Dehydration Fever: नवजात शिशु मे दिखे ये लक्षण तो हो जाएं सतर्क,निर्जलीकरण बुखार के है संकेत; जाने कारण
नवजात शिशुओं में Dehydration Fever एक ऐसी स्थिति है जो की माता-पिता के लिए एक साधरण चिंता से लेकर एक भयावह अनुभव तक करा सकती है।
Dehydration Fever : जाने क्या है कारण निर्जलीकरण बुखार के
Dehydration Fever : पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन एक आम समस्या है, जो किसी को भी हो सकती है – चाहे वह बच्चा हो या बड़ा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नवजात शिशुओं को भी डिहाइड्रेशन हो सकता है? कई बार आपने देखा होगा कि छोटे बच्चों को हल्का बुखार हो जाता है, लेकिन जांच करने पर कोई संक्रमण नहीं मिलता। दरअसल, यह बुखार Dehydration Fever हो सकता है। यह तब होता है जब शिशु के शरीर में तरल पदार्थ की कमी हो जाती है और इसी वजह से शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
नवजात शिशु डिहाइड्रेशन के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं, क्योंकि उनका शरीर बहुत छोटा होता है और वे ज्यादा देर तक बिना दूध या पानी के नहीं रह सकते। जब बच्चे को बुखार के लक्षण दिखें, तो घबराने के बजाय यह समझना जरूरी है कि कहीं यह डिहाइड्रेशन की वजह से तो नहीं है। सही समय पर तरल पदार्थ देना और बच्चे की स्थिति पर नजर रखना बहुत जरूरी है ताकि डिहाइड्रेशन जैसी स्थिति से बचा जा सके।
निर्जलीकरण बुखार क्या होता है
जब अचानक नवजात शिशु के शरीर का तापमान बढ़ने लगे, तो यह Dehydration Fever हो सकता है। यह बुखार किसी संक्रमण की वजह से नहीं, बल्कि शरीर में तरल पदार्थ (fluid) की कमी के कारण होता है। जो शिशु केवल मां के दूध पर निर्भर होते हैं, उनमें यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। अगर उन्हें पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पाता, तो उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इसका सीधा असर शरीर के तापमान पर पड़ता है और शरीर का तापमान बढ़ सकता है। इसलिए जरूरी है कि नवजात शिशु को समय-समय पर ठीक मात्रा में दूध दिया जाए, ताकि वह डिहाइड्रेशन से सुरक्षित रहे और उसका शरीर संतुलन में बना रहे।
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क्या है कारण
डिहाइड्रेशन के पीछे कई कारण हो सकते हैं।
एक वजह यह हो सकती है कि बच्चे को मां के स्तन से पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं मिल पा रहा हो। कई बार जन्म के तुरंत बाद मां के शरीर में दूध बनने में थोड़ा समय लगता है, जिससे शुरुआती दिनों में बच्चे को कम दूध मिल पाता है। दूसरा कारण गर्मी और उमस भरा मौसम हो सकता है। ऐसे मौसम में शरीर से अधिक पसीना निकलता है, जिससे तरल की कमी तेजी से हो सकती है।
इसके अलावा, अगर बच्चे को कोई सेहत से जुड़ी समस्या है — जैसे कि कमजोरी, पेट दर्द या दूध न पच पाना — तो वह ठीक से दूध नहीं पी पाता। ऐसे में डिहाइड्रेशन का खतरा और भी बढ़ जाता है। इसलिए नवजात की स्थिति पर लगातार नजर रखना और समय पर डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी होता है।
इलाज क्या है
शिशुओं में डिहाइड्रेशन से बचाव के लिए उन्हें बार-बार स्तनपान कराना बहुत जरूरी है। इससे उनके शरीर को जरूरी तरल और पोषण मिलता रहता है। अगर बच्चा मुंह से दूध नहीं पी पा रहा है या ज़रूरत से बहुत कम ले रहा है, तो स्थिति गंभीर हो सकती है। ऐसे मामलों में डॉक्टर की देखरेख में इंट्रावेनस फ्लूइड (IV fluid) देना पड़ सकता है, ताकि शरीर की पानी की कमी पूरी की जा सके।
अगर बच्चे में डिहाइड्रेशन के लक्षण दिखाई दें — जैसे कि सुस्ती, आंखों का धंसा होना, रोते समय आंसू न आना या मुंह सूखा लगना — तो बिना देर किए अस्पताल ले जाना समझदारी होगी।इसके अलावा, बच्चे के पेशाब पर नजर रखना भी बहुत जरूरी है। अगर बच्चा सामान्य से कम पेशाब कर रहा है या उसका रंग गहरा है, तो यह डिहाइड्रेशन का संकेत हो सकता है। समय पर पहचान और इलाज से स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है।
लक्षण जानें
- शरीर का तापमान हल्का बढ़ जाना
- बच्चे का कमजोर दिखना
- जरूरत से ज्यादा सोते रहना
- दूध न पीना
- रोते समय आँसू न आना
- लंबे समय तक पेशाब न करना
अगर इनमें से कोई भी लक्षण नजर आएं, तो यह डिहाइड्रेशन का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी होता है, ताकि समय रहते सही इलाज मिल सके।
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