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जाने उन फिल्मों के बारे में जिन्होंने कोशिश की हमारे समाज में पॉजिटिव बदलाव लाने की

हमारे समाज में पॉजिटिव बदलाव लाने में काम आएगी ये बॉलीवुड फिल्में


ये बात तो हमें नहीं लगता है कि हमें आपको बताने की जरूरत है आप ये बात मानों या न मानों लेकिन हम सभी लोग जानते हैं कि हमारी बॉलीवुड फिल्मे लंबे समय से हमारे समाज को आइना दिखाने का काम कर रही है। हमारी फिल्मों में अक्सर हमें वही चीजें दिखाई जाती है जो कहीं ना कहीं हमारे समाज में हो रही होती है। फिर चाहे वो अमीर लोगों द्वारा गरीब लोगों की कमज़ोरी का फायदा उठाना हो या असहाय लोगों का शोषण करना हो आय फिर हो परिवारिक क्लेश। इतना ही नहीं फिल्मों का समाज के स्टीरियोटाइप्स को बढ़ावा देने में भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। तो चलिए आज जानते है उन फिल्मों के बारे में जो हमारे समाज में पॉजिटिव बदलाव लाने का काम कर रही है।

समाज में पॉजिटिव बदलाव लाने वाली बॉलीवुड फिल्में

मिमी: आपको बता दें कि ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही कृति सैनन की लेटेस्ट फिल्म ‘मिमी’ सरोगेसी के गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर बनी है। इस फिल्म में कृति सैनन ने एक छोटे शहर की एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया है जिसका सपना होता फिल्मों में काम करना। और वो अपने इस सपने को पूरा करने के लिए होटल में नाचती है और उसके बाद सरोगेट मदर बन जाती है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि कृति के माता पिता एक छोटे शहर में रहते है उसके बाद भी वो अपनी बेटी के इस सपने को पूरी तरह सपोर्ट करते हैं और उससे कभी किसी किसी भी चीज के लिए रोकते नहीं है। फिल्म में दिखाया गया है कि जब उनके माता पिता को सरोगेसी के बारे में पता चलता है तो शुरू में तो वो गुस्सा करते है लेकिन फिर उसके बाद उन्हें सपोर्ट करते हैं।

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की एंड का: ‘की एंड का’ को अर्जुन कपूर के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है। अर्जुन कपूर की इस फिल्म ने हमारे समाज में एक बहस छेड़ दी थी। ये फिल्म एक ऐसी कहानी पर आधारित है जिसमे एक लड़का अपनी होममेकर माँ के सम्मान में हाउज़ हज़बेंड बन कर घर चलाना चाहता है। और एक लड़की जो सिर्फ अपने करियर में आगे बढ़ना चाहती है। इन दोनों की बिल्कुल ऑपोज़िट सोच होती है उसके बाद भी दोनों करीब आ जाते है। यह फिल्म हमें हमारे समाज में सदियों पुरानी सोच पर पुनर्विचार करने को मजबूर करती है।

बधाई हो: ये बात तो हम सभी लोग जानते है कि हमारे समाज में औरतों की उम्र को हौवा बना कर रखा जाता है। अगर कोई लड़की समय पर शादी न करें तो दिक्क्त, समय पर बच्चा न हो तो दिक्कत और अगर समय के बाद बच्चा हो गया तो भी दिक्कत। ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है फिल्म ‘बधाई हो’ में भी। इस फिल्म में दिखाया गया है कि जब दो व्यस्क हो चुके बेटों के माता पिता को उनकी तीसरी प्रेगनेंसी के बारे में पता चलता है तो न सिर्फ उनके जाने वाले बल्कि उनके खुद के बच्चों से उनको तिरस्कार झेलना पड़ता है। लेकिन फिर समय के साथ सब अपना लेते है।

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थप्पड़: ये बात तो हमे नहीं लगता की आपको बताने की जरूरत है। ये बात तो हम सभी लोग जानते है कि हमारे समाज में हमेशा से ही लड़कियों को एडजस्ट करना सिखाया जाता है। फिर चाहे वो माँ बाप की रोक टोक हो या सास के ताने या फिर हो पति की मार। हमारे समाज में लड़कियों को बचपन से ही अपने हक के लिए लड़ना नहीं सिखाया जाता है। जिसके कारण ही हमारे समाज में हर साल न जाने कितनी लड़कियां ससुरालवालों की यातनाएं झेलते हुए जीने से अच्छा मरना समझती है। यही बॉलीवुड फिल्म थप्पड़ में दिखाया गया है। इस फिल्म मे एक लड़की सिर्फ एक थप्पड़ के कारण अपने पति से तलाक की मांग करती है जिसके लिए शुरू में तो उनके माता पिता उनका विरोध करते है लेकिन उसके बाद धीरे धीरे वो भी उससे सपोर्ट करने लगते है।

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