जानिए क्या फर्क होता है एक अंतर्मुखी और बहिर्मुखी लोगो में
कैसे होते है अंतर्मुखी और बहिर्मुखी लोग
इस दुनिया में दो तरह के लोग होते है, एक वो जो अपने आप में ही खुश रहते है, जिन्हें हम अक्सर अंतर्मुखी बुलाते है। ऐसे लोगो किसी के साथ ज़्यादा समय बिताने में यकीन नहीं रखते। और दूसरे वो, जो पूरी दुनिया को अपना दोस्त बन कर चलते है और इन्हें हम बहिर्मुखी कहते है। ऐसे लोगो को नए लोगो से दोस्ती करने में, उनके साथ समय बिताने में कोई दिक्कत नहीं होती। ऐसे लोग बहुत ही खुले इमेज के होते है और इन्हें नए दोस्त बनाना अच्छा लगता है। पर अंतर्मुखी और बहिर्मुखी लोगो में कुछ अंतर होता है।
जानते है कि क्या फर्क होता है अंतर्मुखी और बहिर्मुखी लोगो में:-
- अंतर्मुखी लोग अक्सर आपने आप में ही रहते है। वो कोई नए दोस्त नहीं बनाते और उनकी ज़िन्दगी में लोग बहुत कम होते है। वही बहिर्मुखी लोग काफी दोस्त बना लेते है। वो बहुत ही खुशमिजाज़ होते है और अक्सर हर किसी के साथ घुल मिल जाते है।
- अंतर्मुखी लोग हर फैसला अपने आप लेते है। वो हर छोटी बड़ी बात पर विचार विमर्श खुद ही करते है। उनकी सोच ज़्यादा काम करती हैं। बहिर्मुखी लोग अपना हर फैसला किसी और के साथ बात करके लेते है। वो लोगो से बात करते है और उनकी राय भी लेते है।
- बदलाव के लिए जहाँ बहिर्मुखी लोग दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ घूमने जाते है, वहीँ अंतर्मुखी लोग किताब पढ़ कर या अकेले कहीं जाकर अपना समय बिताते है।
- अंतर्मुखी लोग बहुत ही आयोजित ढंग से हर काम करते है। उनके पास हर चीज़ की एक योजना होती है, जिसके हिसाब से सब काम होता है। और बहिर्मुखी लोग समय और तकदीर के अनुसार चलते है। वो बदलाव के लिए सदैव तैयार रहते है।
- नई परिस्तिथियों में अक्सर अंतर्मुखी लोग काम नहीं कर पाते। उनको हर चीज़ के लिए उनको अपना समय चाहिए होता है। इस नएपन में ढलने के लिए उन्हें समय लगता है। वही बहिर्मुखी लोगो को नयी परिस्तिथियों में बड़ा ही मज़ा आता है।
- अंतर्मुखी कॉ बहुत ही सादी ज़िंदगी जीते है। उनकी अपनी दुनिया रंगीन हिती होगी पर वो खुद को बहुत ही सादे ढंग से रखते है। वही बहिर्मुखी लोगो की दुनिया और व्यक्तित्व दोनों ही बहुत रंगीन होता है।
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ये दोनों ही लोग एक दूसरे से बहुत अलग होते है। इन दोनों के व्यक्तिव के अंतर को समझना बहुत कठिन नहीं है। पर अक्सर ये भी होता है कि लोग अंतर्मुखी होने को शर्मीला होने से जोड़ते है। ये ज़रूरी नहीं है कि हर अंतर्मुखी इंसान शर्मीला हो। हर किसी का अपना व्यक्तिव होता है और हर कोई उसी के हिसाब से ढलता है।