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Batukeshwar Dutt: बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि, साहस और देशभक्ति का प्रतीक

Batukeshwar Dutt, 20 जुलाई को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर क्रांतिकारी, बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि मनाई जाती है।

Batukeshwar Dutt : बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि, इतिहास के पन्नों में एक वीर की याद

Batukeshwar Dutt, 20 जुलाई को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर क्रांतिकारी, बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि मनाई जाती है। बटुकेश्वर दत्त का जीवन देशभक्ति, साहस और बलिदान की मिसाल है। उन्होंने अपने अदम्य साहस से ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी और आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लेख में हम उनके जीवन, क्रांतिकारी कार्यों और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को याद करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना गहरी थी। उन्होंने कानपुर के पं. पृठीनाथ हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। युवा अवस्था में ही वे क्रांतिकारी आंदोलनों से जुड़े और भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों से प्रेरणा ली।

क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होना

1924 में बटुकेश्वर दत्त की मुलाकात चंद्रशेखर आज़ाद से हुई, जिसने उनके जीवन को क्रांतिकारी पथ पर मोड़ दिया। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य बन गए। इस संगठन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष को अपनाया। बटुकेश्वर दत्त को बम बनाने और फेंकने की कला में प्रशिक्षित किया गया।

केंद्रीय विधानसभा में बम धमाका

8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका। उनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को डराना या किसी को चोट पहुंचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश राज के अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता फैलाना था। उन्होंने जोरदार नारे लगाए, जैसे “इंकलाब ज़िंदाबाद,” और पर्चे फेंके जिनमें स्वतंत्रता की मांग थी। यह साहसिक क़दम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक घटना बन गया।

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गिरफ्तारी और कारावास

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली और काला पानी जेल भेज दिया गया। वहां उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ अमानवीय जेल प्रणाली के खिलाफ भूख हड़ताल की। उनकी इस लड़ाई ने जेल सुधारों की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया।

बाद के जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

बटुकेश्वर दत्त ने 1942 के ‘क्विट इंडिया मूवमेंट’ में भी सक्रिय भाग लिया और इसके लिए उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा। आज़ादी के बाद वे सामान्य जीवन में लौट आए और व्यवसायिक गतिविधियों में लगे। उन्होंने कभी भी अपने देशभक्ति के भाव को कम नहीं होने दिया।

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अंतिम समय और श्रद्धांजलि

बटुकेश्वर दत्त का निधन 20 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ। उनकी इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के पास पंजाब के हुसैनीवाला में किया गया। आज भी उनकी पुण्यतिथि पर देशभर में उन्हें याद किया जाता है और उनके बलिदान को सलाम किया जाता है। बटुकेश्वर दत्त का जीवन हमें देशभक्ति, साहस और संघर्ष की प्रेरणा देता है। उन्होंने अपने जीवन को आज़ादी की भावना के लिए समर्पित कर दिया। वे भारतीय इतिहास के उन अनमोल हीरोज़ में से एक हैं, जिनके योगदान को समय-समय पर याद रखना और सम्मानित करना आवश्यक है।

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