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Pakistan Constitutional crisis: पाक मे एक बार फिर हाहाकार! 5 साल भी नहीं टिक पाती कोई भी सरकार

Pakistan Constitutional crisis : पाकिस्तान संवैधानिक संकट की अबतक की पूरी डिटेल जानिए।


Highlights-

. पाकिस्तान की जनता अपने देश की सत्ता से परेशान है।

. प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ पूरा विपक्ष आ चुका है। पाकिस्तान में एक बड़ा संवैधानिक संकट आ खड़ा हो गया है।

Pakistan Constitutional crisis: पाकिस्तान की जनता अपने देश की सत्ता से परेशान है। प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट खड़ा है। पाकिस्तान में एक बड़ा संवैधानिक संकट आ खड़ा हुआ है। 3 अप्रैल 2022 को पाकिस्तान में  प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया जिस पर चुनाव होना था। लेकिन वोटिंग नहीं हुई।

सबसे पहले तो हम आपको बताते है कि पाकिस्तान में चल क्या रहा है और जो सियासी उथल – पुथल हो रही है उसके पीछे की वजह क्या है? दरअसल पाकिस्तान में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। यहाँ सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर ये संवैधानिक संकट है क्या। संवैधानिक संकट शब्द थोड़ा अस्पष्ट है और इसकी कोई सटीक परिभाषा नहीं है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें किसी विशेष सरकार के संविधान या स्थापित प्रथा के आधार पर एक प्रमुख राजनीतिक विवाद को स्पष्ट रूप से हल नहीं किया जा सकता है।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आखिर पाकिस्तान में हुआ क्या है और भारत पर इसका क्या असर पड़ सकता है?

3 अप्रैल 2022 को पाकिस्तान में एक बहुत बड़ा काम होना था, इमरान खान की सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया जिस पर चुनाव होना था। लेकिन वोटिंग हुई नहीं। इस पर हम आपको पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं।

पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ लोगों में काफी समय से अविश्वास है। वहाँ की विपक्षी पार्टी भी इमरान खान और उनकी कार्यशैली पर सवाल पर सवाल खड़े कर रही है। विपक्षी पार्टी सरकार पर बहुमत न होने के आरोप लगा रहे थे।

जी हाँ,  आपको बता दें कि इमरान खान पाकिस्तान में 2018 से सत्ता में काबिज हैं लेकिन ध्यान देने वाली बात यहाँ यह है कि इमरान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ लगभग पाँच सालों से मार्जिन पर ही है। इनके पास बहुमत की भी कमी है, कुछ के सहयोगी दलों के सहयोग से जो पार्टी पाकिस्तान में रूल कर रही थी उसे यह दिन तो देखना ही था।

पाकिस्तान में सहयोगी दलों के समर्थन से चल रही सरकार की अब हालत ऐसी हो गई है कि जो सरकार के साथ सहयोगी दल पाँच सालों से खड़े थे वो भी अब अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।अब हुआ यूँ कि  इधर सहयोगी दलों ने इमरान खान और उनकी पार्टी का हाथ छोड़ना शुरू किया तो उधर पाकिस्तानी जनता में अपने सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा ।

जनता के आक्रोश के कारण कई थे। कोरोना में देश की अर्थव्यवस्था की जो हालत हुई इसे कहीं से भी नकारा नहीं जा सकता था। इसके साथ भ्रष्टाचार और सरकार का बार – बार अपने मुद्दों से भटकना, विदेशी मुद्रा का देश न आना, बाकी देशों का पाकिस्तान के प्रति घृणास्पद रवैया। इन परिस्थितियों ने पाकिस्तान की जनता को अपने सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया।

मुश्किलें हज़ार और उसका एक ही समाधान जो पाकिस्तानी जनता को समझ आया – सत्ता में परिवर्तन। इसका अर्थ साफ – साफ निकलता है कि सत्ता में परिवर्तन के लिए इमरान खान को हटाना जरूरी  था। इसके लिए वहां की विपक्षी पार्टी एक साथ आई। वहाँ की जो चरमपंथी धड़े हैं, डेमोक्रेटिक पार्टियां हैं , विपक्ष के नेता हैं सब एक साथ आयें। उन सब ने मिलकर इमरान खान के खिलाफ एक गुट बनाया और सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।

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अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू हुई और इसे शुरुआत में ही डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने असंवैधानिक घोषित कर दिया। इस आधार पर अविश्वास प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। खारिज करने के कारण के रूप में वो विदेशी षड्यंत्र को दोषी ठहराते हुए नज़र आये। इमरान खान की पार्टी ने अमेरिका पर उसका आरोप लगाया।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने असेंबली भंग कर दी और कहा कि अगले 90 दिनों में पाकिस्तान में चुनाव कराये जाएंगे और जनता को अपनी सत्ता चुनने की पूरी आजादी दी जाएगी। विपक्ष और सत्ता एक दूसरे पर असंवैधानिक होने के आरोप लगा रही थी । इसी बीच पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अपने हाथ में ले लिया। देखा जाए तो अब ये मुद्दा तीन गुटों में बंट चुका है। पार्लियामेंट, एग्जीक्यूटिव और कोर्ट और इसे पॉलिटिकल क्राइसिस का नाम देकर पाकिस्तानी सेना इस पूरे तमाशे को देख रही है।

आपको बता दे, पाकिस्तान की सरकार देश की सेना के नक्शेकदम पर चलती है। अर्थात पाकिस्तान के सत्ता की कमान देश की सेना के पास है। अब हम आपको स्पष्ट करना चाहते हैं कि आखिर सेना ये सब तमाशा चुप – चाप देख क्यों रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि सेना चाहती है कि इमरान खान सत्ता में रहें। जी हाँ, इमरान खान को मदद मिल रही है अपने देश की सेना से।

इसके पीछे भी कारण है वो आसान भाषा में कुछ ऐसे समझा जा सकता है कि एक वक्त था जब पाकिस्तानी सेना सरकार का सीधा तख्तापलट कर देती थी अगर सरकार सेना का साथ देने से इनकार करती थी। लेकिन कुछ समय से पाकिस्तानी सेना समझदार हो गई है अब वह सीधा वॉर नहीं करती बल्कि अपने मोहरो की मदद से देश को चलाती है। आज से चार साल पहले इमरान को अपना मोहरा बनाकर सत्ता पर बिठाया और वजह यही है कि सरकार का साथ सेना दे रही है।

लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इमरान सरकार ने 90 दिनों में चुनाव कराने की बात कही हैं लेकिन पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने तीन माह में चुनाव कराने में असमर्थता जताई है। आयोग के अनुसार इतनी जल्द चुनाव कराना आसान नहीं हैं और इसमें कम से कम छह महीने का समय लगेगा। वहीं अगर सुप्रीम कोर्ट इमरान के पक्ष में अपना फैसला सुनाता है तो जल्द चुनाव हो सकते हैं। बहरहाल कोर्ट का साफ कहना है कि उसका ध्यान केवल डिप्टी स्पीकर के फैसले पर है और वह स्पीकर की कार्रवाई की वैधता पर ही अपना फैसला सुनाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है।

भारत पर असर

भारत और पाकिस्तान के बीच भी सीमा विवाद को लेकर रिश्ते ठीक नहीं रहे हैं। पाकिस्तान में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, जब तक पाकिस्तानी सेना का सत्ता में दखल होगा, भारत के साथ पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण बने रहने की ही संभावना ज्यादा है. सरकार की उधर – पुथल देश की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर डालती है सबसे बड़ा उदाहरण अफगानिस्तान है। भारत कभी नहीं चाहेगा कि उसके पड़ोस में कोई फेल स्टेट हो। इससे सेना का प्रभाव बढ़ सकता है, चरमपंथियों का प्रभाव हमारे लिए खतरनाक हो सकता है और साथ ही आतंकवाद को भी इसे बढ़ावा मिल सकता है।

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