भारत

Hindi News Today: इंडिगो संकट ने खोली भारत की एविएशन सिस्टम की पोल  यात्रियों के पास न ताक़त, न विकल्प

इंडिगो के नेटवर्क में एक हफ्ते तक चलने वाले संकट ने यह साफ कर दिया कि भारत में विमानन व्यवस्था मजबूत ही नहीं, बल्कि यात्रियों के अधिकार बेहद कमज़ोर हैं। जिस एयरलाइन ने उनकी यात्रा बिगाड़ी, उन्हीं के पास लौटना उनकी मजबूरी है क्योंकि विकल्प लगभग न के बराबर हैं।

Hindi News Today:  CJI सूर्यकांत की पीठ: “कानून का सवाल खुला है

Hindi News Today: यहां समस्या अचानक नहीं हुई। 18 महीने पहले ही पायलट ड्यूटी-रेस्ट की नई गाइडलाइंस की डेडलाइन तय कर दी गई थी। यानी चेतावनी पहले से थी फिर भी तैयारी अधूरी रही। एयरलाइन जितनी बड़ी होती है, उसके गिरने का असर उतना ही भारी।

हाल ही में Supreme Court of India (एससी) की पीठ, जिसकी अगुवाई CJI सूर्यकांत कर रहे हैं, ने एक अहम याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि “कानून का सवाल खुला है” — यानी बच्चों को उनकी माँ की जाति के आधार पर SC (अनुसूचित जाति) प्रमाण-पत्र देने का रास्ता पूरी तरह से बंद नहीं है। पुडुचेरी की एक नाबालिग लड़की की माँ ने अनुरोध किया था कि तलाक के बाद उसके तीन बच्चों — दो बेटियाँ और एक बेटा — को उनकी माँ की जाति (आदि-द्रविड़) के आधार पर SC प्रमाण-पत्र दिया जाए। इन बच्चों के पिता एक “सामान्य” जाति के थे और उनका दायित्व बच्चों के पालन-पोषण का नहीं था; इसलिए माँ ने माँ के अनुजातीय प्रमाणपत्र के आधार पर आवेदन किया था।

 संसद में यह चर्चा सिर्फ एक गीत तक सीमित नहीं रही। यह बहस नागरिक-पहचान, अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता और भारत की धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक संरचना से जुड़ी है। ओवैसी समेत कई सांसदों का तर्क है कि अगर राष्ट्रवाद को धार्मिक रंग दिया गया तो यह भारत की विविधता की मूल भावना को चोट पहुंचाएगा।

दुनिया से सीखने वाले केस

दुनिया के परिपक्व मार्केट्स में भी एयरलाइंस क्रू की कमी, पुराने सिस्टम और गलत रोस्टरिंग के कारण चरमराई हैं

  • 2017: यूरोप की रायनएयर ने 6 महीने में 20,000 फ्लाइट्स कैंसिल कीं
  • 2022: अमेरिका की साउथवेस्ट का सॉफ्टवेयर स्नोस्टॉर्म में फेल, 16,700 उड़ानें रद्द
  • ब्रिटिश एयरवेज को 2017 व 2022 में IT फेलियर झेलना पड़ा

इन सभी मामलों में एक चीज़ कॉमन थी  बिना बफर वाला सिस्टम + लगातार प्रेशर = पूरा नेटवर्क ठप

इंडिगो का मामला अलग क्यों है?

यहां समस्या अचानक नहीं हुई। 18 महीने पहले ही पायलट ड्यूटी-रेस्ट की नई गाइडलाइंस की डेडलाइन तय कर दी गई थी। यानी चेतावनी पहले से थी फिर भी तैयारी अधूरी रही। एयरलाइन जितनी बड़ी होती है, उसके गिरने का असर उतना ही भारी।

भारत vs दुनिया: यात्रियों को क्या मिलता है?

देश देरी/रद्द होने पर मुआवजा
यूरोप 250–600 यूरो + खाना + होटल
अमेरिका पॉइंट्स/रिफंड + रहने का खर्च
भारत सिर्फ खाना और रिफंड

भारत का पैसेंजर राइट्स चार्टर इतना हल्का है कि एयरलाइंस के लिए जवाबदेही ऑप्शनल बन जाती है।
इसीलिए उन्हें पता है “कितना भी बुरा अनुभव हो, लोग वापस आएंगे ही।

पायलट सेफ्टी और यात्रियों की सेफ्टी खतरे में?

इंडिगो को पायलट थकान कम करने वाले नियमों में राहत दी गई ताकि नेटवर्क चल सके।

लेकिन सवाल:जब नियम विवशता में बदले जा सकते हैं, तो सुरक्षा की असली कीमत कौन चुकाएगा?

भारत में पिछले 15 साल में 3 बड़े एयरक्रैश हो चुके हैं।  जांच में कारण मिलते हैं, मगर जिम्मेदारी तय नहीं होती—
अंत में नुकसान पायलट और यात्रियों का ही।

आखिर बदलाव कब होगा?

आज भारतीय यात्री सिस्टम पर भरोसा करने को मजबूर हैं—

  • टिकट महंगी
  • सेवाएँ कमजोर
  • गड़बड़ी पर कोई उपाय नहीं

फिर भी उन्हें सिर्फ चुप रहना पड़ता है क्योंकि

“इस देश के आसमान में विकल्प नहीं हैं”

जब तक जवाबदेही की कीमत एयरलाइंस को नहीं चुकानी पड़ेगी
तब तक इंडिगो जैसी रुकावटें
  हादसों में बदलने का खतरा बनाए रखेंगी।

 SC प्रमाण-पत्र मामले में नई व्याख्या

हाल ही में Supreme Court of India (एससी) की पीठ, जिसकी अगुवाई CJI सूर्यकांत कर रहे हैं, ने एक अहम याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि “कानून का सवाल खुला है” — यानी बच्चों को उनकी माँ की जाति के आधार पर SC (अनुसूचित जाति) प्रमाण-पत्र देने का रास्ता पूरी तरह से बंद नहीं है। पुडुचेरी की एक नाबालिग लड़की की माँ ने अनुरोध किया था कि तलाक के बाद उसके तीन बच्चों — दो बेटियाँ और एक बेटा — को उनकी माँ की जाति (आदि-द्रविड़) के आधार पर SC प्रमाण-पत्र दिया जाए। इन बच्चों के पिता एक “सामान्य” जाति के थे और उनका दायित्व बच्चों के पालन-पोषण का नहीं था; इसलिए माँ ने माँ के अनुजातीय प्रमाणपत्र के आधार पर आवेदन किया था। 

पदनामिक अधिसूचना (5 मार्च 1964 व 17 फरवरी 2002) और गृह मंत्रालय के निर्देशों के तहत सामान्यतः पिता की जाति व उसके राज्य / UT में निवासी होने की स्थिति को प्रमाण-पत्र देने के आधार माना जाता रहा है।पूर्व में, 2003 में Punit Rai vs Dinesh Chaudhary मामले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि “परंपरागत हिंदू कानून” के अनुसार, पितृ-जाति निर्णायक होगी। 2012 में भी Rameshbhai Dabhai Naika vs Gujarat में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बच्चे की जाति तय करने में पिता की जाति को प्राथमिकता दी जा सकती है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं कि हिम् – यदि मां SC/ST से हो और उसे बचपन से उसी समुदाय में पालन-पोषण मिला हो, तो मां की जाति पर भी विचार किया जा सकता है। हालिया फैसले में CJI सूर्यकांत की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि सिर्फ पिता की जाति को तय मान लेना अब अविवादित नहीं रहा। उन्होंने कहा “बदलते समय के साथ, मां की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं?इसका मतलब है: यदि कोई बच्चा तय कर सके कि वह मां की ओर से SC/ST समुदाय से आता है और उसका पालन-पोषण व सामाजिक पहचान उस समुदाय में रही है — तो उसे SC प्रमाण-पत्र पाने का अवसर मिल सकता है। यह फैसला सामाजिक न्याय, समानता और युग-अनुकूल संवैधानिक व्याख्या की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। 

Read More: International Choreographers Day: कोरियोग्राफी की कला का सम्मान, इंटरनेशनल कोरियोग्राफर्स डे 2026

वंदे मातरम् बहस पर ओवैसी की आपत्ति: “देशभक्ति को धर्म से न जोड़ें”

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर हुई चर्चा में कहा कि भारत को आज़ादी इसलिए मिली क्योंकि “हमने मुल्क और मजहब को एक नहीं बनाया।” उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी नागरिक पर राष्ट्रगीत थोपना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

ओवैसी ने कहा कि सरकार देशभक्ति को धार्मिक प्रतीकों से जोड़कर नागरिकों की निष्ठा का परीक्षण नहीं कर सकती। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं होती, इसलिए किसी को वंदे मातरम् गाने के लिए धार्मिक रूप से मजबूर नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि संविधान “We the People” से शुरू होता है, और यही भारत की पहचान है — धार्मिक पहचान नहीं। इसलिए “वफादारी का सर्टिफिकेट” किसी गीत के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए।

ओवैसी ने गरीबी, बेरोजगारी और असमानता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि असली देशभक्ति इन समस्याओं को खत्म करने में दिखनी चाहिए, न कि सिर्फ नारे लगाने में।

विपक्ष और अन्य दलों की राय: वंदे मातरम् का “असली भाव” समझने की अपील

बहस में कई सांसदों ने कहा कि वंदे मातरम् राष्ट्र की आत्मा है और इसके मूल भाव — प्राकृतिक सौंदर्य, मातृभूमि प्रेम, किसान-जीवन — को समझना ज़रूरी है। कुछ नेताओं ने पर्यावरण व कृषि संकट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जब नदियाँ प्रदूषित हों और हवा जहरीली हो, तब “सुजलाम-सुफलाम” का संदेश अधूरा रह जाता है।

मायने  क्यों यह बहस ज़रूरी है

  • यह विवाद सिर्फ एक गीत या नारों तक सीमित नहीं है; यह सवाल है कि भारत में नागरिक-पहचान, संविधान और धर्म-स्वतंत्रता किस आधार पर तय होगी।
  • ऐसा किसी एक धार्मिक पहचान या सांकेतिक राष्ट्रवाद को जबरदस्ती थोपने जैसा हो सकता है — जो लोकतंत्र, बहुलतावाद और संवैधानिक समता के खिलाफ है।
  • सामाजिक एकता, विविधता और संविधान की आत्मा को बचाए रखने के लिए यह बहस अहम है — खासकर उन नागरिकों के लिए, जो धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक रूप से अल्पसंख्यक हैं।

We’re now on WhatsApp. Click to join.

अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com

Back to top button