इस दीवाली, ज्ञान का दिया जलाये
इस दीवाली, ज्ञान का दिया जलाये
हर वर्ष दीवाली के समय इतनी रौनक होती है। इतनी चहल पहल, सुंदरता और खुशियाँ होती है। सब कुछ इतना रंगीन होता है। पर ये रौनक और रंग सिर्फ उन लोगो के लिए जो इन खुशियो को खरीद सकते है। वैसे भी आजकल खुशियाँ खरीदी जाती है।
आज के ज़माने में ये रौनक और ये सभी खुशियाँ एक दिखावा ही बन के रह गया है। सच्चे मन से खुश होना तो हम सभी भूल से गए है। बस अपने रुतबे के लिए ज़िंदगी जिए जा रहे है और खुश हुए जा रहे है। अब हम खुशियाँ खरीद सकते है, इसीलिए खरीद लेते है, पर उनका क्या जो एक वक़्त की रोटी भी नहीं खरीद पाते? उनके लिए हर त्यौहार नीरस है और हर रंग फीका है।
इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में हम जैसे तैसे खुश रह लेते है और खुद को समय दे देते है, पर इनकी खुशियों का क्या? हम इनकी ज़िन्दगी में बहुत बड़ा बदलाव नहीं ला सकते, पर इनको छोटी सी खुशियाँ तो दे ही सकते है। इस दीवाली क्यों ना हर दिया किसी अंधेर भरे घर में जलाया जाए? एक ख़ुशी का टुकड़ा किसी नम आँखों वाले को दिया जाए।
ये त्यौहार हर साल आते है और आते ही चले जाते है। हमें इन त्योहारों की मिठास को समझ, इससे घोल के पीना है। ताकि सिर्फ हमारी नहीं पर सबकी प्यास बुझे। इस दीवाली सिर्फ अपने घरों में मिट्टी के दिए ना जलाये। किसी की मदद कर, उसके साथ खुशियाँ बाँट किसी की ज़िंदगी को पल भर के लिए रोशन करते है। ज्ञान और खुशियाँ बाटने से बढ़ती है। तो इस त्यौहार में दिये जलाये, ख़ुशी क्व भी और ज्ञान के भी।