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Charlie Chaplin: जिसने बिना बोले पूरी दुनिया को हंसाया, जन्मदिन मुबारक चार्ली चैपलिन

Charlie Chaplin: चार्ली चैपलिन, हास्य और मूक फिल्मों के बेताज बादशाह, हर साल 16 अप्रैल को याद किए जाते हैं। उनका जन्म 1889 में लंदन, इंग्लैंड में हुआ था।

Charlie Chaplin: द ट्रैम्प से ट्रिब्यूट तक, चार्ली चैपलिन का जन्मदिन

Charlie Chaplin: हास्य और मूक फिल्मों के बेताज बादशाह, हर साल 16 अप्रैल को याद किए जाते हैं। उनका जन्म 1889 में लंदन, इंग्लैंड में हुआ था। असली नाम चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन था। वे न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि एक उम्दा निर्देशक, लेखक, संगीतकार और निर्माता भी थे। चार्ली चैपलिन ने अपनी कला के जरिए न केवल लोगों को हंसाया, बल्कि सामाजिक संदेश भी दिए।

Charlie Chaplin’s Birthday
Charlie Chaplin’s Birthday

चार्ली चैंपियन का शुरुआती जीवन

उनका बचपन कठिनाइयों से भरा रहा। पिता का निधन और मां की मानसिक बीमारी के चलते उन्हें बाल आश्रय में भी रहना पड़ा। लेकिन इन संघर्षों ने ही उन्हें जीवन के असली रंग सिखाए। बहुत कम उम्र में उन्होंने स्टेज पर काम करना शुरू कर दिया और अपनी प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीत लिया।

द ट्रैम्प से ट्रिब्यूट तक

1910 के दशक में चैपलिन अमेरिका चले गए और वहां उन्होंने मूक फिल्मों में काम करना शुरू किया। उनका सबसे प्रसिद्ध किरदार “द ट्रैम्प” यानी फटेहाल लेकिन दिलदार आदमी था – छोटी टोपी, तिकोनी मूंछें, बड़ी पैंट और गजब का अंदाज। यह किरदार जल्द ही दुनियाभर में मशहूर हो गया और लोगों की हंसी का सबसे बड़ा कारण बन गया।

Charlie Chaplin
Charlie Chaplin

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चार्ली चैपलिन की प्रमुख फिल्मे

चार्ली चैपलिन की प्रमुख फिल्मों में The Kid (1921), City Lights (1931), Modern Times (1936), और The Great Dictator (1940) शामिल हैं। इन फिल्मों में हास्य के साथ-साथ उन्होंने गरीबी, बेरोज़गारी, तानाशाही और मानवता जैसे विषयों को बेहद भावनात्मक तरीके से पेश किया। विशेष रूप से The Great Dictator एक ऐतिहासिक फिल्म थी जिसमें चैपलिन ने हिटलर की आलोचना करते हुए मानवता और शांति का संदेश दिया। यह उनकी पहली बोलती फिल्म थी, और इसका अंतिम भाषण आज भी सबसे प्रेरणादायक भाषणों में गिना जाता है।

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ऑस्कर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड

चार्ली चैपलिन को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया। 1972 में उन्हें ऑस्कर का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। उन्हें नाइटहुड की उपाधि से भी सम्मानित किया गया और वे “सर चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन” कहलाए। 25 दिसंबर 1977 को चैपलिन का निधन स्विट्ज़रलैंड में हुआ, लेकिन उनका योगदान अमर है। आज भी उनकी फिल्में लोगों को गुदगुदाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर कर देती हैं। उनके हाव-भाव, अभिनय शैली और भावनाओं की अभिव्यक्ति मूक फिल्मों में भी इतनी प्रभावशाली थी कि शब्दों की कमी कभी महसूस नहीं हुई।

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