दादी की छोटी सी बागवानी को एक पोते गौरव ने बनाया लाखों का बिज़नेस
जाने कौन है गौरव जक्कल और कैसे बढ़ाया उन्होंने अपनी दादी के बिज़नेस को
हम सभी लोग इस कहावत को तो बचपन से ही सुनते हुए आ रहे है शायद आपने भी सुना ही होगा “दादा लाए, पोता बरते”। यह कहावत घर, पैसा, जमीन, फर्नीचर, गहनों और पेड़-पौधों तक पर भी लागू होती है। आपने भी अपने दादा दादी से सुना होगा कि गांवों में बड़े-बुजुर्ग यह सोचकर पेड़ पौधे लगाते हैं कि जब वो पेड़ बनेंगे होंगे तो उनकी पीढ़ियों दर पीढ़ी उनके बच्चों को छांव देंगे। इस बात का आज हम आपको एक जीता-जागता उदाहरण देने जा रहे है। ये उदाहरण है महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाला 28 साल के गौरव जक्कल का, जो की एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं। कुछ समय पहले ही गौरव जक्कल ने अपना लिथियम आयरन बैटरी बनाने का काम शुरू किया है। इसके साथ ही साथ वह अपने पिता के साथ मिलकर अपने घर की छत पर बने गार्डन की देखभाल भी करता है। उनकी छत का ये गार्डन किसी बड़े बागान से कम नहीं हैं। उनकी छत के इस गार्डन में सैकड़ों प्रजातियों के हजारों पेड़-पौधे हैं। तो चलिए आज हम आपको इस गार्डन की एक दिलचस्प कहानी बतायेगे। कैसे, कब और किसके द्वारा शुरू हुआ था ये गार्डन।
जाने गार्डन को लेकर क्या कहना है गौरव जक्कल
एक मीडिया इंटरव्यू में गौरव जक्कल ने बताया कि इस गार्डन को मेरी दादी लीला जयंत जक्कल ने शुरू किया था। आगे वो कहते है मेरी दादी को पेड़-पौधों का बहुत ज्यादा शौक था। दादी ने ही सबसे पहले 1970 में छत पर पौधे लगाना शुरू किया था और देखते ही देखते ये गार्डन कब नर्सरी में तब्दील हो गया हमे पता ही नहीं चला। उनका कहना है कि अक्सर लोग दादी के पास आकर पेड़-पौधे और बागवानी से जुड़ी जानकारियां लेने आते थे। गौरव जक्कल आगे कहते है कि हमारे यहाँ सोलापुर में तापमान बहुत अधिक रहता है जिसके कारण हमारे वहां छत पर बागवानी करना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन मेरी दादी ने कभी हार नहीं मानी।
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जाने सीजनल नर्सरी से गौरव ने कितने की कमाई की
गौरव जक्कल बताते है कि मेरी दादी ने कई स्थानीय किस्मों के पौधों के साथ-साथ कई विदेशी किस्म के पेड़-पौधों भी लगाएं और उनकी लगातार मेहनत से उन्हें सफलता भी मिली। आगे गौरव जक्कल बताते हैं दादी ने जो गार्डन का काम शुरू किया था उसकी जिम्मेदारी अब उन्होंने उठा ली है। क्योंकि अब मेरी दादी की उम्र लगभग 90 साल हो गई है और ऐसे में उनके लिए छत पर आना जाना मुश्किल होता है। इसलिए अब गौरव जक्कल अपने पिता के साथ मिल कर गार्डन की देखभाल करते हैं। गौरव आगे कहते है आज के समय पर पेड़-पौधों की मांग को देखकर उन्होंने अपने गार्डन को सीजनल नर्सरी का रूप दे दिया है। उन्होंने कहा वैसे तो दादी के समय से ही हम पौधे तैयार कर रहे हैं, लेकिन अब जब पौधों की मांग ज्यादा हो गयी तो ऐसे में हम बारिश के मौसम से पहले ही नर्सरी का काम शुरू कर देते है। अगर गौरव ने बताया कि सोलापुर और उनके आसपास के लोग उनके पास पौधे लेने के लिए आते है जिसे उन्हें सात महीनों में लगभग साढ़े चार लाख रुपए से ज्यादा की कमाई हुई।
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