काम की बात

सर्व शिक्षा अभियान के तहत बुनियादी सुविधा तो दी गई, लेकिन  बाद में रखरखाव का अभाव

बॉथरुम में उगा घास, लड़कियों के लिए परेशानी


काम की बात लेख के तहत इस सप्ताह से हमारी टीम सरकार की शिक्षा नीतियों के बारे मे आपको बताएगी. इससे पहले लंबे समय तक हमने स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं पर बात की थी. आज की पहली कडी हम सर्व शिक्षा अभियान के बारे में बात करेंगे. 

अहम बिंदु

  • सर्व शिक्षा अभियान
  • उद्देश्य
  • लक्ष्य
  • आंकडे

सर्व शिक्षा अभियान की कार्यान्वयन वर्ष 2000- 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. संविधान में 86वें संशोधन के साथ 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिर्वाय कर दी गई. जिसके लिए इंटरनेशनल एसोसिएशन द्वारा वित्त मुहैया कराया गया. यह विश्व में चलाए जा रहे सबके लिए शिक्षा का विशालतम कार्यक्रम है. जो जिला आधारित एक विशिष्ट विकेंद्रित योजना है. जिसके तहत गांव देहात के स्कूल के अभाव में वंचित न रह जाएं इसके लिए उनके आवास से 1 किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय और 3 किलोमीटर की दूरी पर उच्च प्राथमिक विद्यालय की सुविधाएं उपलब्ध हुई. 

उद्देश्य

  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना
  • बच्चों को उचित भवन, शौचालय, पीने का पानी, ब्लैक बोर्ड और खेल का मैदान मुहैया कराना
  • पिछड़े और अल्पसंख्यकों में शिक्षा का प्रसार करना
  • लड़के –लड़कियों के बीच के अंतर को कम करना
  • सामजिक भेदभाव का दूर करना
  • बच्चों को बीच में पढ़ाई छोड़ने से रोकना तथा आठवीं तक अच्छी क्वालिटी की शिक्षा सुलभ कराना शामिल है.

और पढ़ें: जाने मोदी सरकार द्वारा चलाया गया ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत कितना साफ़ हुआ

साल दर साल का उद्देश्य

  • साल 2005 तक प्रारंभिक विद्यालय, शिक्षा गारंटी केंद्र, वैकल्पिक विद्यायल, बैक टू स्कूल शिविर की उपलब्धता.
  • 2007 तक 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लें.
  • 2010 तक 8 वर्षों तक स्कूली शिक्षा पूरी कर लें.
  • संतोषजनक कोटि की प्रारंभिक शिक्षा, जिसमें जीवनोपयोगी शिक्षा को विशेष महत्व पर बल देना.
  • स्त्री- पुरुष असमानता तथा सामाजिक वर्ग भेद को 2007 तक प्राथमिक स्तर तथा 2010 तक प्रारंभिक स्तर पर समाप्त करना.
  • 2010 तक सभी बच्चों को विद्यालय में बनाए रखना. 

लक्ष्य

साल 2002 में जब इसकी शुरुआत की गई तो पूरी दुनिया में स्कूल न जाने वाले बच्चों का 25 प्रतिशत बच्चे भारत में थे. आज प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी कम हो गया है. साल 2003 से 2009 तक स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या 2.5 करोड़ से घटकर 81 लाख रह थी. अब पूरे देश में 99 प्रतिशत परिवारों की अपनी निवास स्थानों से एक किलोमीटर के बीच स्कूलों तक और 93  प्रतिशत परिवारों की मिडिल स्कूलों तक पहुंच है. देशभर में 92 प्रतिशत स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था की गई है. 12 से 14 वर्ष के आयु वर्ग में  प्राथमिक शिक्षा पूरी करने  वाले बच्चों की संख्या और उनके अंश में लगातार वृद्धि हो रही है. आज यह आंकड़ा 59 से बढ़कर 81 प्रतिशत हो गया है.   साल 2009 में प्राथमिक स्कूलों में 100 लड़कियों की तुलना में 94 लड़कियों ने स्कूल में प्रवेश लिया. लगातार पब्लिक और प्राइवेट स्कूल के बढ़ते क्रेज के बीच साल 2020 में प्राथमिक स्कूलों में बच्चों प्रवेश 30 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत तक हो गया है.  सर्व शिक्षा अभियान के तहत अन्य कार्यक्रम भी चलाएं जाते हैं जिसके तहत विशेष आवश्यकताओं वालों 27.8 लाख बच्चों की पहचान की गई है. जिन्हें विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल किया गया है.  

और सम्बंधित लेख पढ़ने के लिए वेबसाइट पर जाएं www.hindi.oneworldnews.com

कमी

इस योजना को शुरु हुए लगभग 20 साल हो गए हैं. इस योजना के तहत कई बुनियादी सुधार किए गए हैं. लेकिन बाद में उनका रख रखाव सही से नहीं किया गया है. कई प्राथमिक स्कूलों में सुविधाएं  है लेकिन आज उनकी हालात इस्तेमाल करने लायक नहीं है. दो साल पहले मैंने स्वयं पश्चिम बंगाल के कुल्टी विधानसभा क्षेत्र के सोदपुर हाई स्कूल में रिपोर्टिंग की थी. उस स्कूल  में बुनियादी सुविधाओं के नाम  पर बाथरुम का हाल इतना बुरा था कि वहां घास उग हुआ था. टीचर्स का कहना था कि मासिक धर्म के वक्त स्कूल में टीचर्स और लड़कियों को बहुत ज्यादा परेशानियां का सामना करना पड़ता है. अब देखने वाली बात यह है कि योजनाएं तो लागू की जाती है लेकिन बाद में उनका रख रखाव सही से नहीं किया जाता है.

अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com

Back to top button