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जानें इस साल की 5 तारीख में ऐसा क्या है खास, जो हमें हमेशा याद रहेगा

यूनिर्वसिटी में लड़ाई से लेकर, बेराजगार युवाओं की पुकार


साल 2020 अन्य सालों के मुकाबले एकदम अलग रहा है. पूरा साल खत्म होने का समय का आ चुका है. इस साल में कुछ लोगों ने नया जीवन पाया है तो कई लोगों ने कोरोना के दौरान अपने प्रियजनों को खो दिया है. यह पूरा साल कई मायनों में अलग और खास दोनों है. पूरे साल में कई तरह की घटनाएं हुई जिसने लोगों की जिदंगी को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. कहीं किसी की नौकरी चली गई तो कहीं किसी की सारा जमापूंजी खत्म हो गई. इन सबके अलावा भी कुछ ऐसी चीजों हुई है जिसे आप कभी नहीं भूला पाएंगे. इस साल की सबसे खास तारीख है पांच. साल के कुछ महीनों में पांच तारीख में कुछ ऐसा हुआ है जिसे आप चाहकर भी नहीं भूला सकते हैं. तो चलिए आज आपको उनके बारे में बताते हैं. 

5 जनवरी

सर्द हवाओं में सिरहन पैदा करने वाली ठंड के बीच 5 जनवरी का वह दिन सालों तक लोगों के जहन से निकलने वाला नहीं है. दिसंबर से सीएए-एनआरसी के खिलाफ पूरे देश में शुरु हुए प्रोटेस्ट में लोगों ने ठंडा की बिना परवाह किए. इस कानून का जमकर विरोध किया. इसी दौरान देश की नंबर यूनिर्वसिटी में कुछ अलग ही मामला चल रहा था. जेएनयू में फीस वृद्धि को लेकर कुछ दिनों से छुटपुर प्रदर्शन जारी थे. लेकिन 5 जनवरी के दिन अचानक शाम को यूनिर्वसिटी की माहौल रणक्षेत्र के रुप में बदल गया. जहां छात्रों के साथ मारपीट की गई. पूरी लड़ाई लेफ्ट स्टूडेंट्स विंग और एबीवीपी के  बीच थी. शाम तीन बजे से शुरु हुआ मामला रात के अंधेरे के साथ और गहराता गया. जहां स्टूडेंट्स एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने के साथ-साथ खून के प्यासे बने थे. यूनिर्वसिटी में कुछ नकाबपोश लोगों ने गुंडो की तरह परिसर में हंगामा पहुंचाया. रात होते-होते इस बात की खबर पूरे देश को लग गई. हर कोई इस घटना के बारे में अपना-अपना फैसला सुना रहा कोई इन्हें गरियाता तो कोई अपनी सहानुभूति प्रकट करता. जेएनयू के गेट को बंद कर दिया अब जो अंदर था वह वहीं रह गया और जो बाहर था उसे वही रोक लिया गया. गेट के बाहर लोगों को एक हुजूम जमा हो गया. जेएनयू के कुछ पुराने छात्र भी वहां इकट्ठा हो गए. कोई जेएनयू को बंद कराने का नारा लगता तो कोई लेफ्ट विंग के छात्रों को गिरियाता. कोई एबीवीपी को इसके पीछे का दोषी बताता तो कोई इनके समर्थन में आता. इस तरह यह देश की पहली घटना बनी जिसे भूला नहीं जा सकता है. 

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5 अगस्त

लंबे समय से लटके बाबरी मस्जिद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 5 अगस्त को कोरोना के दौरान अयोध्या में भूमिपूजन किया गया. इस दौरान पीएम मोदी के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,  राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और कई संत महंत मौजूद थे. यह भी एक ऐतिहासिक दिन था. जब पूरा देश कोरोना और आर्थिक मंदी से गुजर रहा था तो हमारे देश में मंदिर का शिलान्यस किया जा रहा था. पीएम मोदी ने भूमि पूजन की सारी विधि को शुभ मुहूर्त के साथ दोपहर 12.40 मिनट पर पूरी की. इस बात को लेकर कहीं खुशी थी तो कहीं नाराजगी. लेकिन अंत में लंबे समय से लंबित पड़े फैसले पर विराम लग गया. 

5 सितंबर 

वैसे तो 5 सितंबर को हर साल सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर टीचर्स डे मनाया जाता है. लेकिन इस साल का टीचर्स डे दो बातों के कारण विशेष था. पहला कोरोना के कारण सभी स्कूल और कॉलेज बंद थे तो सोशल मीडिया के जरिए ही सबने अपने टीचर्स को शिक्षक दिवस की बधाई दी, तो दूसरी ओर कुछ स्टूडेंट्स ने इसी दिन को विरोध के तौर पर चुना. 5 सितंबर के दिन लंबे समय से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं का गुस्सा फूट गया. कोरोना की बिना परवाह किए युवा सडकों पर आ गए. युवाओं को विरोध का कारण था लगातार होता निजीकरण, सरकारी परीक्षाओं में होती देरी और परीक्षा पास करने के बाद ज्वांइनिंग न मिलना. युवाओं ने सरकार को सरकार की ही भाषा में समझाने का तरीका अपनाया. कोरोना योद्धाओं के लिए पीएम मोदी के कहने पर लोगों ने जैसे  थाली और ताली बजाई थी. ठीक वैसे ही बेरोजगार युवाओं ने किया. सड़कों पर बाहर निकले युवाओं ने थाली ताली के साथ सरकार को आंख दिखाई. इसका नतीज यह हुआ कि विरोध के बाद तुरंत ही रेलवे की तरफ से लंबे समय से रुकी परीक्षाओं की तारीखों का ऐलान कर दिया गया. इसके बाद इसी साल पीएम मोदी के जन्मदिन पर 17 सितंबर को युवाओं ने बेरोजगारी दिवस के तौर पर मनाया. इस तरह पूरे साल की 5 तारीख आने वाले दिनों में हमारे लिए इतिहास का विषय बन गई है.

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