Kuno National Park: कूनो में फिर गूँजी खुशखबरी, ‘मुखी’ के पांच शावकों ने जगाई चीता संरक्षण की नई उम्मीद
Kuno National Park, कूनो नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश से इस वर्ष वन्यजीव संरक्षण के इतिहास की सबसे बड़ी और प्रेरणादायक खबर सामने आई है।
Kuno National Park : भारत में चीता संरक्षण को नई उड़ान, कूनो की ‘मुखी’ बनी पांच शावकों की मां
Kuno National Park, कूनो नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश से इस वर्ष वन्यजीव संरक्षण के इतिहास की सबसे बड़ी और प्रेरणादायक खबर सामने आई है। भारत में जन्मी मादा चीता मुखी ने पांच स्वस्थ शावकों को जन्म दिया है। यह केवल कूनो के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है, क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ है जब भारत में पली-बढ़ी किसी मादा चीता ने भारतीय धरती पर ही सफलतापूर्वक प्रजनन किया है। कूनो प्रबंधन के अनुसार, मां मुखी और सभी पांचों शावक पूरी तरह से स्वस्थ हैं। यह उपलब्धि इसलिए भी बेहद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रोजेक्ट चीता के भविष्य की एक नई उम्मीद लेकर आई है।
संघर्षों से भरी ‘मुखी’ की प्रेरक यात्रा
मुखी की कहानी संघर्ष, साहस और अनुकूलन क्षमता का अद्भुत उदाहरण है। करीब ढाई साल पहले जब दक्षिण अफ्रीका से लाई गई एक मादा चीता ने कूनो में तीन शावकों को जन्म दिया था, तब प्रकृति की कठोर परिस्थितियों के कारण उनमें से दो शावक जीवित नहीं रह पाए। केवल एक छोटी, कमजोर और नाजुक-सी मादा शावक बची जिसका नाम बाद में ‘मुखी’ रखा गया। कूनो के वनकर्मी उसे चौबीसों घंटे निगरानी और सुरक्षा प्रदान करते थे, परंतु एक समय के बाद उसे पूरी तरह प्राकृतिक माहौल में ही खुद को साबित करना था। धीरे-धीरे मुखी ने न केवल अपने दम पर जीवित रहना सीखा, बल्कि उसने वह सब व्यवहारिक क्षमताएँ भी विकसित कीं, जो एक जंगली चीता को माहिर बनाती हैं।
- उसने शिकार करना सीख लिया,
- अपना इलाका (टेरिटरी) सुरक्षित बनाया,
- अलग-अलग मौसम और भूगोल की परिस्थितियों के साथ स्वयं को अनुकूलित किया,
- और सबसे बढ़कर, उसने यह साबित किया कि भारतीय धरती पर जन्मी चीते की नई पीढ़ी कितनी सक्षम हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय वातावरण में पले-बढ़े होने के कारण मुखी ने बहुत मजबूत व्यवहारिक सीखें अपनाईं। यही अनुकूलन उसे पहली सफल भारतीय मूल की प्रजननक्षम मादा चीता बनाता है।
प्रोजेक्ट चीता के लिए गेम चेंजर पल
मुखी द्वारा एक साथ पांच स्वस्थ शावकों को जन्म देना केवल एक समाचार नहीं है यह प्रोजेक्ट चीता के लिए एक मील का पत्थर है। यह उपलब्धि इस बात की पुष्टि करती है कि:
- कूनो का आवास (हैबिटेट) अब चीतों के लिए पूरी तरह अनुकूल हो चुका है,
- प्राकृतिक भोजन-श्रंखला बेहतर तरीके से संतुलित है,
- पार्क की सुरक्षा व्यवस्था और निगरानी पुख्ता है,
- और सबसे महत्वपूर्ण—चीतों की स्वाभाविक प्रजनन प्रक्रिया सफल हो रही है।
वन्यजीव विशेषज्ञ इसे “स्वाभाविक प्रजनन उछाल” कहते हैं, जो किसी भी वन्यजीव पुनर्वास परियोजना की सबसे बड़ी कसौटी होती है। किसी प्रोजेक्ट की सफलता तब मानी जाती है जब जानवर अपने प्राकृतिक वातावरण में स्वयं प्रजनन कर सकें और स्वस्थ संतति पैदा करें। इस सफलता के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत आत्मनिर्भर चीता जनसंख्या के लक्ष्य के बेहद करीब पहुंच चुका है। इससे भविष्य में न केवल आनुवंशिक विविधता बढ़ेगी, बल्कि भारत आने वाले समय में चीतों की स्थिर और मजबूत संख्या के साथ वैश्विक संरक्षण मानचित्र पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
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लीडरशिप की बधाइयाँ: कूनो की टीम को मिला सम्मान
इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कूनो की पूरी टीम को बधाई दी और इसे भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास का अभूतपूर्व पल बताया। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि साबित करती है कि सरकार और वन विभाग की संयुक्त मेहनत सही दिशा में काम कर रही है। वहीं केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने इसे केवल एक जन्म नहीं, बल्कि पूरे प्रोजेक्ट के आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला महत्त्वपूर्ण मोड़ कहा। उनके अनुसार, यह सफलता आने वाले वर्षों में भारत को चीता संरक्षण का वैश्विक केंद्र बना सकती है।
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देश को मिला नया विश्वास
मुखी की यह उपलब्धि केवल वन विभाग या कूनो प्रशासन की जीत नहीं है, बल्कि यह पूरे भारत की उम्मीदों का प्रतीक है। यह संदेश देती है कि यदि वैज्ञानिक योजना, अनुशासित प्रबंधन और प्रकृति के प्रति सम्मान के साथ काम किया जाए, तो सबसे कठिन वन्यजीव संरक्षण परियोजनाएँ भी फल-फूल सकती हैं।
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