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Goverdhan Pooja 2024: जानिए इस बार कब है गोवर्धन पूजा? जानें इसके शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में..

गोवर्धन पूजा का पर्व हिंदू तिथि के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। आमतौर पर ये तिथि दिवाली के अगले दिन पड़ती है।

Goverdhan Pooja 2024: जानिए क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा? ये रही गोवर्धन पूजा की कथा


Goverdhan Pooja 2024 जानिए इस बार कब है गोवर्धन पूजा जानें इसके शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में

Goverdhan Pooja 2024: पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत हो गई है। इस बार 29 अक्तूबर को धनतेरस मनाया गया। वहीं दीपावली 31 अक्तूबर और 1 नवंबर 2024 को मनाई जा रही है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा का पर्व आता है। गोवर्धन पूजा का पर्व प्रकृति और मानवता के बीच संबंध को बताता है। ये त्योहार दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा का अलग अलग स्थानों पर अलग महत्व और कथाएं प्रचलित हैं। यहां उत्तर भारत में खासकर मथुरा वृंदावन में ये दिन श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा है तो वहीं पश्चिमी भारत के राज्य गुजरात में ये गुजराती नववर्ष की शुरुआत का दिन माना जाता है।

कब है गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा का पर्व हिंदू तिथि के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। आमतौर पर ये तिथि दिवाली के अगले दिन पड़ती है, जिसे स्थानीय भाषा में परेवा भी कहते हैं। हालांकि इस बार दिवाली दो दिन मनाई जा रही है। ऐसे में गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 को हो रही है।

गोवर्धन पूजन का शुभ मुहूर्त

गोवर्धन पूजा का पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा और इस दिन गोवर्धन पूजा का मुहूर्त शाम 6 बजकर 30 मिनट से 8 बजकर 45 मिनट तक है। गोवर्धन पूजा के लिए आपको 2 घंटा 45 मिनट का समय मिलेगा।

गोवर्धन पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन प्राकृतिक संसाधनों की पूजा की जाती है। जैसे की पहाड़, गाय और गोबर के साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा होती है। माना जाता है कि ऐसा करने से हमारी आने वाली पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को समझेगी और प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करेगी। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा का भी बहुत महत्व है

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क्यों मनाई जाती है गोवर्धन पूजा

प्राचीन प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर गोकुल में अत्यधिक वर्षा की। मूसलाधार बारिश से गोकुल वासी परेशान हो गए। तब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी गोकुल वासी बारिश से बचने के लिए पर्वत के नीचे खड़े हो गए। इसके अलावा गोवर्धन की हरी भरी घास गाय और बकरियों के लिए भी उपयोगी होती थी। इस तरह श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओं के जरिए प्रकृति का हमारे जीवन के लिए महत्व को समझाया।

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गोवर्धन पूजा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को ब्रज में पहले देवराज इंद्र की पूजा हुआ करती थी लेकिन भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों से इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। भगवान कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा अर्चना करने लगे, जब यह जानकारी देवराज इंद्र को मिली तो उन्होंने अपने घमंड में आकर पूरे ब्रज में तूफान और बारिश से कहर बरपा दिया। धीरे धीरे हर चीज जलमग्न हो रही थी, तब भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी और इसी के साथ इंद्र के घमंड को भी तोड़ा था। चारों तरह घर अस्त व्यस्त होने की वजह से सभी सब्जियों को मिलाकर अन्नकूट तैयार किया गया था, तब से हर वर्ष इस तिथि को गोवर्धन महाराज पूजा की जाती है और अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

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