लाइफस्टाइल

Live-in Relationship Indian Laws: लिव-इन रिलेशनशिप! क्या कहता है भारत का कानून

Live-in Relationship Indian Laws: लिव-इन रिलेशनशिप में दो वयस्कों को देता है कानून एक साथ रहने की सहमति

Highlights –

  • सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप लंबे समय तक रहे तो उसे दोनों के बीच शादी की तरह समझा जाना चाहिए।
  • भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानून खारिज नहीं करता है।

Live-in Relationship Indian Laws: दिल्ली में हुए श्रद्धा वाकर मर्डर केस ने पूरे देश में सनसनी फैला दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार श्रद्धा के लिव – इन पार्टनर आफताब ने श्रद्धा का मर्डर किया और उसके शरीर के 35 टुकड़े कर उसे एक महीने तक दिल्ली – एनसीआर के अलग – अलग जगहों पर फेंकता रहा। हालांकि उसका यह गुनाह 6 महीने से अधिक नहीं छुप पाया। मामले की छानबीन कर पुलिस ने आफताब को घटनास्थल से धर – दबोचा और फिल्हाल आफताब पुलिस की गिरफ्त में है।

देश में हर तरफ इस केस की चर्चा है। इस बीच हर तरफ इस केस की एक – एक परतें बाहर आ रही है। ह्यूमन साइकोलॉजी से लेकर लिव – इन रिलेशनशिप अहम मुद्दा बना हुआ है। चूंकि आफताब और श्रद्धा लिव – इन में रहते थे जिसे लेकर चर्चा भारतीय मीडिया में गर्म है। कई मीडिया संस्थानों ने इस पर प्रकाश भी डाला है।

इस आर्टिकल में हम आपको लिव – इन को लेकर भारतीय कानून के प्रावधान बताएंगे। भारत में कोर्ट ने लिव – इन के क्या कानून बनाएं हैं इसे भी विस्तार से बताएंगे।

लिव – इन रिलेशनशिप क्या होता है ?

लिव – इन रिलेशनशिप एक अंग्रेजी शब्द है । आम शब्दों में समझने की कोशिश करें तो इसमें दो व्यस्क लोग बिना वैवाहिक बंधन में बंधे साथ में रहते हैं और एक – दूसरे से रोमांटिक तौर पर और यौन संबंधों के जरिए एक साथ रहते हैं और समय बिताते हैं।

लिव – इन एक ऐसा बंधन होता है जिसमें ना समाज और न ही कोई विशेष कानून इसे प्रभावित कर सकता है। चुंकि इसमें दोनों वयस्कों पर कोई विशेष कानूनी अधिकार लागू नहीं होता है इसलिए जब भी दोनों अलग होना चाहते हैं तो बिना किसी औपचारिकता के फिर से अलग हो सकते हैं। लिव – इन रिश्ते में रह रहे दो व्यस्क किसी दूसरे संबंधों की शुरूआत करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।

लेकिन, आपको बता दें कि इन सबके बावजूद लिव – इन रिलेशनशिप कानूनी बाध्यताओं से परे नहीं हैं।

Read more: Delhi MCD Election 2022: शिक्षित नेता चुनना क्यों है जरूरी जानें वॉर्ड 100 की उम्मीदवार किरन जोत कौर बत्रा से

भारत में क्या है लिव – इन के प्रावधान

लीगल सर्विसेज इंडिया की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में लिव – इन रिलेशनशिप अभी भी सामाजिक रूप से पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं है। ऐसा कोई कानून भी नहीं है जो इस सामाजिक बंधन के मानने से रोक सके।

आपको बता दें सुप्रीम कोर्ट ने लिव – इन रिलेशनशिप को संविधान के आर्टिकल 21 के तहत इसे जीने के अधिकार के दायरे में बताया है। अदालत लिव – इन रिलेशनशिप की अनुमति देती है दो वयस्कों के साथ रहने को गैर – कानूनी नहीं ठहरता है।

सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप के लिए ऐसी शर्तें रखीं हैं, जिसके अनुसार इसे शादी का दर्जा दिया जा सके। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप लंबे समय तक रहे तो उसे दोनों के बीच शादी की तरह समझा जाना चाहिए। पिछले दो दशकों में विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों के जरिए यह स्पष्ट किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में 2005 का कानून लागू होता है।

लिव इन में भी है महिला को पार्टनर से मेंटेनेंस का अधिकार

क्रिमिनल प्रोसेड्योर कोड की धारा 125 के तहत शादी या शादी के बाहर दोनों स्थिति में महिला पार्टनर को मेंटेनेंस का अधिकार मिलता है। वह घरेलू हिंसा संरक्षणअधिनियम 2005 की धारा 20(3) के तहत भी मेंटेनेंस मांग सकती है। यानि एक महिला अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा सकती है और आपराधिक या सिविल कानूनों के तहत कानूनी उपचार की गुहार लगा सकती है।

Read more: Sanitary Pads: Shocking ! सैनिटरी पैड यूज करने से हो सकता है आपको कैंसर का खतरा – स्टडी

संपत्ति में अधिकार

लिव-इन पार्टनरों को सेंट्रल अडप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के तहत बच्चे गोद लेने की अनुमति नहीं है। लेकिन, हिंदू विवाह कानून 1955 की धारा 16 में बच्चों के उत्तराधिकार की जो बात , वह इन संबंधों से पैदा बुए बच्चों पर भी लागू है। यह उत्तराधिकार सभी बच्चों को प्राप्त है (चाहे शादी से हो या लिव-इन संबंधों से)। इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ बच्चे को पैतृक या खुद खरीदी गई संपत्ति दोनों पर अधिकार प्राप्त है।

कानून देता है लिव – इन की गवाही

यानि भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानून खारिज नहीं करता। लेकिन, इस तरह के संबंधों को लेकर जागरूकता का बहुत ही ज्यादा अभाव है। खासकर पीड़ितों के खिलाफ होने वाली हिंसा से उन्हें सुरक्षित बचाने के लिए और उन्हें परिवार को छोड़कर निकलने के मनोवैज्ञानिक दबाव से उबारने के लिए यह बताना जरूरी है कि कानून उनके साथ है। कानून उनके संबंधों को नाजायज नहीं मानता और उन्हें हर तरह से वह कानूनी सहायता मिल सकती है, जो किसी भी शादीशुदा महिला को मिलती है।

अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com

Back to top button