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Same-Sex Marriage: SC में दायर हलफनामे में केंद्र सरकार ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध

Same-Sex Marriage: जानिए किस देश ने सबसे पहले इस विवाह को लीगल किया था!

Highlights:

  • केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने वाली याचिकाओं का सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में विरोध किया
  • दुनिया के 30 से ज्यादा देशों में समलैंगिक विवाह को मान्यता प्राप्त है
  • नीदरलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश था जिसने ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की थी

Same-Sex Marriage : केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का सर्वोच्च न्यायालय में विरोध किया है। केंद्र सरकार ने दायर जवाबी हलफनामें में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए जवाब दिया कि शादी की अवधारणा में अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के बीच संबंध की पूर्वधारणा है।

विवाह से संबंधित सभी व्यक्तिगत कानून और वैधानिक अधिनियम केवल पुरुष और महिला के बीच संबंध को मान्यता देते हैं। केंद्र ने कहा कि समान-सेक्स संबंधों में व्यक्तियों के एक साथ रहने की तुलना पति, पत्नी और युगल से पैदा हुए बच्चों की भारतीय परिवार की अवधारणा से नहीं की जा सकती है।

केंद्र सरकार ने कहा कि इससे पर्सनल कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन हो सकता है। उच्चतम न्यायालय के समक्ष दाखिल हलफनामें केंद्र सरकार ने कहा कि आइपीसी की धारा 377 के जरिए इसे वैध करार दिए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकते। केंद्र सरकार ने आगे कहा कि विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम है। इसलिए ऐसे मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो व्यस्कों के मध्य केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।

सूत्रों के अनुसार एक समलैंगिक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर समलैंगिक शादी को मान्यता प्रदान करने की मांग की है। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा था। इसी विषय पर केंद्र सरकार ने रविवार को उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर किया।

इस विषय पर केंद्र सरकार ने अपने हलफनामें में कहा कि समलैंगिकों का जोड़े के रूप में साथ रहना तथा शारीरिक संबंध बनाने की, भारत की पारिवारिक ईकाई की अवधारणा से तुलना नहीं हो सकती। अपने जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि भारतीय भारतीय पारिवारिक ईकाई की अवधारणा में विषम लिंग के दो व्यक्ति (एक पुरुष और महिला) शादी करते हैं। दोनों विवाहोपरांत बच्चे पैदा करते हैं जहां पुरुष ‘पिता’ और महिला ‘मां’ बनती है। सरकार ने आगे कहा कि हमारे समाज में शादी को संस्था के रूप में दर्जा प्राप्त है। इस संस्था का अपना अलग सार्वजनिक महत्व है।

केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि विषमलैंगिक विवाह उचित है

समलैंगिक विवाहों को यदि लीगल कर दिया गया तो गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों पर जटिलताएं पैदा हो सकती है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने हलफनामें में समलैंगिक विवाह के विरोध में तर्क रखते हुए कहा कि समान लिंग वाले लोगों के मध्य इस तरह के शादी को मान्यता देने से मौजूदा व्यक्तिगत कानून का उल्लंघन होगा। इस विवाह में घरेलू हिंसा कानून समेत कई प्रावधान समलैंगिक विवाह में लागू करना संभव नहीं है। (सौजन्य: livelaw)

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कुछ ऐसे भी देश है जहां सेम-सेक्स विवाह लीगल है

देखा जाए तो न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया के अन्य देशों में भी समलैंगिक विवाह पर लम्बे समय से बहस चल रही है। दुनिया के लगभग बत्तीस देशों में इस प्रकार के विवाह को लीगल कर दिया गया है।

2001 में नीदरलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश था, जहां समलैंगिक विवाह को अनुमति मिली थी। साल 2015 में, अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को इजाजत दिया था। इसके बाद और भी देश इस विवाह के समर्थन में खड़े हुए। इनमें आस्ट्रेलिया,आयरलैंड, स्विटजरलैंड जैसे देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान हुआ।

अफ्रीका महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका 2006 में समलैंगिक विवाह को लीगल बनाने वाला पहला अफ्रीकी देश बना। तो, एशियाई में ताइवान 2019 में, इस तरह के विवाह को लीगल करना वाला देश बना। इस समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाले देशों की श्रेणी में ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, फिनलैंड, स्वीडन, आइसलैंड, डेनमार्क, बेल्जियम, चिली, मेक्सिको, न्यूज़ीलैंड, नार्वे आदि का नाम आता है।

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