Sanitary Disposal Machine: महिलाओं को जानवरों से सुरक्षित रखने लिए एक महिला डॉक्टर ने अविष्कार किया सौर उर्जा से चलने वाली सेनेटरी डिस्पोजल मशीन का…
Sanitary Disposal Machine: मुंबई के दो भाई बहन ने मिलकर बनाई बिजली से नहीं सौर उर्जा से चलने वाली सेनेटरी डिस्पोल मशीन
Sanitary Disposal Machine: महावारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जिससे हर महिला को हर महीने गुजरना पड़ता है। जिसके लिए महिलाएं अलग चीजों का इस्तेमाल करती है। टीवी में लगभग हर ऐड ब्रेक पर आते सेनेटरी पैड के ऐड और थोड़ी जागरुकता के कारण ज्यादातर महिलाएं सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं।
लेकिन डाउथ टू अर्थ की एक खबर के अनुसार आज भी 77 प्रतिशत भारतीय महिलाएं महावारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इतना ही कुछ महिलाएं इसी कपड़े में भी धोकर दोबारा इस्तेमाल करती है। इसके अलावा राख का भी इस्तेमाल करती है। महावारी हाइजीन को लेकर हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं। नेशनल फेमिली हेल्थ के अनुसार भारत में सिर्फ 58 प्रतिशत महिलाएं महावारी के दौरान सुरक्षित साधन का इस्तेमाल की करती हैं। जिसमें सबसे प्रमुख साधन पैड है। बाजार के इस दौर में पैड की भी कई कंपनियां और कंपीटिनशन होने के कारण कम पैसे में भी पैड मिल जाते हैं। जिसके कारण कई महिलाएं आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ स्कूल-कॉलेज में पैड डिस्पोज करने का कोई विकल्प नहीं होने के कारण 60% लड़कियां समय पर पैड नहीं बदल सकती हैं।
लेकिन सवाल यह है कि इतनी बड़ी मात्रा में इस्तेमाल होते सेनेटरी पैड को डिस्पोज करना एक बड़ी समस्या है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। आपने देखा होगा कि पैड में प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। भारत में लगभग 12.3 अरब सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। इसी नुकसान को कम करने के लिए मुंबई के एक भाई बहन ने मिलकर एक ऐसी मशीन का अविष्कार किया है। जो सोलर एनर्जी के द्वारा इन सेनेटरी नेपकिन को डिस्पोज करता है।
भाई बहन ने सेनेटरी डिस्पोजल मशीन के साथ किया स्टार्टअप
मुंबई की डॉ. मधुरिता गुप्ता और उनके भाई रुपम गुप्ता ने साथ मिलकर एक सोलर सेनेटरी डिस्पोजल मशीन बनाई है। जिसका नाम – सोलर लल्जा है। दोनों ने Arnav Greentech Innovation Pvt Ltd नाम से स्टार्टअप चला रहे हैं। डॉ. मधुरिता गुप्ता मुख्य रुप से पशु चिकित्सक हैं। जिनके संगठन का मख्य उद्देश्य भारत में वन्य जीव-जंतुओं का संरक्षण करना है। जिसके लिए वह अलग-अलग जगहों पर प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं।
एक प्रोजेक्ट्स पर काम करती हुए ही डॉ. मधुरिता को इस तरह की मशीन बनाने का ख्याल आया। एक वेबसाइट में दिए इंटरव्यूय में उन्होंने बताया कि राजस्थान में एक प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान उन्होंने सर्वे में पाया कि जंगली जावनरों द्वारा सबसे ज्यादा महिलाओं को घायल किया जाता है या मारा जाता है। इसमें भी महिलाओं पर ज्यादा अटैक तब हुए जब वह महावारी में इस्तेमाल किए गए साधन को डिस्पोज करने गई होती है। चूंकि आज भी भारत में महावारी को लज्जा से जोड़ा जाता है तो महिलाएं इसे छुपाने के लिए या इसे जंगल में डिस्पोज करने जाती है या फिर वहां जाकर उसे आग लगा देती थी। इसके वह या तो रात में या तो भोर में जंगल की तरफ जाती थी। जिसके कारण जानवर उन पर अटैक कर देते थे।
डॉ.मधुरिता ने इस समस्या का हल निकालने का निश्चय किय। जिसके तहत उन्होंने निश्यच किया कि वह ऐसी मशीन का अविष्कार करेंगी जो इस वेस्ट को डिस्पोज कर सकें। इसके लिए उन्होंने कई लोगों से सलाह ली लेकिन हर बार बिजली की समस्या खड़ी हो जाती थी। इस समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने सौर उर्जा का सहारा लिया और वह कामयाब रही।
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क्या है सोलर लज्जा
इस मशीन के द्वारा वेस्ट सेनेटरी नेपकिन, डाइपर, सूती और जूट की कपड़ों को डिस्पोज किया जाता है । जिससे दिन भर में 200 पैड को डिस्पोज कर राख बनाया जाता है। जिसे खेतों और बगीजों में बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अन्य मशीनों के अलावा इसमें 25% बिजली का कम इस्तेमाल होता है। यह सिर्फ एक मिनट में सेनेटरी को ऑटोमेटिक मोड पर डिस्पोज कर देती है। इस मशीन को आसानी से सामुदायिक जगहों को अलावा कंपनी, स्कूल-कॉलेज, अस्पतालत में लगाया जा सकता है। यह वन टाइन इंन्वेस्टमेंट है। जिसके लिए बार-बार खर्च नहीं करना पड़ता है।
डॉ. मधुरिता गुप्ता ने सिर्फ इस मशीन को ही बनाया । बल्कि इसके लिए वह महिलाओं को भी प्रशिक्षित कर रही हैं। डॉ. मधुरिता गुप्ता के संगठन के द्वारा ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को पैड्स भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके साथ ही महावारी को लेकर उन्हें जागरुक भी किया जा रहा। ताकि वह कपड़े का इस्तेमाल न करें और बीमारियों से सुरक्षित रहें। अब तक मधुरिता और उनकी टीम ने 30 ‘सोलर लज्जा’ यूनिट महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान, सिक्किम और उत्तर प्रदेश में लगा चुके हैं।
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