आइए, जानते है टैंकर घोटाले का सच
आजकल एक घोटाला बहुत चर्चा में, दिल्ली में टैंकर घोटाला। टैंकर घोटाला का क्या सच है ये कम लोग ही जानते है। आइए हम आप को बताते है, टैंकर घोटाले का सच।
क्या है टैंकर घोटाला?
टैंकर घोटाला साल 2010-11 के दौरान सामने आया था। दरअसल कुछ इलाकों में पानी की सप्लाई के लिए टैंकर किराए पर लेने थे। पानी की सप्लाई उन इलाकों में होनी थी जिन इलाकों में पाइपलाइन नहीं थी। पानी की सप्लाई के लिए स्टेनलेस स्टील के 450 टैंकर किराए पर लिए जाने थे। 2010 में सरकार ने यह टेंडर निकाला था और उस वक्त टेंडर की कॉस्ट 50.98 करोड़ रुपये रखी गई थी।
सरकार द्वारा पास किया गया टेंडर रद्द कर दिया गया और अगले डेढ़ साल में चार बार टेंडर निकाले गए। इस बार टेंडर की कॉस्ट 50.98 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 637 करोड़ की गई और दिसंबर 2011 में 10 साल के लिए टैंकर को किराए पर लिए गए थे।
क्या कहती है फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट?
इस घोटाले पर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी एक रिपोर्ट दी है। जिसमें कहा गया है कि दो कंपनियाँ नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्मार्ट गवर्नमेंट और दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमॉडल ट्रांजिट सर्विसेस को वाटर टैंकर डिस्ट्रीब्यूशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम के लिए कंसल्टेंट नियुक्त किया गया था। आरोप यह है कि कंपनियों को नियुक्त करने के लिए किसी तरह की बिडिंग नहीं की गई और नॉमिनेशन के आधार पर ही इनकी नियुक्ति कर दी गई थी। ऐसा करना सीवीसी और सीएजी की गाईडलाइन का उल्लंघन है।
क्या है दिल्ली सरकार पर आरोप?
फैक्ट फाइंडिंग कमेटी जून 2015 में दिल्ली सरकार ने बनायी थी और इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जुलाई 2015 में तैयार भी कर दी थी। अगस्त 2015 में दिल्ली सरकार के मौजूदा मंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर की सिफारिश की गई थी। लेकिन अगस्त 2015 के बाद दिल्ली सरकार ने इस रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं लिया।
विपक्ष ने 13 जून 2016 को करीब दस महीने बाद हंगामा किया जिसके बाद केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में टैंकर घोटाले की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को सार्वजनिक किया। जिसके बाद एलजी के पास एसीबी से जांच कराने के लिए फाइल को भेज दिया गया।