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Bengaluru : बेंगलुरु के राजभवन में हुआ सम्मान समारोह, मूर्तिकार अरुण योगीराज को रामलला की मूर्ति बनाने के लिए किया गया सम्मानित
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Bengaluru : बेंगलुरु के राजभवन में हुआ सम्मान समारोह, मूर्तिकार अरुण योगीराज को रामलला की मूर्ति बनाने के लिए किया गया सम्मानित

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने रविवार को बेंगलुरु के राजभवन में मूर्तिकार अरुण योगीराज को अयोध्या राम मंदिर में स्थापित कृष्ण शिला पत्थर से बनी 51 इंच की रामलला की मूर्ति बनाने के लिए सम्मानित किया गया है।

Bengaluru : मूर्तिकार अरुण योगीराज ने कहा, ‘लोग मुझे जो प्यार दिखा रहे हैं, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं’

कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने रविवार को बेंगलुरु के राजभवन में मूर्तिकार अरुण योगीराज को अयोध्या राम मंदिर में स्थापित कृष्ण शिला पत्थर से बनी 51 इंच की रामलला की मूर्ति बनाने के लिए सम्मानित किया गया है।

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कर्नाटक के राज्यपाल ने किया सम्मानित –

अयोध्या में रामलला की मूर्ति के ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह के कुछ दिनों बाद रामलला की मूर्ति को तराशने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज सम्मानित किया गया है। भगवान रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा राम मंदिर में हो चुकी है। इस मूर्ति को गढ़ने वाले अरुण योगीराज स्वयं को धन्य समझ रहे हैं। रामलला की इस मूर्ति को काले पत्थर से बनाया गया है और इस अचल मूर्ति को बनाने में रोजाना 18-18 घंटे काम भी किया गया है। अपनी कला से देश को गर्वित करने वाले अरुण योगीराज ने अपने पिता से मूर्तिकला की बारीकियां सीखी थी। वैसे तो 11 वर्ष में पहली मूर्ति बनाने वाले अरुण योगीराज के काम की प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो पहले ही कर चुके हैं लेकिन रामनगरी आने के बाद फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट कर योगीराज की प्रशंसा की है।

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मूर्तिकार योगीराज ने कहा –

रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले मूर्तिकार योगीराज खुद को बेहद आशीर्वाद की स्थिति में पाते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि मैं पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूं। मेरे पूर्वजों परिवार के सदस्यों और भगवान रामलला का आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहा है। यह मेरे लिए सबसे बड़ा दिन है। अरुण योगीराज ने कहा, “लोग मुझे जो प्यार दिखा रहे हैं, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं इस अवसर के लिए भगवान का बहुत आभारी हूं।  मूर्तिकार योगीराज आगे कहा, ‘‘मैंने मूर्ति बनाने की कला अपने पिता से सीखी है और आज मेरी मूर्ति को यहां देखकर उन्हें बहुत गर्व होता है।

मैसूर विश्वविद्यालय से एमबीए –

मैसूर विश्वविद्यालय से एमबीए अरुण योगीराज ने एक निजी कंपनी के मानव संसाधन विभाग में छह महीने तक प्रशिक्षण लिया था। मूर्तिकार ने बताया है कि ‘‘लेकिन, मैंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और निजी क्षेत्र की नौकरी छोड़ दी तथा पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए अपने मैसूर लौट आया था। इस ऐतिहासिक घटना को व्यक्तिगत रूप से देखना योगीराज के लिए गर्व का क्षण था, लेकिन मैसूर में उनके परिवार ने इस समारोह को टीवी पर देखा है।

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