Adi Mahotsav : सर्दियों में उमड़ी भीड़ और जनजातीय कारीगरी का अद्भुत संगम, आइए जानते है क्या होता है आदि महोत्सव?
Adi Mahotsav, भारत में हर क्षेत्र और संस्कृति की अपनी विशेषताएँ हैं, जो समय-समय पर अलग-अलग आयोजनों के माध्यम से सामने आती हैं। इन आयोजनों में आदिवासी समुदायों की कला, संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का अद्वितीय रूप देखने को मिलता है।
Adi Mahotsav : सर्दी में आदिवासी कला का जादू, आदि महोत्सव में बढ़ी भीड़ और शिल्प का प्रदर्शन
Adi Mahotsav, भारत में हर क्षेत्र और संस्कृति की अपनी विशेषताएँ हैं, जो समय-समय पर अलग-अलग आयोजनों के माध्यम से सामने आती हैं। इन आयोजनों में आदिवासी समुदायों की कला, संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली का अद्वितीय रूप देखने को मिलता है। इनमें से एक प्रमुख आयोजन आदि महोत्सव (Adi Mahotsav) है, जो हर साल आदिवासी संस्कृति और कला के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित किया जाता है। इस महोत्सव में देशभर से विभिन्न जनजातीय समुदाय अपनी हस्तशिल्प और कलाओं के प्रदर्शन के लिए इकट्ठा होते हैं। इस वर्ष भी सर्दियों में हुई आदि महोत्सव ने लोगों का दिल जीता, जहां न सिर्फ आदिवासी कारीगरी का प्रदर्शन हुआ, बल्कि शॉपिंग के शौकिनों के लिए यह एक खास अवसर बन गया।
आयोजन का उद्देश्य और महत्व
आदि महोत्सव का उद्देश्य आदिवासी कला, शिल्प, खाद्य पदार्थ और उनकी संस्कृति को प्रोत्साहित करना और प्रदर्शित करना है। यह महोत्सव आदिवासी समुदायों के लिए एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहां वे अपने पारंपरिक उत्पादों और शिल्प को देश-दुनिया के सामने ला सकते हैं। इसके अलावा, यह एक तरह से आदिवासी समुदायों को उनके अद्वितीय शिल्प और कला के प्रति सम्मान और सराहना प्राप्त करने का भी एक अवसर है।
Read More : Lakhimpur Kheri Chai : लखीमपुर खीरी की चाय, स्वाद में बेमिसाल, दूर-दूर से आते हैं लोग
महोत्सव में उमड़ी भीड़ और सर्दियों की शॉपिंग का असर
आदि महोत्सव का आयोजन खासकर सर्दियों के मौसम में किया जाता है, जब ठंड के कारण लोग बाहर निकलने में ज्यादा रुचि रखते हैं। इस दौरान शॉपिंग करने का आनंद भी दोगुना हो जाता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अन्य प्रमुख शहरों में आयोजित होने वाले आदि महोत्सव में भीड़ खासतौर पर सर्दियों में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। लोग यहां केवल आदिवासी शिल्प और वस्त्र खरीदने नहीं आते, बल्कि एक सांस्कृतिक अनुभव लेने के लिए भी आते हैं। इस मेले में भारत के अलग-अलग राज्यों से 200 कारीगर अपने हस्तनिर्मित उत्पादों को लेकर पहुंचे हैं। आदि महोत्सव में 120 से अधिक कलाकारों ने अपने बेहतरीन उत्पादों की स्टॉल लगाई है।
स्टॉल पर जनजातीय कारीगरी का नायाब नमूना
आदि महोत्सव के विभिन्न स्टॉलों पर जनजातीय कारीगरी का बेजोड़ संग्रह देखने को मिलता है। यहां हर राज्य के आदिवासी समुदाय अपनी पारंपरिक शिल्प कला को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार की लकड़ी, धातु, मिट्टी, और कपड़े से बने सामान शामिल होते हैं। इन स्टॉलों पर आपको सोनभद्र और गोंड जनजातियों द्वारा बनाए गए लकड़ी के बर्तन, बस्तर के धातु के बर्तन, मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय द्वारा बनायी गई काष्ठ कला, और ओडिशा की डोंगर जनजाति के द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स मिलती हैं।
मेले में है हर राज्य का सामान
आदि महोत्सव में एक और खासियत यह होती है कि यहां आदिवासी भोजन का भी विशेष आयोजन किया जाता है।
आपको बता दें आदि महोत्सव में भारत के 10 से भी अधिक राज्यों से जनजातीय कारीगर आए हैं जिनमें राजस्थान से बगरू प्रिंट, गुजरात से बांधिनी, छत्तीसगढ़ व ओडिशा का डोकरा आर्ट, तेलंगाना की ज्वैलरी, सिक्किम के पारंपरिक वस्त्र, लद्दाख की पश्मीना शॉल जैसे डेरों प्रोडक्ट् हैं, आदि महोत्सव मेले में शानदार शॉपिंग के साथ अलग-अलग राज्यों के बेहतरीन फूड का भी आनंद ले सकते हैं, साथ ही रात में अलग-अलग राज्यों के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देख सकते हैं, आपको बता दें जवाहर कला केंद्र में आदि महोत्सव मेला 8 दिसंबर तक चलेगा जो सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता हैं और मेले में पब्लिक की एंट्री बिल्कुल फ्री हैं।
समाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
आदि महोत्सव सिर्फ एक शॉपिंग मेला नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की संस्कृति, उनके शिल्प, उनके संघर्षों और उनकी पहचान को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस महोत्सव में भाग लेने से न केवल शहरी समुदाय आदिवासी संस्कृति के करीब आता है, बल्कि आदिवासी कलाकारों को अपने काम के लिए एक सम्मानजनक मंच भी मिलता है। यह महोत्सव आदिवासी समाज की कला और संस्कृति के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com