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अंतरराष्ट्रीय  टेलीविजन डे: एक बॉक्स का लोगों की जिदंगी पर पड़ता प्रभाव
मनोरंजन

अंतरराष्ट्रीय  टेलीविजन डे: एक बॉक्स का लोगों की जिदंगी पर पड़ता प्रभाव

खुशी से जहर तक बदल गया है टेलीविजन


टेलीविजन एक ऐसा डिब्बा जिसने हमारी जिदंगी में कई तरह की खुशियां दी है. बदलते दौर के साथ टेलीविजन में भी कई तरह के बदलाव हुए है. इसने राजनीति, आर्थिक, सामाजिक कई तरह के बदलावों को हमें दिया है. आज टीवी को जहर करारा दिया जा रहा है. कभी यह हमारी जिदंगी का अभिन्न अंग होने के साथ-साथ खुशियों का खजाना था. जहां टीवी एक होती है और उसमें फरमाइशें करने वाले अनेक. किसी को क्रिक्रेट देखना होता था तो किसी को सीरियल, किसी को समाचार सुनना होता था तो किसी को गाने. हर किसी की अलग-अलग फरमाइश थी. लेकिन अब रिमोट छीनने वाली दुनिया जैसे जुदा ही हो गई है. हर शख्स अपनी मर्जी के हिसाब से अपने फोन पर हर चीज को आसानी से देख ले रहा है. आज वर्ल्ड दूरदर्शन डे या अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन दिवस है. आइये जानते हैं बदलते दौर के साथ टेलीविजन ने हमारे जीवन में कितना प्रभाव डाला है.

90 के दशक का टेलीविजन

television day

टीवी का अविष्कार जॉन लॉगी बेयर्ड ने 1925 में किया. जबकि भारत में इसका आगमन आजादी के बाद हुआ. भारत का पहला टीवी सीरियल ‘हम लोग था.  टीवी की दुनिया में सीरियल और अन्य चीजों ने पिक 90 के दशक के बाद पकड़ी. ग्लोबलाइजेशन के बाद लोगों  के घरों में टीवी आ चुकी थी. चित्रहार, रंगोली का माहौल शुरु हो चुका था. जहां देश दुनिया की खबरों के साथ –साथ गानों का भी एक अलग माहौल था. बुधवार के चित्रहार और रविवार की रंगोली का लोग बेसब्री से इंतजार किया करते थे. इसी दौरान सीरियल भी आने लगे. जिन्होंने लोगों के दिलों में राज करना शुरु कर दिया. भले ही वह ‘अर्धागिनी’ हो या फिर ‘शांति’. महिलाओं के बीच डेली शोप का क्रेज  शुरु हो गया था. जो महिलाएं अभी तक अपने मनोरंजन के लिए गप्पे लड़ाती थी. अब वह टीवी  पर समय देने लगी. 90 के दशक की बात हो तो हम बच्चों वाले सीरियल को कैसे भूल सकते थे. शक्तिमान ने तो हर बच्चे को अपना फैन बन दिया था. दूरदर्शन के अलावा प्राइवेट चैनल्स का भी आगमन हो गया था.

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20 वीं सदी के 24*7 चैनल्स

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साल 2000 के बाद तो टेलीविजन जगत में एक महत्वपूर्ण बदलाव हो गया. 24 घंटे वाले चैनल्स का आगमन हो गया था. देश का सबसे तेज न्यूज चैनल आजतक ने तो लोगों के बीच खबरों को लेकर और ज्यादा तेजी ला दी. इससे पहले भी प्राइवेट न्यूज चैनल्स आएं थे. लेकिन आजतक ने अलग पहचान बनाई. लोगों को घरों में केवल की तार भी पहुंचनी शुरु हो चुकी थी. सीरियल की दुनिया में सामाजिक परिपेक्ष को दिखाना शुरु कर दिया गया था. ये एक ऐसा समय था जहां सामाजिक कुरीतियों के साथ-साथ सामाजिक बदलाव की एक लहर को पेश की जा रही थी. स्टार प्लस का . सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘कहानी घर-घर की’ ने लोगों को बीच एक संयुक्त परिवार का संदेश दिया. ‘न आना इस देश लाडो’ ने लोगों तक भ्रूणहत्या पर सवाल उठाया. ‘अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजै’ ने हमें जात पात के भेदभाव को और करीब से समझाया. ‘सात फेरे’ ने यह सामाजिक संदेश दिया की लड़की का रंग काला नहीं ब्लकि उसके गुणों का देखना चाहिए. ‘कुमकुम’ ने बताया कि विधवा बहू का दोबारा विवाह करना ही सबसे अच्छा विकल्प है.  अंत में बालिका वधू ने बालविवाह के बारे में बताया. ये ऐसे सीरिल्स थे जिसने लोगों को बहुत ज्यादा अपने साथ बांधकर रखा. इतना ही नहीं इसी दौर मे म्यूजिक के भी 24*7 चैनल्स भी आएं. जिसने युवाओं की जिदंगी में भी बदलाव को भरा.

21 वीं सदी की टीवी

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21वीं सदी में आते-आते टीवी की प्रासंगिकता थोड़ी कम हो गई है. लेकिन सीरियल्स और खबरों की दुनिया में आज भी नए-नए चीजों को इजात किया जा रहा है. 24*7 वाले न्यूज चैनल्स अब बहस का अड्डा बन गए हैं. जहां हर दूसरे मुद्दे पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कवायत चलती है. खबरों के नाम पर लोगों को दिमाग में जहर भरा जा रहा है. जिसका नतीजा यह है कि आज एक ही घर में दो लोग एक ही खबर को लेकर आपस में झगड़  रहे हैं.  न्यूज एंकर अपने आप को न्यूज रीडर कम न्यायधीश ज्यादा समझने लगे है. हालात इतने बिगड़ गए हैं कि लाइव डिबेट में गाली गलौज तक चलता है. वहीं दूसरी ओर सीरियल्स में भी कई तरह के बदलाव देखने के मिल रहे हैं. सामाजिक परिवर्तन में महिलाओ को अब बेचारी से ऊपर उठकर स्वाभिमानी महिला की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है. सीरियल्स में लिविंग रिलेशन भी आम बात हो गई. जमाना कितनी जल्दी से बदल रहा है. 90 के दौर के सीरिल्स में घर में फोन हुआ करते थे अब हर हाथ में फोन है. इतने से समय में हमारी दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है. यह सब टेलीविजन की ही देन है.

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