नोमोफोबिया – एक उपपाद्य विषय
नोमोफोबिया – एक उपपाद्य विषय
नोमोफोबिया – एक उपपाद्य विषय :- आज कल की इस व्यस्त ज़िंदगी में, हमारा फ़ोन एक बहुत ही अहम किरदार निभाता हैं। कैसे हमारे हर सवाल का जवाब हमारा फ़ोन हमे देता हैं। ये तो हम सब को पता है। हरभट के हुए को सही राह बाता देता है और हर भूले हुए की याद दिला देता है। एक जगह बैठे बैठे हमारा फ़ोन हमें पूरी दुनिया घुमा देता हैं।

हम अपने दिन का अधिकतर समय अपने फ़ोन पर बिताते है, चाहे वह किसी भी कारण से क्यों ना हो। हम अपने फ़ोन के इतने आदि हो चुके है कि अब ये हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। सुबह उठने से लेकर, रात को सोने तक, फ़ोन हमारे हाथ में रहता है।जब भी फोन का प्रयोग नहीं कर रहे होते, तब भी हम उसी के बारे सोचते रहते है।फ़ोन हाथ में, या आस पास न होने पर हम घबरा जाते है। इस घबराहट को अक्सर नोमोफोबिया कहा जाता है।
नोमोफोभिया बना ही इन शब्दों से है, ‘नो ’मतलबना, ‘मो ’जो मोबाइल फ़ोन सेलिया गया और ‘फोभिया’ मतलब दर या घबराहट। एक अध्ययन के बाद पता चला कि, 58 प्रतिशत आदमी और 47 प्रतिशत औरतें नोमोफोबिया का शिकार है।इसके अलावा 9 प्रतिशत लोग ऐसे होते है, जो फ़ोन बंद होने पर ही घबरा जाते है और एक आवेशक खोजने लगता है। भारत में, 10 में से 9लोगो को नोमोफोबिया है।

माना जा रहा है कि हर दूसरा व्यक्ति रात को अपने फ़ोन को अपने पास रख कर सोता है। फ़ोन से निकलने वाली तरंगो के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दरअसल, जितनी मदद हमारा फ़ोन करता है, उतनी ही दिक्कतें भी देता है। छात्रों और युवा लोगो में ये दिक्कत बहुत आम हैं।
जब सेमोबाइल फ़ोन का बोलबाला बढ़ा है, तब से ही लोगो ने व्यक्तिगत संबंधों को भुला दिया है। यही नहीं, हम अब अपने लिए कम पर अपने फोन के लिए ज़्यादा परेशान होते है। अब यह हमारा फैसला है, या तो हम इस छोटे से उपकरण के बस में होते है या इसे अपनेबस में करते हैं।