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सिर्फ चंदा न देने पर मध्यप्रदेश में 14 आदिवासी परिवारों का राशन, इलाज बंद
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सिर्फ चंदा न देने पर मध्यप्रदेश में 14 आदिवासी परिवारों का राशन, इलाज बंद

चंदा न देने वाले सभी लोग मजदूर है


त्योहार हमारे जीवन में खुशियों के साथ-साथ एक उर्जा को लेकर आते हैं. इस भाग दौड़ भरी दुनिया में लोग त्योहारों पर ही अपने लोगों से मिल भी पाते हैं. यही हमारे रिश्तों को मजबूती भी देते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इन त्योहारों को कारण ही लोगों का सामाजिक बहिष्कार होने लग जाते हैं. इंसान की जिदंगी कैसी हो जाएगी?

ज्यादातर लोग प्रवासी मजदूर है

ताजा मामला मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले का है. जहां 14 गौड़ आदिवासी परिवार को दुर्गापूजा का मात्र 200 रुपए चंदा न देने के कारण उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है. गौरतलब है कि 14 अक्टूबर को स्थानीय दुर्गापूजा संगठन सार्वजनिक दुर्गापूजा संस्था ने लम्ता गांव की एक सभा में निर्धारित किया कि सभी 170 परिवार दुर्गापूजा के लिए 200 रुपए चंदा देगें. लेकिन 40 गौड़ परिवार ने इतना न दे पाने इच्छा जाहिर की.इनमें से ज्यादा प्रवासी मजदूर थे. लॉकडाउन के बाद लोगों के पास रोजगार नहीं. रोजगार न मिल  पाने के कारण इऩकी आर्थिक हालात भी ठीक नहीं है. लेकिन फैसले कुछ समय बाद 26 परिवार नरम पड़ गए और उन्होंने पैसे भरने के लिए हां कर दी. लेकिन 14 परिवार अभी भी ऐसे थे जो चंदा देने में सक्षम नहीं थे.

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राशन के लिए भी मना कर दिया

 

दुर्गापूजा समाप्ति के बाद एक बार फिर 3 नवंबर को गांव में एक सभा रखी गई जिसमें गांव के लोगों के सर्वसम्मति से यह निर्धारित किया कि इन 14 परिवारों के साथ कोई बातचीत नहीं करेगा. बात यही तक नहीं रुकी गांव के दुकानदारों को कह दिया गया कि इन्हें राशन नहीं दिया जाए. लोकल डॉक्टर को भी कहा गया वो इनका इलाज नहीं करें.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 39 साल की लक्ष्मी वानखेडे एक मजदूर है. उसके पति की तबीयत बिगडने  बाद वह मजदूरी कर रही है. उसके घर में सात लोग रहते है. पूजा के लिए 200 रुपए भरना उसके लिए बहुत ही मुश्किल है.

बात बिगड़ती देख सभी 14 परिवारों ने बालाघाट के एडिशनल एसपी गौतम सोलंकी को ज्ञापन देते सारा वकाया बताया. उनका कहना था कि कुछ लोगों ने 101 रुपए चंदा दिया था. इसके बाद भी गांव के लोगों ने कम पैसे देने के कारण उनका बहिष्कार कर दिया. गांव के कुछ लोग और प्रशासन के समझाने  के बाद भी जब दबंग नहीं माने तो हार कर आदिवासी परिवारों ने जिला मुख्यालय का रुख किया और पुलिस के आला अधिकारियों को ज्ञापन देकर न्याय की गुहार लगाई है.

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