काम की बात

ग्लैमराइज होती आत्महत्या की खबरें: क्या लोगों को कमजोर बना रही है?

ज़िन्दगी खत्म करना है आखिरी रास्ता है?




जान है तो जहान है, लेकिन कोरोना के इस दौर में यह लाइन कई लोगों की हिम्मत नहीं बढ़ा पाई। इस महामारी  के दौरान कई लोगों ने अपनी जिदंगी से तंग आकर इस दुनिया को ही अलविदा कह दिया। ऐसा पहली बार नहीं है जब लोगों ने आत्महत्या की है। इससे पहले भी यह सारी चीजें होती रही है। लेकिन महामारी के इस दौर में लोग ज्यादा ही कमजोर पड़ गए हैं और खबरों में यह सारी चीजें इतनी ज्यादा प्रस्तुत की जाने लगी है कि लोगों को आखिरी रास्ता जब सिर्फ जान देना ही नजर आ रहा है।

अहम बिंदु
आत्महत्या ही अंतिम रास्ता
एकाकी परिवार भी लोगों को कमजोर बना रहा है
डिप्रेशन और अकेलेपन के कारण लोग मौत को गले लगा लेते हैं
मीडिया द्वारा चीजों को ग्लैमराइज किया जा रहा है।

मार्च में शुरु हुए लॉकडाउन ने लोगों की जिदंगी को एक अलग मोड़ दे दिया। जहां पहले खुशी थी, उसके बाद धीरे-धीरे गम आना शुरु आ गया। किसी का काम छुट गया तो किसी को निकाल दिया गया। इस पर से लगातार आती आत्महत्या की खबरों ने लोगों को कहीं न कहीं इसके लिए हिम्मत भी दी है। कुछ दिनों में देखा जा रहा है कि आत्महत्या की खबरें लगातार मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर जोरशोर से दिखाई जा रही है। प्रभात खबर वेबसाइट में छपी एक खबर के अनुसार झारखंड में प्रतिदिन औसतन 5 लोग अपनी जान ले रहे हैं। इसके साथ ही विश्वभर में होने वाली आत्महत्या में भारतीय महिलाओं की संख्या एक

तिहाई और पुरुषों की एक-चौथाई है। यह आंकड़ा चिंता जनक है। जहां इतने लोग अपनी जिदंगी से तंग आकर मौत को गले लगा रहे हैं। कोरोना के दौरान नौकरी चली जाने और घर से बेघर हो जाने की कारण कई लोग अवसाद में चले गए। कई लोगों के लिए रोजी-रोटी चला पाना मुश्किल हो पा रहा है तो किसी के लिए अपना क्लास मेन्टेन कर पाना। इस पर लगातार चारों ओर होती आत्महत्या की बातें लोगों को कमजोर बना रही है। इस बारे में द माइंडफुल अब्डेन्स की फाउंडर और काउंसर खुशी पाठक का कहना है कि किसी सेलिब्रेटी का ऐसा आत्महत्या कर लेना लोगों को अपना किसी निजी के चले जाने जैसा एहसास कराता है। 

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ऐसा में अगर कोई बहुत प्रतिभाशाली सेलिब्रेटी अपने बीच से ऐसे चला जाए तो लोगों को बहुत धक्का लगता है। लोग पहले से ही भावनात्मक रुप से टूटे हुए हैं और उस पर ऐसी घटनाएं लोगों को और विचलित करती हैं। इसके अलावा हमारे चारों ओर मेंटल हेल्थ को लेकर कई तरह की बाते चल रही है, लेकिन उसमे से सभी सही जानकारी नहीं दे पा रही हैं। लगातार होती आत्महत्या पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए खुशी कहती है कि मैंने खुद यह महसूस किया है कि आजकल आत्महत्या की खबरों को ज्यादा दिखाया जा रहा है। जबकि पहले ऐसा नहीं था। मेरा तो यही कहना है कि जिदंगी में हमेशा दूसरा विकल्प बाकी रहता है हमें उसके बारे मे एक बार जरुर सोचना चाहिए।

आत्महत्या ऐसा नही है कि सिर्फ किसी एक आयु वर्ग लोग ही करते हैं। यह हर आयु वर्ग में कम या ज्यादा फैला हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार हर 55 मिनट में 1 स्टूडेंस आत्मह्त्या करता है। अभी कुछ दिन पहले तकनीकी खराबी के कारण रिजल्ट में आई गड़बड़ के कारण तेलगांना के 20 बच्चों ने निराश होकर आत्महत्या कर ली। कोरोना के इस दौर में जब अचानक से लॉकडाउन में कई लोग ऐसे भी थे जो अपने घरों से दूर शहरों में अकेले रहते हैं। किसी की नौकरी चली तो कोई अकेलेपन से परेशान है। इसी स्थिति में लोग डिप्रेशन की जद में जल्दी आते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय (भारती कॉलेज) के मनोविज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नितिन कुमार वर्मा का कहना है कि आत्महत्या का एक बड़ा कारण है अकेलापन। देश में जिस तरह से संयुक्त परिवार से एकाकी परिवार का प्रचलन बढ़ रहा है। वहां लोगों में भावनात्मक लगाव में कमी आती जा रही है। ऐसे में कोरोना के दौरान लोगों की समस्याएं और बढ़ी है। सरकारी और गैर सरकारी कार्यालय बंद पड़े हैं लोग अपने घरों से कही काम कर रह हैं। कुछ लोग जो अपने परिवार से अलग रहते हैं वह अकेले हो गए हैं। अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। जिसके कारण लोगों को डिप्रेशन हो रहा है। लोग परिस्थिति से लड़ने से आसमर्थ्थ होते जा रहे हैं और आत्महत्या को अपना आखिरी रास्ते के तरह इख्तियार कर ले रहे हैं। यही अगर लोग अपने परिवारों के साथ रहे तो कहीं न कहीं परिवार मजबूती देता है और ऐसी स्थिति कम पैदा होने की संभावना बनती है।


आज का पूरा दौर जब पूरी तरह से टेक्नोलॉजी से लैस है तो ऐसे में कोई भी खबर कहीं न कहीं से वायरल हो ही जाती है। ऐसे समय में जब ज्यादातर लोग जब फ्री बैठे है तो सोशल साइट पर कुछ न कुछ पोस्ट करते हैं। आजकल आत्महत्या की खबरें तेजी से फैल रही है। इन खबरों को मीडिया के बड़े प्लेटफॉर्म पर भी दिखाया जा रहा है। जिसका प्रभाव लोगों के जीवन पर पड़ा रहा है। डीजी मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक अमित कुमार का कहना है कि अभी कुछ दिन पहले एक सेलिब्रेटी ने आत्महत्या कर ली। मीडिया ने अपनी टीआरपी के लिए इसको खूब दिखाया है। आत्महत्या को मीडिया द्वारा जब भी ग्लैमराइज किया जाएगा तो स्वभाविक है कि लोग भी इससे प्रभावित होंगे। इससे जब भी लोगों के जीवन में संकट की स्थिति पैदा होगी तो आत्महत्या को वो अपना विकल्प मान लेगें।  ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब भी मीडिया द्वारा किसी चीज को ग्लैमेराइज किया जाता है तो लोगों का रुझान उस तरफ ज्यादा हो गया है। जैसे मीडिया द्वारा अंडरवर्ल्ड , राजनीति अपराधिकरण और क्राइम को ज्यादा दिखाया गया तो लोगों का रुझान उस तरफ ज्यादा हो बढ़ा। हां, खबरें दिखाना जरुरी है लेकिन उसे ग्लैमराइज करना सही नहीं है। उसका असर ज्यादा पड़ता है। आत्महत्या की खबरों को दिखाने से पहले कुछ सावधानी वाले चेतावनियां भी दिखानी चाहिए। किसी मनोचिकित्सक की राय को भी पेश करना चाहिए। जिससे बाजारवाद के इस दौर में जहां लोग अपने करियर रिश्तों को लेकर परेशान है वह आत्महत्या को ही अंतिम सत्य मानकर उसे न चुनें।

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