Breakfast in Karnataka Part 2: सिद्धारमैया पहुंचे डीके शिवकुमार के घर, कर्नाटक कांग्रेस का संकट क्या अब होगा खत्म?
Breakfast in Karnataka Part 2, कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रही रस्साकशी एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान के दरवाज़े पर पहुंच चुकी है।
Breakfast in Karnataka Part 2 : ब्रेकफास्ट मीटिंग पार्ट-2, क्या सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार साथ मिलकर कांग्रेस के भीतर के झगड़े को रोक पाएंगे?
Breakfast in Karnataka Part 2, कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रही रस्साकशी एक बार फिर कांग्रेस हाईकमान के दरवाज़े पर पहुंच चुकी है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके डिप्टी डीके शिवकुमार के बीच शनिवार सुबह हुई ब्रेकफास्ट मीटिंग ने फिलहाल विवाद को शांत तो कर दिया, लेकिन भविष्य की तस्वीर अब भी धुंधली है। दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस से यह संकेत तो साफ मिल गया कि दिसंबर में होने वाले विधानसभा सत्र से पहले मुख्यमंत्री पद का बदलाव नहीं होने जा रहा। लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि विवाद पूरी तरह सुलझा है ऐसा दावा अभी नहीं किया जा सकता।
ब्रेकफास्ट मीटिंग ने क्या बदला?
बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने एक बात खुलकर कही वे हाईकमान का फैसला स्वीकार करेंगे। दोनों ने यह भी कहा कि उनके बीच कोई गुटबाज़ी नहीं है और वे 2028 का चुनाव भी एकजुट होकर लड़ेंगे। फिर भी दोनों में से किसी नेता ने यह संकेत नहीं दिया कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर अपने-अपने दावों से पीछे हटने का मन बना लिया है। यानी, ब्रेकफास्ट मीटिंग ने टकराव को शांत जरूर किया है, लेकिन समस्या को हल नहीं किया। अब गेंद पूरी तरह से कांग्रेस हाईकमान के पाले में है, जिसने इस मीटिंग के जरिए सिर्फ इतना समय हासिल कर लिया है कि वह सही मौके पर फैसला सोच-समझकर कर सके। अब बड़ा सवाल यह है क्या यह समय विवाद को स्थायी समाधान तक ले जाने के लिए पर्याप्त होगा?
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2023 की प्रचंड जीत और नई चुनौतियां
2023 के विधानसभा चुनाव में 135 सीटों के साथ कांग्रेस ने दक्षिण भारत के इस महत्वपूर्ण राज्य में शानदार वापसी की थी। कांग्रेस ने जनता के सामने सामाजिक कल्याण, आर्थिक राहत और जनहितकारी योजनाओं का मजबूत वादा रखा था। पार्टी ने दावा किया था कि कर्नाटक को वह एक ऐसे मॉडल स्टेट के रूप में विकसित करेगी जो कांग्रेस की नई नीतियों का प्रतीक बने और भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले अधिक जनोन्मुखी दिखाई दे। लेकिन सत्ता में आने के बाद वादों के बोझ तले सरकार लड़खड़ाने लगी। मुफ्त योजनाओं और बड़े आर्थिक वादों ने वित्तीय संतुलन को चुनौती दी, और इन्हीं परिस्थितियों में सरकार की कमान 77 वर्षीय सिद्धारमैया के हाथों में थी। सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं, जो ओबीसी वर्ग का हिस्सा है और जिसकी आबादी प्रदेश में करीब 8 प्रतिशत है। उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता पूरे कर्नाटक में मजबूत मानी जाती है। ओबीसी समुदाय में उनका प्रभाव भी कांग्रेस की नई “पिछड़ा वर्ग केंद्रित” राजनीति को मजबूत करता है। लेकिन यह भी सच है कि सत्ता के इस समीकरण में सिर्फ सिद्धारमैया ही नहीं, बल्कि डीके शिवकुमार भी उतने ही महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं।
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डीके शिवकुमार: कांग्रेस का ‘मजबूत स्तंभ’ और दूसरा पावर सेंटर
डीके शिवकुमार लंबे समय से कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शामिल रहे हैं। गांधी परिवार के करीबी और प्रदेश संगठन के मुखिया के रूप में उन्होंने कांग्रेस को लंबे समय बाद सत्ता में वापसी दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। उनकी संगठनात्मक पकड़, संसाधनों पर नियंत्रण और राजनीतिक प्रभाव ने उन्हें प्रदेश राजनीति में एक समानांतर शक्ति केंद्र बना दिया है। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक उन्हें कांग्रेस का ‘ATM’ भी कहते हैं, क्योंकि संगठनात्मक संकट के समय वे हमेशा पार्टी का सहारा बने। ऐसे में, जब कांग्रेस की सरकार बनी, तो डीके शिवकुमार का मुख्यमंत्री पद पर दावा स्वाभाविक था। मीटिंग और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने भले खुलकर कुछ न कहा हो, लेकिन पिछले बयानों में वे स्पष्ट कर चुके हैं कि—
- उन्हें “वादे के अनुसार” ढाई साल बाद मुख्यमंत्री पद मिलने का भरोसा दिया गया था।
- और वे इस दावे को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
यानी उनका संदेश साफ है वे अपना अधिकार छोड़ने वाले नहीं हैं।
हाईकमान की सबसे बड़ी परीक्षा
कर्नाटक कांग्रेस में यह पहला मौका नहीं है जब दोनों नेताओं के बीच मतभेद सामने आए हों।
लेकिन इस बार हालात अधिक संवेदनशील हैं, क्योंकि—
- कांग्रेस केंद्र में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है
- दक्षिण भारत में उसकी सबसे मजबूत सरकार कर्नाटक में है
- और लोकसभा चुनावों में कर्नाटक से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद भी इसी सरकार पर टिकी है
ऐसे में दिल्ली में बैठा हाईकमान किसी भी तरह की टूट, नाराज़गी या विद्रोह का जोखिम नहीं उठा सकता।
इसलिए वर्तमान स्थिति का सार यह है—
- सिद्धारमैया अपने पद पर बने रहना चाहते हैं और उनका जनाधार व अनुभव उनके पक्ष में है।
- डीके शिवकुमार अपना दावा छोड़ने को तैयार नहीं हैं और उनकी राजनीतिक ताकत उन्हें पीछे हटने नहीं देती।
- दोनों नेता “साथ काम करने” की बात करते हैं, लेकिन भीतर की खींचतान खत्म नहीं हुई है।
अब यह तय करना कि मुख्यमंत्री पद किसे मिले, और कब मिले—पूरी तरह हाईकमान पर निर्भर है।
कर्नाटक कांग्रेस एक बार फिर मोड़ पर
ब्रेकफास्ट मीटिंग ने माहौल को शांत जरूर किया है, लेकिन संकट खत्म नहीं हुआ। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों अपनी-अपनी जगह मज़बूत हैं और दोनों जानते हैं कि दांव बड़ा है। पार्टी ने फिलहाल टकराव को कुछ समय के लिए टाल दिया है, लेकिन अंतिम फैसला जल्द ही सामने आएगा, क्योंकि दिसंबर का सत्र नज़दीक है और लोकसभा चुनाव भी दूर नहीं।
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