Gandhi Jayanti 2024 : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 154वीं जयंती पर, जानिए उनके जीवन की प्रेरणादायक कहानियां
Gandhi Jayanti 2024, जिन्हें भारत के राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है, की 154वीं जयंती आज यानी 2 अक्टूबर 2024 को मनाई जा रही है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, और वह सत्य एवं अहिंसा के प्रबल समर्थक थे।
Gandhi Jayanti 2024 : गांधी जयंती पर महात्मा गांधी के योगदान और उनके सिद्धांतों पर एक नजर
Gandhi Jayanti 2024, जिन्हें भारत के राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है, की 154वीं जयंती आज यानी 2 अक्टूबर 2024 को मनाई जा रही है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, और वह सत्य एवं अहिंसा के प्रबल समर्थक थे। उनके नेतृत्व में भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। उनके विचार और जीवन के विभिन्न पहलू आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
गांधी जयंती का महत्त्व
गांधी जयंती हर वर्ष 2 अक्टूबर को मनाई जाती है, जो एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। इस दिन महात्मा गांधी की स्मृति में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न संगठनों में गांधी जी के जीवन और उनके सिद्धांतों पर चर्चा होती है। 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जो उनके अहिंसा के सिद्धांत को वैश्विक रूप से मान्यता देने का प्रतीक है।
महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन
महात्मा गांधी का जन्म एक समृद्ध और प्रभावशाली परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे और उनकी माता पुतलीबाई धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। गांधी जी के जीवन पर उनकी माता की गहरी धार्मिकता का गहरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में हुई। उन्होंने 1888 में कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने का निर्णय लिया और लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला लिया। 1891 में गांधी जी वकील बनकर भारत लौटे लेकिन उनकी वकालत खास सफल नहीं रही।
दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का संघर्ष
महात्मा गांधी ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण अफ्रीका में बिताया, जहाँ उन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को आकार दिया। 1893 में उन्हें एक कानूनी मामले के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्हें नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। ट्रेन की प्रथम श्रेणी से उन्हें सिर्फ उनके रंग के कारण बाहर फेंक दिया गया। यह घटना गांधी जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया। दक्षिण अफ्रीका में ही गांधी जी ने सत्याग्रह की नींव रखी।
भारत वापसी और स्वतंत्रता संग्राम
-1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। यहाँ उन्होंने देश की राजनीतिक स्थिति का गहन अध्ययन किया। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ रहा था और विभिन्न संगठन आजादी की लड़ाई में जुटे हुए थे।
-गांधी जी ने 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया। उनका मानना था कि आजादी अहिंसात्मक तरीके से ही संभव है। उन्होंने असहयोग आंदोलन (1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) का नेतृत्व किया, जिनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विद्रोह करना था।
-असहयोग आंदोलन (1920): असहयोग आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में हुआ, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को प्रशासन में सहयोग न देना था। इसमें ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार, सरकारी नौकरी छोड़ने, और विदेशी वस्त्रों को जलाने जैसे कदम उठाए गए।
-दांडी यात्रा (1930): ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों पर नमक कर लगा रखा था, जिसका गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत विरोध किया। उन्होंने साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की यात्रा की और वहां समुद्र किनारे नमक बनाकर इस कानून का उल्लंघन किया।
-भारत छोड़ो आंदोलन (1942): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार को यह समझ में आ गया कि भारत पर अब और शासन करना संभव नहीं है।
गांधी जी की हत्या और विरासत
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। गांधी जी की हत्या ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। उनकी मृत्यु के बावजूद, उनके सिद्धांत और विचार आज भी जीवित हैं और विश्वभर में लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। गांधी जी ने अपने जीवन में जो संदेश दिया, वह न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है। उनके अहिंसा, सत्य, और सादगी के सिद्धांत आज भी विश्व शांति और सामाजिक न्याय की दिशा में काम कर रहे हैं।
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