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सामाजिक और राजनीतिक जटिलताओं को दर्शाता है नाटक ‘औघड़’

कोरोना काल के बाद एक बार फिर शुरु हुए रंगमंच


कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद लगभग हर क्षेत्र में लोगों का काम पूरी तरह से ठप्प हो गया था. लेकिन धीरे- धीरे अब लोगों की जिदंगी पटरी पर लौटने लगी है. लंबे समय से बंद चल रहे रंगमंच  में कला की खूशबु दोबारा से वापस आ गई है

इसी क्रम में पटना में संस्कृतिक नाटकोत्सव का आगाज किया गया. जो इमेज आर्ट सोसाइटी द्वारा आयोजित किया गया है.  गुरुवार को शुरु हुआ यह रंगउल्लास अगले तीन दिन तक चलने वाला है. जिसके पहले दिन “औघड़” नाटक का मंचन किया. जिसके लेखक नीलोत्पल मृणाल और इसका नाट्य रुपांतरण अहंत कुमार द्वारा किया गया. निर्देशक कुंदन कुमार है.

बिहार में चल रहे चुनवी मौसम में इस नाटक में भी आज के भारत में पंचायत के चुनावों में गद्दी के लिए क्या हुआ होता है. यह दिखाया है. जहां जाति व्यवस्था इतना बड़ा दंश है कि वह लोगों को आगे नहीं बढ़ने दे  रहा है.

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नाटक में ऊंची जाति का ओदा और नीची जाति के लिए अच्छा जीवन भी पाना कितना मुश्किल है. यह दिखाया गया है. जिसमें फुगन सिंह नाम का एक सरपंच है जो ऊंची जाति का है. और किसी भी हाल में अपनी प्रधानी को खोना नहीं चाहता है. दूसरी तरफ पबितर दास जो बड़ी हिम्मत करके उसके खिलाफ पंचायत के चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर खड़ा होता है. गांव में बीए पास युवा है बिरंची, जो जाति व्यवस्था के एकदम खिलाफ और दिनभर लोगों के साथ मिलकर चिल्लम फूंकता और लोगों को इस नरकीय जाति व्यवस्था से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करता है. जहां उसका साथ देता है जेएनयू से आया शेखर. जो अपनी पढ़ाई लिखाई से इस व्यवस्था को बदलना चाहता है. जिसमें वह सफल तो नहीं पाता, लेकिन फुगन सिंह की चाल के कारण अपने ही मित्र पबितर दास के हाथों मारा जाता है. इसी के साथ गांव में पंचायत का चुनाव कमजोर पड़ा जाता है और फुगन सिंह एक बार गांव का प्रधान बन जाता है.

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