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EXCLUSIVE On World Tiger Day: वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. जितेंद्र शुक्ला बोले- सिमटते जंगलों के कारण भविष्य में हो सकते हैं गंभीर परिणाम, बाघों के लिए है संकट

EXCLUSIVE On World Tiger Day: हजारों साल पहले तक दुनियाभर में अच्छी- खासी तादाद में टाइगर्स थे। जो जंगलों पर राज किया करते थे। लेकिन 21वीं सदी आते-आते इनकी संख्या बहुत तेजी से कम होने लगी। जिसके लिए अवैध शिकार तो एक बड़ी वजह थी ही, लेकिन साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन और जंगलों के तेजी से कटान का भी बहुत बड़ा हाथ रहा।

EXCLUSIVE On World Tiger Day: 1990 से 2014 तक बाघों की संख्या में लगातार देखी गई गिरावट

हजारों साल पहले तक दुनियाभर में अच्छी- खासी तादाद में टाइगर्स थे। जो जंगलों पर राज किया करते थे। लेकिन 21वीं सदी आते-आते इनकी संख्या बहुत तेजी से कम होने लगी। जिसके लिए अवैध शिकार तो एक बड़ी वजह थी ही, लेकिन साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन और जंगलों के तेजी से कटान का भी बहुत बड़ा हाथ रहा। बाघ हमारे इकोसिस्टम को संतुलित रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं, इनकी कमी पर्यावरण को कई तरीकों से नुकसान पहुंचा सकती है। EXCLUSIVE On World Tiger Day इसी के बारे में लोगों को जागरूक करने के मकसद से हर साल 29 जुलाई को International Tiger Day मनाया जाता है। ऐसे में विश्व टाइगर डे पर One World News की संवाददाता वृंदा श्रीवास्तव ने वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. जितेन्द्र कुमार शुक्ला से बातचीत की। जहां बाघ दिवस के विषय पर डॉ. शुक्ला ने अपने विचार व्यक्त किए।

डॉ. जितेन्द्र कुमार शुक्ला का कहना है कि संपूर्ण विश्व में भारत बाघ संरक्षण का नेतृत्व करता है। आज लगभग 17 देश में बाघों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कर रखी है और इन समस्त देशों में पाए जाने वाले बाघों की कुल संख्या के लगभग 70 प्रतिशत बाघ अकेले भारत में पाए जाते हैं। यह संरक्षण के लिए समर्पित प्रोजेक्ट टाइगर के द्वारा ही संभव हो पाया। जिसकी शुरुआत 1973 में की गई थी। EXCLUSIVE On World Tiger Day उस समय भारत में बाघों की संख्या लगभग 1200 थी, जो कि कालांतर में बढ़कर 5000 तक हो गई।

1990 से 2014 तक लगातार देखी गई गिरावट EXCLUSIVE On World Tiger Day

इसके अलावा उन्होंने बिताया कि 1990 से 2014 तक इनकी संख्या में निरंतर गिरावट देखी गई। एक समय तो भारत में बाघों की संख्या चिंताजनक स्थिति तक पहुंच गई, लेकिन 2014 के बाद सरकार की बाघों के प्रति संरक्षण एवं संवर्धन की जो कार्य-योजना लागू की गई, उसके फलस्वरूप इनकी संख्या में हर वर्ष बढ़ोतरी दर्ज की गई। प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत में मात्र 9 संरक्षित टाइगर क्षेत्र आच्छादित थे और लगभग 18000 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र आता था।

ये रही प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता EXCLUSIVE On World Tiger Day

वर्तमान समय में इन संरक्षित क्षेत्र की संख्या 53 और क्षेत्रफल 75000 वर्ग किलोमीटर हो गया है। निश्चय ही इसके सुखद परिणाम प्राप्त हुए और 2022 की गणना के अनुसार भारत में 3167 बाघ पाए गए, जो कि हर वर्ष 6% की दर से बढ़ते जा रहे हैं। 50 वर्ष की यह यात्रा प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता को इंगित कर रही है। हर वर्ष 180 नए बाघ इस संख्या में जुड़ रहे हैं। जहां उनकी बढ़ती हुई संख्या एक खुशी प्रदान कर रही है।

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भविष्य में हो सकते हैं गंभीर परिणाम EXCLUSIVE On World Tiger Day

डॉ. शुक्ला ने बताया कि एक गंभीर भविष्य की चिंता भी पैदा हो रही है। आने वाले समय में जंगल के सीमित दायरे के साथ बाघों की यह बढ़ती संख्या एक गंभीर खतरे के रूप में उभर कर आ रही है। अगर तराई क्षेत्र में पाए जाने वाले बाघों का ही उदाहरण लें, तो पिछले एक वर्ष में 28 से ज्यादा इंसानों और बाघों का संघर्ष सामने आ चुका है, जिसमें कई इंसानों और बाघों को अपने प्राण देने पड़े।

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बाघों का हो सकता है नुकसान EXCLUSIVE On World Tiger Day

आपको बता दें कि बाघों में नित्यप्रति इंसानों के प्रति एक आक्रामक व्यवहार देखने को मिल रहा है, जो कि वन्य-जीवन के दृष्टिकोण से बिल्कुल अच्छा नहीं माना जाएगा। वर्तमान समय में भारत के संपूर्ण टाइगर रिजर्व क्षेत्र की क्षमता का अगर आंकलन किया जाए तो वह मात्र 5000 है। अर्थात कल संरक्षित टाइगर रिजर्व में सिर्फ इतने ही बाघ रह सकते हैं। अगर इनके वन्य क्षेत्र का दायरा नहीं बढ़ाया गया, तो बाघों और इंसानों का संघर्ष एक सतत प्रक्रिया बन जाएगी, जिसमें नुकसान बाघों का ही होना है।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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