Sapinda Marriage ban : सपिंड रिश्तेदारों से विवाह करने पर खानी होगी जेल की हवा, समझिए पूरा मामला क्या है ?
Sapinda Marriage ban : सपिंड शादी करने पर लोगों को सजा दी जा सकती है। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 18 के तहत दी जाने वाली सजा में जुर्माने और जेल का प्रावधान है।
Sapinda Marriage ban : सपिंड विवाह मामला क्या है ? कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?
Sapinda Marriage ban : दिल्ली उच्च न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (वी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से साफ़ साफ़ इनकार कर दिया, जो सपिंदा रिश्तेदारों यानी दूर के चचेरे भाई/रिश्तेदारों) के बीच विवाह को प्रतिबंधित करता है।
Sapinda Marriage ban : मामला क्या है ? कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?
इस कानून को महिला ने अदालत के सामने चुनौती दी थी। दरअसल बात यह थी कि 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं। इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था। महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी। मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है। लेकिन महिला ने हार नहीं मानी और दोबारा हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।
सपिंदा रिश्तेदारों से विवाह पर खंडपीठ की टिप्पणी
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि इस तरह के विवाहों के खिलाफ प्रतिबंध वर्षों से कानून की किताब में है और अगर कोई कल अनाचार विवाह की मान्यता के लिए याचिका दायर करता है तो अदालत को एक रेखा खींचनी होगी। उन्होंने कहा, ”कानून बहुत स्पष्ट है… कल कोई आकर कह सकता है कि परिवारों की सहमति से अनाचार वाले संबंध को विवाह में बदल दिया गया है। क्या इसे वैध विवाह के रूप में मान्यता दी जा सकती है।” बेंच ने रेखांकित किया की हमें सीमा खींचने की जरूरत है। यह निषेध वर्षों से है। हम इसे इस तरह से रद्द नहीं कर सकते।
अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए क्या कहा ?
अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि वह एक विस्तृत आदेश पारित करेगा। मामले पर विचार करने के बाद, अदालत ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता के परिवार को इस तथ्य के बारे में पता था कि विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती है और इसलिए, कानून की अज्ञानता एक बहाना नहीं हो सकती है। अदालत ने आगे कहा की “आप हमेशा जानते थे कि यह एक निषिद्ध संबंध है। कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं है… आपके माता-पिता को शादी के लिए सहमत नहीं होना चाहिए था, “अदालत ने टिप्पणी की। इस तर्क पर कि इस तरह की शादियां देश में खासकर तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में बहुत आम हैं, अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम मान्यता देता है कि जहां ऐसे विवाह प्रथा का हिस्सा हैं, उन्हें वैध विवाह के रूप में मान्यता दी जा सकती है।
क्या होता है सपिंड विवाह?
उन दो लोगों के बीच सपिंड विवाह होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे ही रिश्तों को सपिंड कहा जाता है। इतना ही नहीं इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, ‘अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाता है।
हिंदू मैरिज एक्ट क्या कहता है ?
हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकतें। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर ही आते हैं, उनसे शादी करना पाप है । और कानून भी दोनों के खिलाफ है।
पिता की तरफ से ये पाबंदी 5 पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते।
गौरतलब है की यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है।
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इन लोगों को है सपिंड विवाह की छूट है
हिंदू मैरिज एक्ट उन सपिंड संबंध रखने वाले लड़के और लड़की की शादी को संपन्न मानता है जिनमें दोनों पक्षों के समुदायों में सपिंड शादी का रिवाज है। लेकिन इसमें शर्त है कि उस रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए।
सपिंड शादी करने पर मिलेगी सजा
आपको बता दे की सपिंड शादी करने पर लोगों को सजा दी जा सकती है। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 18 के तहत दी जाने वाली सजा में जुर्माने और जेल का प्रावधान है। इसके अनुसार, धारा 5 (v) का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 1 महीने तक की जेल या 1000 रुपये का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।
मामला क्या है ? कानून को किसके तहत दी गई चुनौती?
इस कानून को महिला ने अदालत के सामने चुनौती दी थी। दरअसल बात यह थी कि 2007 में, उसके पति ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह थी और महिला के समुदाय में ऐसी शादियां नहीं होतीं। इसलिए उनकी शादी को अमान्य घोषित कर दिया गया था। महिला ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2023 में कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी। मतलब, अदालत ने ये माना कि सपिंडा विवाह को रोकने वाला हिंदू मैरिज एक्ट का नियम सही है। लेकिन महिला ने हार नहीं मानी और दोबारा हाई कोर्ट में उसी कानून को चुनौती दी। इस बार उन्होंने ये कहा कि सपिंड शादियां कई जगह पर होती हैं, चाहे वो समुदाय का रिवाज न भी हो। उन्होंने दलील दी कि हिंदू मैरिज एक्ट में सपिंड शादियों को सिर्फ इसलिए रोकना कि वो रिवाज में नहीं, असंवैधानिक है। ये संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो बराबरी का अधिकार देता है। महिला ने आगे यह भी कहा कि दोनों परिवारों ने उनकी शादी को मंजूरी दी थी, जो साबित करता है कि ये विवाह गलत नहीं है।