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Aajibai Chi Shala Elder Women School: ठाणे जिले में खुला दादियों का स्कूल, नाम है आजीबाईंची शाळा

Aajibai Chi Shala Elder Women School, पढ़ाई-लिखाई या नई चीजें सीखने के लिए कोई उम्र निश्चित नहीं होती। समय-समय पर ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो साबित करते हैं कि सीखने का कोई समय सीमा नहीं होती। हालांकि, इसके लिए केवल एक अवसर की जरूरत होती है, जिसे व्यक्ति सही समय पर पकड़ सके।

Aajibai Chi Shala Elder Women School : भारत का अनोखा स्कूल, दादियों और नानियों के लिए आजीबाईंची शाळा

Aajibai Chi Shala Elder Women School, पढ़ाई-लिखाई या नई चीजें सीखने के लिए कोई उम्र निश्चित नहीं होती। समय-समय पर ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो साबित करते हैं कि सीखने का कोई समय सीमा नहीं होती। हालांकि, इसके लिए केवल एक अवसर की जरूरत होती है, जिसे व्यक्ति सही समय पर पकड़ सके। भारत में हर गली-मोहल्ले या शहर में स्कूल मौजूद हैं, जहां बच्चे पढ़ाई कर सकते हैं। लेकिन जब बात बुजुर्ग महिलाओं की पढ़ाई की आती है, तो अक्सर वे हिचकिचाती हैं कि बच्चों के बीच जाकर कैसे सीखेंगी। इसी संदर्भ में महाराष्ट्र के ठाणे जिले के एक छोटे से गांव फांगणे में एक अनोखा स्कूल खुला है, जिसे देखकर यह साबित होता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। इस स्कूल का नाम आजीबाईची शाळा, यानी “दादियों का स्कूल”, है। यह स्कूल विशेष रूप से बुजुर्ग महिलाओं के लिए बनाया गया है, जहां बच्चे नहीं बल्कि दादियों और नानियों की पढ़ाई होती है।

आजीबाईची शाळा की स्थापना

यह स्कूल साल 2012 में शिक्षक योगेंद्र बांगर के प्रयास से शुरू हुआ। योगेंद्र बांगर ने एक बुजुर्ग महिला को यह कहते सुना कि काश वह प्रार्थना के दौरान पवित्र ग्रंथ पढ़ पातीं। इस बात ने उन्हें प्रेरित किया कि बुजुर्ग महिलाओं को पढ़ाई के अवसर दिए जाएं। उन्होंने इसके लिए परिवारों से बातचीत की, समर्थन जुटाया और दादी-नानी को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। कुछ महिलाओं ने तो पहले कभी स्लेट भी नहीं पकड़ी थी, और कई को अपना नाम लिखना भी नहीं आता था। योगेंद्र बांगर की मेहनत और स्थानीय लोगों के सहयोग से यह स्कूल धीरे-धीरे आकार लेने लगा। महिला दिवस 2016 को, एक किसान के बैठक कक्ष में इस स्कूल की औपचारिक शुरुआत हुई। स्कूल में पढ़ने वाली महिलाओं की यूनिफॉर्म गुलाबी साड़ियों की होती है। इसका कारण यह है कि परंपरा के अनुसार विधवाओं को हरा रंग पहनने की अनुमति नहीं थी। इस यूनिफॉर्म से न सिर्फ उनकी पहचान बनी, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास और गरिमा का एहसास भी हुआ।

आजीबाईची शाळा का उद्देश्य और महत्व

इस स्कूल का मुख्य उद्देश्य बुजुर्ग महिलाओं को पढ़ाई के माध्यम से स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाना है। यहां आने वाली महिलाएं सिर्फ पढ़ना ही नहीं सीखतीं, बल्कि त्योहार मनाना, सभाओं में भाग लेना और सामाजिक गतिविधियों में शामिल होना भी सीखती हैं। 2018 में स्कूल की महिलाओं को दो दिन के लिए वाई में पिकनिक पर ले जाया गया, जो उनके लिए जीवन में एक अलग और रोमांचक अनुभव था। यह साबित करता है कि स्कूल न सिर्फ शिक्षा का केंद्र है, बल्कि बुजुर्ग महिलाओं के जीवन में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को जोड़ने का माध्यम भी है।

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आजीबाईची शाळा में क्या पढ़ाया जाता है?

इस स्कूल में बुजुर्ग महिलाएं बुनियादी पढ़ाई से लेकर उन्नत शिक्षण तक सीखती हैं।
कुछ मुख्य विषय इस प्रकार हैं:

  1. हिंदी/मराठी अक्षर और शब्द – महिलाएं ‘अ’ से ‘अनार’ तक लिखना सीखती हैं।
  2. अंग्रेज़ी सीखना (ABC) – बेसिक इंग्लिश की समझ और लिखाई।
  3. कविता और कहानी लेखन – रचनात्मकता बढ़ाने के लिए।
  4. गणित और पहाड़े – बुनियादी गणित और याददाश्त को मजबूत करने के लिए।
  5. पेंटिंग और कला – कला के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति और सृजनात्मकता को बढ़ावा।

70, 80 और यहां तक कि 90 साल की उम्र की महिलाएं इस स्कूल में पढ़ाई के लिए आती हैं। यह दिखाता है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती।

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स्कूल की सफलता और सामाजिक प्रभाव

आजीबाईची शाळा केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है, बल्कि समाज में बुजुर्ग महिलाओं की भागीदारी और सम्मान बढ़ाने का माध्यम भी है। स्कूल के माध्यम से दादियों और नानियों ने अपने आत्मविश्वास को बढ़ाया और समाज में अपनी पहचान बनाई।

  • आत्मनिर्भरता – महिलाएं अब अपने नाम लिख सकती हैं, गणित और पढ़ाई में आत्मनिर्भर बन गई हैं।
  • सामाजिक सहभागिता – स्कूल ने महिलाओं को समाज की गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • रचनात्मकता – पेंटिंग, कविता और कला के माध्यम से उनकी रचनात्मक क्षमता बढ़ी।

योगेंद्र बांगर की पहल ने साबित किया कि शिक्षा केवल बच्चों के लिए नहीं है, बल्कि बुजुर्गों के लिए भी यह जीवन में नई दिशा और उद्देश्य देती है। महाराष्ट्र के ठाणे जिले के फांगणे गांव की आजीबाईची शाळा यह उदाहरण है कि पढ़ाई-लिखाई या कुछ नया सीखने की कोई उम्र नहीं होती। यहां बुजुर्ग महिलाएं न केवल अक्षर, गणित और कला सीख रही हैं, बल्कि सामाजिक रूप से सक्रिय और आत्मनिर्भर बन रही हैं। यह स्कूल यह संदेश देता है कि सीखने की लालसा कभी भी कम नहीं होती, और सही अवसर मिलने पर बुजुर्ग महिलाएं भी जीवन में नई ऊंचाइयों को छू सकती हैं। आजीबाईची शाळा ने साबित कर दिया कि शिक्षा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह आत्मविश्वास, सम्मान और समाज में भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करती है। बिना किसी हिचकिचाहट के, दादियों और नानियों ने दिखा दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, और यह स्कूल उनके जीवन में एक नई रोशनी लेकर आया है।

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