(फ्रेंडशिप डे स्पेशल)बचपन के बाद तो दोस्ती का मतलब ही बदल जाता है
आज की भाग दौड़ भरी दुनिया में लोग अपनी निजी जिदंगी में इतना व्यस्त रहते है कि काम के अलावा कोई दूसरा काम ही नहीं कर पाते है। बात करें कि किसी से मिलने की तो ऐसा लगता है कि किसी ने ak47 दिखाकर जान लेने की बात कह दी है।
लेकिन जब हम बचपन में होते हैं तो इन सब चीजें को तावज्जो ही नहीं देते है, क्योंकि वो एक ऐसा दौर होता है जब हमारे पास एक ऐसी आजादी होती है। जिसका वर्णन किसी शब्द से नहीं किया जा सकता है।
फ्रेॆडशिप डे
आज बात करते है बढ़ती उम्र के साथ हमारी दोस्ती और रिश्तों में आती दूरियों की। बढ़ती उम्र और करियर की भाग दौड़ में कई बार हम उस जहां पहुंच जाते है। जिसमें हम अकेले ही रह जाते हैं।
एक परिवार के साथ- साथ एक दोस्त भी भगवान की अनमोल देन है हमारे जीवन में। लेकिन बढ़ती उम्र और करियर की भाग दौड़ में कब हम उन्हें पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते है पता ही नहीं चलता।
प्यारा से बचपन
जहां कभी ऐसा समय होता है जब हम अपनी छोटी सी छोटी बात भी उससे शेयर करते है। लेकिन बाद में एक ऐसा भी समय आता है जब बड़ी से बड़ी घटना को भी नहीं बता पाते हैं।
बचपन की वो प्यारी दोस्ती जिसमें हम कभी एक साथ स्कूल में लंच बॉक्स को शेयर करते थे। लेकिन बाद में तो ऐसा मौका आ जाता है कि एक साथ कभी एक कप चाय पीने का भी मौका नहीं मिलता है।
व्यस्तता भरी जिदंगी
याद है वह छोटी सी दुनिया जब स्कूल नहीं जाने का मन नहीं होता तो रात को ही बता दिया जाता है कि कल जाने का मन नहीं है। लेकिन आज ऑफिस जाने का मन हो या न हो बिना एक दूसरे बताए ही चले जाते हैं।
बदल गई है बचपन की वह प्यारी सी दुनिया जहां कभी हम दोनों एक साथ कितने सपने देखते थे। आज अपने सपने को पूरा करने के चलते एक दूसरे को भूल गए है।
बदलते दौर में कितना बदल जाते है कभी एक साथ रहने वाले दोस्त आज साल में एक बार भी नहीं मिल पाते है।
बिना मतलब के अपने दोस्त को फोन नहीं करते है। हाल चाल तो पूछना दूर की बात है नंबर डिलीट होने का बहाना चिपका देते हैं।
चीजों को बदलना जरूरी है क्योंकि कई बातें ऐसी होती है जो सिर्फ एक दोस्त को ही बता सकते हैं। इसलिए दोस्तों को समय- समय पर नहीं ब्लकि कभी हालचाल पूछने और चाय पीने के लिए मिलें।