काम की बात

West Bengal election 2021: क्या लेफ्ट की युवा बिग्रेड मैदान पर कर पाएगी वापसी ?

रोजगार के मुद्दे पर कमजोर है लेफ्ट संगठन : क्या जीत पायेगी युवाओं का विशवास?


West Bengal election 2021: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो गई है। पहले चरण के सभी 30 सीटों पर 27 मार्च को वोटिंग हो गई है। जहां लोगों ने रिकॉर्ड तोड़ 79.79%वोट किया। बाकी सात चरणों में चुनाव होना अभी बाकी है। जिसका परिणाम दो मई को आना है। बंगाल में सीधी लड़ाई तृणमूल और भाजपा के बीच हैं। लेकिन तीसरी पार्टी ऐसी है जो अपने आप को बंगाल में मजबूत करने के लिए दोबारा से मैदान में अपनी युवा पीढ़ी को लेकर उतरी है। वह है बंगाल में त्रिकोणीय मुकाबला पैदा करती संयुक्त मोर्चा का गठबंधन। आज काम की  बात में हम इसी पर चर्चा करेंगे।

अहम  बिंदु

–         लेफ्ट ने युवाओं को दिया मौका

–         लेफ्ट की नीचे गिरती स्थिति

–         लेफ्ट बंगाल में खेल बिगाड़ सकता है

बंगाल में दीदी बनाम दादा की लड़ाई में संयुक्त मोर्चा की लेफ्ट फ्रंट ने युवा बिग्रेड को मैदान में उतारा है। लेफ्ट फ्रंट ने इस बारी अपनी बुजुर्ग अनुभव को दूर रखते हुए 124 युवाओं को मैदान  पर उतारा है। जिसमें लेफ्ट की छात्र ईकाई डीवीएफआई की प्रदेश अध्यक्ष मीनाक्षी मुखर्जी नंदीग्राम से मैदान में हैं। जेएनयू की छात्रसंघ अध्यक्ष आईशी घोष लेफ्ट का गढ़ माने जाने वाले जामुड़िया से लड़ रही है। जेएनयू के ही एसएफआई की दीपसीता धर हावड़ा के बाली सीट से चुनाव लड़ रही है। एसएफआई के सेक्रेटरी सृजन भट्टाचार्य सिंगूर से चुनाव लड़ रहे हैं। बंगाल में जहां एक ओर ‘जय श्री राम’ और ‘बंगाली स्मिता’ को बरकरार रखने की लड़ाई दो दिग्गज पार्टियों में चल रही है। वहीं दूसरी ओर लेफ्ट फ्रंट के युवाओं के सामने बराबरी और रोजगार की मुद्दा रखा है। इसके साथ ही लोगों के बीच अपने अस्तित्व को बरकरार रखने की लड़ाई लड़ रहे है।

bengal elections 2021
Image source – aajtak

लेफ्ट की नीचे गिरती स्थिति

साल 2007 के नंदीग्राम और सिंगूर वाले मामले ने लोगों को बीच 34 साल तक राज करने वाली लेफ्ट के खिलाफ मन में रोष ला दिया था।  जिसके विकल्प के तौर पर लोगों ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को सत्ता संभालने का मौका दिया। साल 2011 की विधानसभा चुनाव में सीपीएम को मात्र 40 सीटों पर जनता का समर्थन मिला। जिसके बाद शुरु हुई बंगाल में  लेफ्ट फ्रंट के गिरावट की कहानी। जहां कभी बंगाल पर राज करने वाली लेफ्ट फ्रंट की साल 2014 की लोकसभा चुनाव में मात्र 2 सीटों पर  विजय पाई। वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तो अपना खाता भी नहीं खोल पाई।

जनता के बीच लेफ्ट फ्रंट को लेकर जो नाराजगी है वह साल 2011 के बाद से ही लगातार देखने को मिल रही है। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रदीप सुमन का कहना है कि प्रदेश की जनता में पहले तृणमूल को लेकर जो विश्वास दिखाया था वह धीरे-धीरे हो कम हो रहा है। लगातार बढ़ती हिंसा खिलाफ लोगों के बीच जो नाराजगी थी वहां लेफ्ट ने उनका हाथ नहीं पकड़ा इसलिए विकल्प के तौर पर लोगों ने बीजेपी की तरफ अपना रुख कर लिया। इसलिए बीजेपी की जो वोटर है वह लेफ्ट के ही है। इसका अच्छा उदाहरण साल 2019 को लोकसभा चुनाव है। बंगाल में चुनाव सरगर्मी की दौरान एक न्यूज चैनल की खबर के अनुसार एक युवक ने बात करते हुए बताया कि वह तृणमूल से परेशान हो गया था। उसे लेफ्ट में जाना था। लेकिन उसके क्षेत्र में लेफ्ट की इकाई एक्टिव नहीं थी जिसके कारण उसने भाजपा को ज्वांइन कर लिया।

क्या लेफ्ट बंगाल में खेल बिगाड़ सकता है?

लेफ्ट की युवा ब्रिगेड लगातार अपने चुनाव प्रचार के दौरान रोजगार के मुद्दे पर बात कर रही है। आईशी घोष जामुडिया विधानसभा में अपने चुनाव प्रचार के दौरान उद्योग, रोजगार, महिलाओं के अधिकारों की बात करती है। उनकी रैली में युवाओं की भीड़ भी देखने को मिल रही है। नंदीग्राम से लेफ्ट की प्रत्याशी मीनाक्षी मुखर्जी भी यह बात कहती है कि राज्य में तृणमूल की गुंडागर्दी और बीजेपी की हिंदुत्व की नीतियों से युवा परेशान हो गए हैं। पिछले कुछ महीनों में लगभग एक लाख युवाओं ने डीवीएफआई की सदस्यता ली है। अब सोचने वाली बात यह कि राज्य में दो बड़ी शक्तियां जो अपने –अपने मुद्दे के हिसाब से लोगों को लुभाने में लगी है। वह लेफ्ट को आगे बढ़ने देगी या नहीं। इस बारे डॉ.प्रदीप सुमन का कहना है कि आज  की युवा पीढ़ी को रोजगार चाहिए। लेकिन लेफ्ट के पास रोजगार को लेकर कोई ठोस कदम नहीं है। लोगों को रोजगार चाहिए, साल 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जहां लोगों को रोजगार का सपना दिखाया गया। लेकिन लेफ्ट के मामले में अब लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं।

और पढ़ें: विधानसभा चुनाव में बांग्ला और गैर-बांग्ला भाषा का गणित बंगाल पर कितना प्रभाव डालेगा?

Image source – New Indian Express

इनके खुद के ही विचार अब कहीं न कहीं पूंजीवाद की तरफ बढ़ रहे हैं। जिस सोवियत संघ का लेफ्ट हुंकार भरता था आज उसकी क्या स्थिति है। चीन भी अब मिक्स इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में लेफ्ट की जो वैचारिकी लड़ाई है वह युवाओं को अपनी ओर खींच नहीं पा रही है। बंगाल चुनाव में लेफ्ट ने इस बार एक युवाओं को मौका देकर एक अच्छा काम किया है क्योंकि युवा पीढ़ी अब युवा प्रतिनिधि को देखना पसंद कर रही है। लेकिन इसका असर इस बार देखने को नहीं मिलेगा क्योंकि तृणमूल और बीजेपी ने अपने –अपने एजेंडे को लोगों में सेट कर दिया है। लेकिन अगर इसी जोश के साथ लेफ्ट कार्यकर्ता चुनाव के बाद भी काम करते रहे तो 2026 में जरुर इसका लाभ मिलेगा।

नंदीग्राम में महाघमासान

पहले चरण  में बंपर वोटिंग के बाद अब लोगों की नजर दूसरे चरण के मतदान पर है। दूसरा चरण का मतदान एक अप्रैल को होना है। जहां त्रिकोणीय मुकाबले में तृणमूल से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एक वक्त दीदी के करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी बीजेपी से और सीपीआईएम की तरफ से युवा नेत्री मीनाक्षी मुखर्जी मैदान में उतरी है.  बंगाल की हॉट सीट नंदीग्राम पर अब देखना है किसकी जीत होती है। साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में शुभेंदु अधिकारी तृणमूल प्रत्याशी थे और उन्होंने फतह पाई थी। जबकि सीपीएम दूसरे नंबर पर थी। इस बार शुभेंदु अधिकारी भाजपा के प्रत्याशी है ऐसे में अगर तृणमूल के वोट शुभेंदु के साथ भाजपा में चले जाते हैं तो पार्टी तीसरे नंबर से सीधे पहले नंबर पर आ सकती है।

अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com

Back to top button