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Jugnuma Movie Review: मनोज बाजपेयी की गहराई और प्रकृति की सादगी का अद्भुत संगम

धीमी रफ़्तार में भी ज़िंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है। बिना किसी बनावटीपन के, Jugnoma आपको सोचने और महसूस करने पर मजबूर करती है।

Jugnuma Movie Review: धीमी रफ़्तार में ज़िंदगी और ज़मीन की सच्चाई

Jugnuma Movie Review:जुगनुमा ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि किसी भी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत उसकी कहानी होती है। यह फिल्म जातिगत राजनीति और सामाजिक परतों पर गहराई से प्रकाश डालती है। यहाँ स्टारडम नहीं, बल्कि कहानी ही असली हीरो है, और इसे फिल्माया गया है बेहद सूक्ष्म और सही ढंग से। जुगनुमा हमें यह महसूस कराती है कि वास्तविकता और नैतिकता का मूल्य हमेशा जीवित रहता है। यह फिल्म स्वतंत्र सिनेमा के महत्व और उसकी खूबसूरती को दिखाती है। बिना किसी नाटकीय मोड़ के भी यह फिल्म दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ती है और जीवन की सरलता और प्रकृति की कद्र सिखाती है।

मनोज बाजपेयी का कमाल

मनोज बाजपेयी ने एक बार फिर साबित किया है कि वे देश के बेहतरीन अभिनेताओं में से एक हैं। उनकी खासियत यह है कि वे जिस भूमिका का चुनाव करते हैं, वह पूरी तरह उनके व्यक्तित्व से मेल खाती है। उनके अभिनय में जल्दबाजी नहीं है-सिर्फ़ समर्पण और पेशेवर लगन झलकती है।

कहानी की झलक

फिल्म की शुरुआत होती है देव (मनोज बाजपेयी) के रोज़मर्रा के जीवन से। सुबह-सुबह दाँत साफ़ करना, अपने बाग़ में टहलना और अपने कर्मचारियों व परिवार के साथ बातचीत-हर दृश्य वर्ग-भेद और सामाजिक अंतर को बखूबी दर्शाता है। देव अपने लोगों के प्रति दमनकारी नहीं है, लेकिन संवाद और व्यवहार में सूक्ष्म पदानुक्रम स्पष्ट दिखाई देता है। फिल्म धीमी गति से चलती है, और इसका निष्कर्ष दर्शकों को स्वयं समझना पड़ता है। सुनील बोरकर की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को एक स्वप्निल और गहरी भावना देती है, जिससे आप फिल्म के दृश्य और वातावरण में पूरी तरह डूब जाते हैं।

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थीम और संदेश

जुगनुमा 1989 के पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहाँ लोग सरल जीवन का आनंद लेते हैं-सैर, किताबें पढ़ना, पेंटिंग करना और चाय का मज़ा लेना। फिल्म न तो उपदेशात्मक है और न ही जल्दबाजी में कहानी आगे बढ़ाती है। यह हमें संयम, प्रकृति की कद्र और जीवन की खूबसूरती का अनुभव कराती है। फिल्म पर्यावरण संरक्षण पर भी विचार करने को मजबूर करती है-जैसे पेड़ काटने की समस्या, कीटनाशकों के हानिकारक प्रभाव और जंगल को संरक्षित रखने का महत्व।

किरदारों की परतें और जटिलता

सभी किरदार कई परतों में बंटे हैं और जटिल हैं। राम रेड्डी ने दर्शकों को स्वतंत्रता दी है कि वे देव के चरित्र और उसके कर्मों को स्वयं परखें-क्या वह वाकई अच्छा इंसान है या केवल दिखावा कर रहा है। फिल्म का खुला अंत दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है, और यह दिखाता है कि आखिरकार देव को अपनी गलती का एहसास होता है और वह संपत्ति अपने केयरटेकर को सौंप देता है।

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