था कि शिक्षा केवल परीक्षा पास करने का साधन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का माध्यम है।
उनके कुछ प्रमुख विचार थे:

  1. “सच्ची शिक्षा वही है जो मनुष्य को अच्छा नागरिक बनाए।”
  2. “विद्या का उद्देश्य जीवन को उपयोगी और समाज के लिए प्रेरणादायक बनाना है।”
  3. “देश की प्रगति तभी संभव है जब युवाओं में आत्मविश्वास और नैतिकता होगी।”

पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

14 नवंबर 1938 को लाला हंसराज ने इस संसार को अलविदा कहा। उनकी मृत्यु भारतीय शिक्षा जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। परंतु उनका कार्य और विचार आज भी जीवंत हैं। हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर डीएवी संस्थानों और आर्य समाज के सदस्य उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनके नाम पर आज भी अनेक स्कूल, कॉलेज और संस्थान कार्यरत हैं जो उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ा रहे हैं।

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लाला हंसराज की विरासत

आज लाला हंसराज का नाम आधुनिक भारत के उन महान शिक्षकों में गिना जाता है जिन्होंने शिक्षा को समाज सुधार का माध्यम बनाया। डीएवी आंदोलन के माध्यम से उन्होंने जो बीज बोया था, वह आज एक विशाल वृक्ष बन चुका है। उनकी सोच ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को नई दिशा दी, जिसमें नैतिकता, संस्कार और आधुनिकता का संतुलन दिखाई देता है।

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समापन

लाला हंसराज का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने हमें सिखाया कि सच्चा शिक्षक वह है जो केवल किताबें नहीं पढ़ाता, बल्कि जीवन जीने की राह दिखाता है। उनकी पुण्यतिथि पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भी शिक्षा और समाज सेवा को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं। लाला हंसराज की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं। वे सदा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे एक महान शिक्षक, सच्चे आर्य और समाज सुधारक के रूप में।

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