क्रांतिकारी कवि फैज की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनकी कुछ शायरियां
पाकिस्तान में पैदा हुए थे फैज
फैज अहमद फैज एक ऐसा शायर जिनकी चर्चा भारत और पाकिस्तान दोनों ही जगह है. आज के दौर में भी लोग इनकी लेखनी के दीवाने है. अगर आप शायरी और नज्म के शौकीन हैं तो इनकी नज्म को जरुर पढ़ा या सुना होगा. आज फैज अहमद फैज की पुण्यतिथि है. पाकिस्तान के सियालकोट में पैदा हुए फैज की मृत्यु लाहौर में हुई थी. वह एक इंकलाबी शायर थे. जिन्हें क्रांतिकारी रचनाओं में रसिक भाव के मेल के कारण जाना जाता है. इन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया था.
फैज का जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था. उनके वालिद बैरिस्टर थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद फैज अमृतसर में लेक्चरर बन गए थे. उसके बाद मार्क्सवादी विचारधाराओं से प्रेरित हो गए. सरकार के खिलाफ मुखर रुप से बोलने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा. ऐसे क्रांतिकारी शायर की पुण्यतिथि पर आज आपको उनकी कुछ शायरियों को बताने जा रहे हैं.
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– दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-गुम गुजार के
– और भी दुख हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी वस्ल की राहत के सिवा
– तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
– नहीं निगार में मंजिल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
– गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
– इक तर्ज-ए-तगाफुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
– कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
– और क्या देखने को बाकी है
आप से दिल लगा के देख लिया
– वो बात सारे फसाने में जिस का जिक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुजरी है
– जिदंगी क्या किसी मुफलिस की कबा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
– आए तो यूं कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूं कि गोय कभी आश्ना न थे
– वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फिराक ये कह कर गुजार दी हम ने
– और क्या देखने को बाकी है
आप से दिल लगा के देख लिया
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